रूस-यूक्रेन युद्ध तेज होने से कच्चे तेल की कीमतें 130 डॉलर प्रति बैरल के पार हो गई हैं, जिससे महंगाई एवं चालू खाते के घाटे में बढ़ोतरी की चिंताओं के कारण रुपये में रिकॉर्ड गिरावट आई है और बॉन्ड प्रतिफल में इजाफा हुआ है।
रुपया आज डॉलर के मुकाबले 1.05 फीसदी गिरने के बाद 76.97 प्रति डॉलर पर बंद हुआ जो उसका अब तक का सबसे निचला स्तर है। कारोबारी सत्र के दौरान रुपया 76.98 प्रति डॉलर का स्तर छू गया, जिससे सरकारी बैंकों ने केंद्रीय बैंक के पक्ष में डॉलर की बिकवाली की। यह ऐसा पांचवां मौका था, जब रुपया एक दिन में 1 फीसदी से अधिक गिरा। रुपये का पिछला सबसे निचला स्तर 16 अप्रैल 2020 को दर्ज किया गया था। उस समय यह डॉलर के मुकाबले 76.87 पर बंद हुआ था। कोटक सिक्योरिटीज लिमिटेड में डीवीपी (करेंसी डेरिवेटिव एवं ब्याज दर डेरिवेटिव) अनिंद्य बनर्जी ने कहा, ‘तेल कीमतों के झटके, अमेरिकी डॉलर सूचकांक में बढ़ोतरी और शेयर बाजार में एफपीआई की लगातार निकासी से रुपया अब तक के सबसे निचले स्तर पर आया है।’ बाजार भागीदारों का अनुमान है कि अगर तेल की कीमतें ऊंची रहीं तो भारतीय मुद्रा 79 डॉलर तक गिर सकती है।
बनर्जी ने कहा, ‘हालांकि आरबीआई के आक्रामक हस्तक्षेप से उतार-चढ़ाव कम बना हुआ है। हमारा अनुमान है कि तेल की कीमतों में गिरावट आने तक रुपये पर दबाव बना रहेगा। हालांकि उतार-चढ़ाव बहुत अधिक रहेगा। अल्पावधि में रुपया 76.50 से 78.50 के दायरे में रह सकता है।’ केंद्रीय बैंक पिछले 10-12 कारोबारी सत्रों के दौरान भूराजनीतिक तनाव बढऩे के बादे मुद्रा में आक्रामक रूप से दखल दे रहा है। इस आक्रामक दखल से रुपये में गिरावट की रफ्तार सुस्त पड़ी है। इसके बावजूद भारतीय मुद्रा का प्रदर्शन 2022 में एशिया में सबसे खराब रहा है, जिसमें यह 3.42 फीसदी लुढ़की है।
मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज के विश्लेषक (विदेशी मुद्रा एवं सराफा) गौरांग सोमैया ने कहा, ‘रुपये पर लगातार दबाव बना हुआ है और रुस तथा यूक्रेन के बीच अनिश्चितता बढऩे और कच्चे तेल की वैश्विक कीमतों में तेजी से यह अब तक के सबसे निचले स्तर पर आ गया है। रुपये में गिरावट का रुझान पिछले कुछ सत्रों से बना हुआ है क्योंकि बाजार भागीदार भूराजनीतिक तनाव के बाद चिंतित हैं।’ उन्होंने कहा कि उनका अनुमान है कि रुपया सकारात्मक झुकाव के साथ कारोबार करेगा और 76.70 से 77.50 के बीच बना रहेगा।
भारत कच्चे तेल की अपनी जरूरत का 80 फीसदी से ज्यादा आयात करता है, इसलिए वह तेल की कीमतों में बढ़ोतरी से बुरी तरह प्रभावित होगा। केंद्रीय बैंंक के लिए ब्याज दरों के निर्धारण का पैमाना माने जाने वाली खुदरा महंगाई फरवरी में 6 फीसदी ऊपरी सहज स्तर के पार निकल गई है। इसके अलावा तेल की ऊंची कीमतों से चालू खाते का अंतर बढ़ रहा है, जिसका आर्थिक वृद्धि पर असर पड़ेगा।
रेटिंग एजेंसी इक्रा ने कहा कि उसका अनुमान है कि अगर कच्चे तेल की कीमत औसतन 130 डॉलर प्रति बैरल रहती है तो भारत का चालू खाते का घाटा बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में जीडीपी का 3.2 फीसदी हो जाएगा। यह पिछले एक दशक में पहली बार 3 फीसदी के पार निकलेगा।
