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SEBI ने कहा: लिस्टेड कंपनियों को पारिवारिक करार का खुलासा करना होगा, यह पारदर्शिता के लिए जरूरी

लेकिन नियामक ने यह भी स्पष्ट किया कि नियम किसी सूचीबद्ध कंपनी को समझौतों के दायित्वों को लेकर ‘बाध्य’ नहीं करते हैं

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खुशबू तिवारी   
Last Updated- September 12, 2025 | 10:53 PM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने बंबई उच्च न्यायालय में कहा है कि सूचीबद्ध इकाइयों के लिए डीड ऑफ फैमिली सेटलमेंट (डीएफएस) या ऐसे किसी भी समझौते का खुलासा करना अनिवार्य है क्योंकि वे महत्त्वपूर्ण और शेयरधारकों के हित में होते हैं। लेकिन नियामक ने यह भी स्पष्ट किया कि नियम किसी सूचीबद्ध कंपनी को समझौतों के दायित्वों को लेकर ‘बाध्य’ नहीं करते हैं।

बाजार नियामक ने किर्लोस्कर ऑयल इंजन्स (केओईएल) की ओर से दायर याचिका में यह दलील दी है और बिजनेस स्टैंडर्ड ने इसे देखा है। नियामक ने दिसंबर 2024 में किर्लोस्कर ऑयल इंजन्स को निर्देश दिया था कि वह लिस्टिंग ऑब्लिगेशन ऐंड डिस्क्लोजर रीक्वायरमेंट (एलओडीआर) नियमन के तहत शेयर बाजारों को सितंबर 2009 में हुए डीड ऑफ फैमिली सेटलमेंट (डीएफएस) का खुलासा करे।

कानूनी विशेषज्ञों ने कहा कि अदालत के फैसले से पारिवारिक विवादों में उलझी अन्य सूचीबद्ध कंपनियों के लिए भी राह निकलेगी और शेयरधारक समझौतों, संयुक्त उद्यम समझौतों और पारिवारिक निपटान समझौतों के खुलासे पर स्पष्टता मिलेगी। 

सेबी ने कहा, एलओडीआर नियम अन्य बातों के साथ-साथ यह सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं कि शेयरधारकों के अधिकार सुरक्षित रहें और सूचीबद्ध कंपनियों द्वारा किए गए खुलासे में पारदर्शिता बनी रहे।

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किर्लोस्कर परिवार के सदस्यों के बीच विभिन्न व्यवसायों के स्वामित्व, प्रबंधन और नियंत्रण के हस्तांतरण के लिए डीएफएस किया गया था। किर्लोस्कर समूह की पांच संस्थाओं केओईएल, किर्लोस्कर फेरस इंडस्ट्रीज, किर्लोस्कर न्यूमेटिक कंपनी, जीजी दांडेकर प्रॉपर्टीज और किर्लोस्कर इंडस्ट्रीज ने सेबी के खुलासे संबंधी नियमों को चुनौती देते हुए अपने-अपने स्तर पर रिट याचिकाएं दायर की थीं। सेबी ने कहा है कि डीएफएस का खुलासा शेयरधारकों के हित में है, जिन्हें ऐसी अहम जानकारी से अवगत होने का अधिकार है क्योंकि समझौता कंपनी को कुछ ऐसे व्यवसाय करने से रोकता है, जो डीएफएस में अन्य संस्थाओं के साथ सीधे प्रतिस्पर्धी या समान हैं।

सेबी ने कहा, निवेशकों के हित में एलओडीआर नियमन के भाग ए के पैरा ए के खंड 5ए के साथ विनियम 30ए में निर्दिष्ट प्रकृति के समझौतों का खुलासा करना याचिकाकर्ताओं और समझौतों के पक्षकारों जैसी सूचीबद्ध संस्थाओं का कर्तव्य है।

नियामक ने स्पष्ट किया है कि ये प्रावधान अनुबंध संबंधी दायित्व नहीं बनाते हैं या अनुबंध अधिनियम के तहत प्रवर्तनीयता के संदर्भ में किसी सूचीबद्ध इकाई को बाध्य नहीं करते हैं। सेबी ने कहा, यह झूठा आरोप लगाया गया है कि एलओडीआर के तहत नियमन 30ए एक सूचीबद्ध इकाई को ऐसे समझौते से बांधने का प्रयास करता है, जिसमें वह पक्षकार नहीं है। बिजनेस स्टैंडर्ड के सवालों के जवाब में याचिकाकर्ताओं की ओर से एक प्रवक्ता ने कहा, सेबी ने वास्तव में पुष्टि की है कि नियमन 30ए का मकसद पक्षकारों के बीच निजी संविदा संबंधी दायित्वों को बनाना या लागू करना नहीं है और इस तरह के खुलासे से सूचीबद्ध इकाई के प्रबंधन या नियंत्रण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता है या सूचीबद्ध संस्थाओं पर कोई प्रतिबंध या कोई देयता नहीं बन सकती है। इस बारे में सेबी को भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं मिला।

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सेबी ने अपने जवाब में कहा है, हालांकि याचियों ने यह तर्क दिया है कि व्यक्तिगत क्षमता में दिए गए बयान कंपनी पर बाध्यकारी नहीं हैं, जो निजी कानून में अच्छी तरह से स्थापित है। लेकिन प्रतिभूति कानून सार्वजनिक हित में संचालित होता है और नियामक को उन व्यवस्थाओं का खुलासा करने के लिए कहने का अधिकार है, जो शेयरधारकों के अधिकारों को काफी हद तक प्रभावित करती हैं।

First Published : September 12, 2025 | 10:53 PM IST