इंडियन प्राइवेट इक्विटी ऐंड वेंचर कैपिटल एसोसिएशन (आईवीसीए) ने सरकार को लिखे पत्र में कहा है कि उद्यम पूंजी फंडों से संबंधित बेंगलूरु ट्रिब्यूनल द्वारा ताजा अप्रत्यक्ष कर निर्णय ने घरेलू फंड उद्योग और लिमिटेड पार्टनरों (एलपी) के बीच अनिश्चितता पैदा की है।
पिछले महीने उत्पाद, आबकारी और सेवा कर अपीलीय पंचाट-बेंगलूरु ने कहा था कि चूंकि ट्रस्टों को बाजार नियामक सेबी नियमन के उद्देश्य के लिए न्यायिक व्यक्ति के तौर पर समझा गया था, लेकिन इसकी कोई वजह नहीं थी कि उन्हें कराधान के मकसद के लिए इस तरह नहीं जाना चाहिए।
निर्णय के तहत, ट्रस्टों को वितरकों या यूनिटधारकों को फंड प्रबंधन सेवाएं मुहैया कराने वाली इकाइयों के तौर पर देखा जा सकेगा, जिसका मतलब यह है कि उनके द्वारा किया जाने वाला खर्च वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के दायरे में आएगा। जानकारों का कहना है कि इससे निवेशकों के साथ साथ फंडों के लिए लागत काफी बढ़ जाएगी, और कई तरह की कर मुकदमेबाजियों की आशंका बढ़ जाएगी।
खासकर एआईएफ के संदर्भ में आईवीसीए ने कहा है कि ये फंड महज पूलिंग योजनाएं हैं और सेवा प्रदाता इकाई नहीं। फंड प्रबंधक उन एआईएफ के लिए सेवा प्रदाता है, जो प्रबंधन शुल्क पर बकाया जीएसटी वसूलते हैं।
ट्रिब्यूनल ने यह भी निर्णय दिया था कि प्रदर्शन शुल्क जीएसटी के तौर पर 18 प्रतिशत का सेवा शुल्क लगना चाहिए।
टीवीएस कैपिटल फंड्स के चेयरमैन और नैशनल स्टार्टअप एडवायजरी काउंसिल के गैर-आधिकारिक सदस्य गोपाल श्रीनिवासन के अनुसार, एआईएफ के लिए मौजूदा नीतियों से इस समस्या को बढ़ावा मिला था, जिससे स्टार्टअप निवेशकों के लिए ऐंजल टैक्स जैसी चुनौती पैदा हुई है।