देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादन कंपनी एनटीपीसी के वित्तीय वर्ष 2008 के परिणाम को केवल संतोषजनक ही कहा जाएगा।
इस दौरान देश की बड़ी बिजली उत्पादन कंपनियों में से एक एनटीपीसी को कोई खास बढ़त नहीं मिली है। सार्वजनिक क्षेत्र की इस कंपनी को आशा थी कि वह 13.5 फीसदी की बढ़त के साथ करीब 37,005 करोड़ रुपये की आय हासिल करेगी।
चौथी तिमाही में कंपनी का प्रदर्शन थोड़ा बेहतर था। इस दौरान एनटीपीसी ने अपनी शुध्द बिक्री में 21 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की थी। हालांकि यह बढ़त कोई खास रंग नहीं दिखा पाई। यही कारण है कि कंपनी के लिए चिंता अभी भी बनी हई है।
वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी द्वारा टैक्स जमा करने के बाद सिर्फ 4 फीसदी की ही बढ़ोतरी देखी गई। इस दौरान टैक्स जमा करने के बाद कंपनी का कुल राजस्व 7,129 करोड़ रुपये था। दूसरे शब्दों में कहें तो कंपनी ने मार्च 2008 की तिमाही में जितना शुध्द मुनाफा दर्ज किया है वह मार्च 2007 की तिमाही में दर्ज किए गए मुनाफे से बहुत कम है।
मार्च 2008 तिमाही में कंपनी ने 1,054 करोड़ रुपये शुध्द लाभ दर्ज किया था, जो पिछले साल की समान तिमाही के मुकाबले 33 फीसदी कम है।इसमें कोई शक नहीं कि एनटीपीसी द्वारा वेतन बढ़ाने और विदेशी विनिमय में तब्दीली की वजह से ही शुध्द लाभ पर दबाव बढ़ा है। अगर उन कीमतों को अलग करके देखें तो वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी का मुनाफा 12.8 फीसदी वृध्दि के साथ 7,406 करोड़ रुपये मुनासिब होता।
पिछले गुरुवार को एनटीपीसी का शेयर थोड़ी गिरावट के साथ 186 रुपये पर बंद हुआ था। हालांकि शेयर में हुई थोड़ी गिरावट कुछ हद के लिए यह ठीक है, क्योंकि कंपनी बाद में सुधार कर सकती है।हालांकि बार-बार बढ़ाए जाने वाले वेतन को खर्चे में ही जोड़ा जाना चाहिए। ऐसी स्थिति में बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों के लिए मुनाफा सिर्फ संतोषजनक ही होगा।
इसके अतिरिक्त, कंपनी द्वारा अत्यधिक वेतन दिए जाने की वजह से वित्तीय वर्ष 2009 में कंपनी के परिचालन मार्जिन पर दबाव बढ़ सकता है। गौरतलब है कि वित्तीय वर्ष 2008 के पहले नौ महीनों में एनटीपीसी का वेतन बिल सालाना 84 फीसदी की बढ़त के साथ करीब 1,499 करोड़ रुपये का था।
यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2008 के पहले नौ महीनों में कंपनी की जो परिचालन मार्जिन (22.7 फीसदी) था, उसमें वित्तीय वर्ष 2009 में गिरावट आ सकती है। अगर साल 2008 की शुरुआत से देखें तो इस कंपनी के शेयर का प्रदर्शन भी फीका ही रहा है।
फाइजर: वसूली के संकेत नहीं
फाइजर इंडस्ट्री की 40 फीसदी सब्सिडी वाली बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनी फाइजर पर नजर डालें तो वित्तीय वर्ष 2008 के अंत में इसका प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा। यही नहीं इसका हाल वर्तमान वर्ष में भी बदस्तूर बना हुआ है।
अगर मार्च 2008 तिमाही में कुछ उपभोक्ता ब्रांडों (पिछले साल) की बिक्री पर नजर डालें तो यह फाइजर की टॉप लाइन से 3.8 फीसदी नीचे आ गई थी। हालांकि बिक्री में सुधार के लिए कंपनी द्वारा कुछ कदम उठाए गए थे। लिहाजा, फार्मास्यूटिकल कारोबार में फाइजर के दो बड़े ब्रांडों कोरेक्स और बीकासूल में 2 फीसदी की वृध्दि दर्ज की गई।
यह कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि कंपनी में 2 फीसदी की हुई वृध्दि केवल नाममात्र ही है। गौरतलब है कि फाइजर के दो बड़े ब्रांड- कोरेक्स और बीकासूल कुल फार्मा राजस्व में 30 फीसदी का योगदान देते हैं।
हालांकि जानवरों के स्वास्थ्य संबंधी सुरक्षा के क्षेत्र में कंपनी में 19 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। लेकिन कंपनी के परिचालन मार्जिन में हुई गिरावट के लिए यह काफी नहीं है।
लंबे समय के बाद कंपनी को देश में नए पेटेंट मिलने की वजह से वित्तीय संबंधी मामलों में थोड़ी अच्छी स्थिति बनी है। लेकिन ब्रांडों की बिक्री के बाद भी वित्तीय वर्ष 2008 में कंपनी के टर्नओवर में कोई खास मुनाफा देखने को नहीं मिला है।
भारत में फाइजर इंडस्ट्री को सौ फीसदी सब्सिडी मिली हुई है। फाइजर का कैश बैलेंस करीब 600 से 700 करोड़ रुपये का है। कंपनी अपने कैश बैंलेंस का इस्तेमाल शेयरधारकों को पुरस्कार देने में कर सकती है। कंपनी अपने शेयरधारों को एक बार लाभांश या फिर शेयर बाईबेक के जरिए पुरस्कृत कर सकती है।