भारत के प्राइवेट इक्विटी फंड अपनी हिस्सेदारी बेचने के लिए एक नया तरीका अपना रहे हैं। इन पीई फंडों ने जिन कंपनियों में निवेश किया है, उनमें अपनी हिस्सेदारी अधिग्रहण के उद्देश्य से स्थापित कंपनी (स्पेशल पर्पज एक्विजिशन कंपनी या स्पैक) को बेच रही हैं या उनमें अपनी कंपनी का विलय कर रही हैं। इन विशेष कंपनियों को ‘ब्लैंक चेक कंपनी’ भी कहा जाता है।
इसकी वजह यह है कि जब पीई फंड किसी कंपनी में अपनी हिस्सेदारी स्पैक कंपनियों को बेचते हैं तो उन्हें मुंहमांगी कीमत मिलती है, जबकि रणनीतिक कंपनी को हिस्सेदारी बेचने, अपने पोर्टफोलियो की कंपनी भारतीय बाजार में सूचीबद्ध कराने या किसी दूसरे पीई को बेचने से उन्हें अधिक रकम हासिल नहीं होती है। अमेरिका में ब्लैंक चेक कंपनियों और भारतीय पीई कंपनियों के बीच कुछ प्रमुख क्षेत्रों – तकनीकी कंपनियों, स्वास्थ्य एवं दवा, शिक्षा-तकनीक आदि – में संभावित सौदे के लिए चर्चा शुरू हो चुकी हैं।
फंड प्रबंधकों का कहना कि इस समय ये सौदे 1 अरब डॉलर से कम मूल्यांकन वाली कंपनियों में हो रहे हैं। भारतीय प्रवर्तकों द्वारा विदेश खास तौर पर अमेरिका में स्थापित स्टार्टअप कंपनियों, जिनमें पीई फंडों ने निवेश किए हैं, में स्पैक के माध्यम से हिस्सेदारी की बिक्री सबसे आसान है।
पीई फंड किसी एक क्षेत्र पर केंद्रित स्पैक कंपनियों को अधिक तरजीह दे रहे हैं। कुछ पीई फंड इस बात का भी अध्ययन कर रहे हैं कि वे उन कंपनियों में भी अपनी हिस्सेदारी बेच सकते हैं या नहीं, जिनका प्रदर्शन कमजोर रहा है। इसके लिए उनके सामने दो विकल्प हैं। इनमें एक है स्पैक को हिस्सेदारी बेच कर कंपनियों को सूचीबद्ध कराना और दूसरा है निजी निवेशकों को बेचना। अब सवाल यह खड़ा होता है कि इनमें कौन उसे बेहतर मूल्यांकन देगा।
पीई कंपनी मेगाडेल्टा कैपिटल में संस्थापक साझेदार बाला देशपांडे कहती हैं, ‘स्पैक को अपनी हिस्सेदारी बेचना पीई फंडों के लिए अच्छा विकल्प है। इसकी वजह यह है कि पीई उच्च गुणवत्त्ता वाली कंपनियों में निवेश को लेकर अधिक उत्साहित रहते हैं और स्पैक को भी ऐसी कंपनियां अधिक पंसद आती हैं। पीई फंडों के निवेश वाली कंपनियां स्पैक कंपनियों के लिए एकदम सही रहती हैं। इसके अलावा पीई कंपनियों के पोर्टफोलियो अधिक दुरुस्त होते हैं और संचालन भी उम्दा रहता है। स्पैक एग्रीगेशन आर्बिट्राज (कुछ कंपनियों को एक साथ लाना) के आधार पर काम करती हैं और मूल्यांकन के लिहाज से अधिक रकम का भुगतान करने के लिए तैयार रहती हैं।’
दूसरे लोगों की भी यही राय है। एक देसी पीई कंपनी के शीर्ष अधिकारी ने कहा कि स्पैक कंपनियों के साथ दो विकल्पों – स्पैक तैयार करना और अपने निवेश वाली कंपनी का इसमें विलय करना या बेच देना – पर उनकी बात हुई है।
अधिकारी ने कहा कि दूसरा विकल्प सीधे बाहर निकलने का मौका देता है। अधिकारी ने कहा, ‘पहले प्रारूप के साथ संचालन संबंधी कुछ समस्या थीं। यह अलग बात है कि दुनिया भर में पीई कंपनियों ने यही विकल्प चुना है।
दूसरे प्रारूप को लेकर हमारा मानना है कि ऐसे सौदे 50 करोड़ डॉलर और 1 अरब डॉलर के बीच मूल्यांकन वाली इकाइयों के लिए सटीक है। स्पैक के जरिये कंपनी बेचना आसान भी है और बाद में हिस्सेदारी रणनीतिक इकाई को बेची जा सकती है। भारत में एक बार सूचीबद्ध होने के बाद ऐसा करना बहुत मुश्किल है।’