डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमतों में गिरावट से केवल कारोबारियों को ही नुकसान उठाना पड़ रहा है।
बल्कि अमेरिका में पढ़ने वाले भारतीय छात्रों के अभिभावकों को भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। दरअसल, एक तो फीस और अन्य खर्चे काफी बढ़ गए हैं, वहीं रुपये की कीमतों में आई गिरावट से भी विदेशों में पढ़ाई महंगी हो गई है।
पिछले एक साल के दौरान डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में करीब 16 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। एक बहुराष्ट्रीय कंपनी के कम्युनिकेशन प्रमुख हर्ष जुमानी (परिवर्तित नाम) भी कुछ ऐसी ही समस्या का सामना कर रहे हैं।
उनका कहना है कि रुपये की गिरावट नहीं थमी, तो अमेरिका के कारनेगी मेलन यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहे उनके बेटे पर किया जाने वाला खर्च और बढ़ जाएगा। उनका मानना है कि रुपये में उतार-चढ़ाव की वजह से बेटे की पढ़ाई का बजट करीब 20 फीसदी ज्यादा होने का अनुमान है।
उन्होंने अपने बेटे को अगस्त माह में कंप्यूटर सांइस की चार वर्षीय डिग्री की पढ़ाई के लिए अमेरिका भेजा है। जुमानी ने पहले सत्र की फीस करीब 10.59 लाख रुपये (42.37 रुपये प्रति डॉलर के हिसाब से करीब 25,000 डॉलर) जमा करा चुके हैं।
जबकि जनवरी 2009 से शुरू होने वाले दूसरे सत्र के लिए उन्हें करीब 14.77 लाख रुपये (49.25 रुपये प्रति डॉलर के हिसाब से 30,000 डॉलर) की फीस भरनी होगी। अगर भविष्य में रुपये की कीमत में और गिरावट आती है, तो यह रकम और ज्यादा हो सकती है।
यदि रुपये की कीमत डॉलर के मुकाबले अगस्त माह के स्तर (42.37 रुपये प्रति डॉलर) पर रहती है, तो उन्हें 12.71 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। उन्होंने बताया कि रुपये की कीमतों में गिरावट की वजह से पहले की अपेक्षा अब अमेरिका में बेटे की रहने का खर्चा भी बढ़ गया है। इससे काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यही नहीं यात्रा व्यय भी काफी बढ़ गया है।
अमेरिका में पढ़ने वाले छात्रों को एक शैक्षिक सत्र में दो बार छुट्टी मिलती है, जबकि भारत आने-जाने का खर्च एक बार में करीब 80,000 रुपये आता है। ऐसी समस्या का सामना अकेले जुमानी ही नहीं कर रहे हैं, बल्कि हजारों ऐसे लोग हैं, जिनके बेटे अमेरिका में पढ़ाई करने गए हैं।
केवल दिल्ली पब्लिक स्कूल से ही करीब 220 बच्चे उच्च शिक्षा के लिए विदेश पढ़ने गए हैं। न्यूयॉर्क स्थित इंटरनेशनल इंस्टीटयूट ऑफ एजुकेशन के आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2006-7 के दौरान अमेरिका में पढ़ाई करने गए विदेशी छात्रों में से भारतीयों की संख्या सबसे अधिक रही। इस दौरान भारत से करीब 83,833 छात्र पढ़ाई करने अमेरिका गए, जबकि चीन के छात्रों की संख्या 67,723 रही।
उल्लेखनीय है कि अमेरिका में पढ़ाई करने गए विदेशी छात्रों में से सबसे ज्यादा करीब 59 फीसदी छात्र एशियाई देशों के रहते हैं। मुंबई स्थित इंटरनेशनल एजुकेशन कंसल्टेंट जी.बी. एजुकेशन के विनायक कामत कहते हैं कि अगर रुपये की कीमतों में इसी तरह उतार-चढ़ाव जारी रहा, तो विदेश में पढ़ाई करना और महंगा हो जाएगा।