प्रवर्तकों ने मार्च तिमाही के दौरान बाजार में गिरावट के अवसर का फायदा उठाते हुए खुद की कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई। विश्लेषण में शामिल करीब 2,500 कंपनियों में 20 फीसदी कंपनियों में इसी तरह का रुझान दिखा।
विशेषज्ञों के अनुसार, प्रवर्तकों ने अपनी हिस्सेदारी बढ़ाते हुए बाजार को यह संकेत देने की कोशिश की है कि शेयर मूल्य में गिरावट के बावजूद कंपनी आंतरिक तौर पर दमदार है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने उन 2,476 कंपनियों का विश्लेषण किया जिनके लिए शेयरधारित संबंधी आंकड़े उपलब्ध थे। करीब 510 कंपनियों में दिसंबर तिमाही के मुकाबले प्रवर्तक हिस्सेदारी में बढ़ोतरी दिखी। साथ ही यह पिछली तिमाहियों के रुझान से कहीं अधिक दिखी।
रिप्पलवेव इक्विटी (बुटीक इन्वेस्टमेंट बैंक) के निदेशक मेहुल सावला ने कहा कि अंतरिम लाभांश के कारण प्रवर्तकों के पास काफी अतिरिक्त नकदी उपलब्ध हो सकती है। लाभांश पर अधिक कर लगाए जाने से कंपनियों ने अप्रैल से प्रभावी नई प्रणाली से पहले काफी लाभांश भुगतान किया है। कई प्रवर्तकों को नए वित्त वर्ष में घोषित लाभांश पर 43 फीसदी तक कर भुगतान करना पड़ सकता है। इससे अंतरिम लाभांश के लिए एक निर्धारित समय-सीमा खत्म हो गई। ऐसे में लाभांश आय के कारण नकदी संपन्न प्रवर्तकों ने शेयर कीमतों में गिरावट के अवसर को अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के तौर पर भुनाया लेकिन अब वह परिस्थिति बदल चुकी है। सावला ने कहा कि शेयर मूल्य में दोबारा तेजी दिखने लगी है और ऐसे में हिस्सेदरी बढ़ाने की रफ्तार भी सुस्त पड़ गई है। उन्होंने कहा, ‘वास्तव में आपको अब सीमित गतिविधियां दिखेंगी।’