भारतीय शेयर बाजार में भले ही गिरावट का दौर चल रहा हो और इस साल इसमें करीब 55 फीसदी की गिरावट आ चुकी।
दिग्गज कंपनियों के शेयर कौड़ियों के भाव मिल रहे हों, बावजूद इसके एशियाई और यूरोपीय बाजारों के मुकाबले भारतीय बाजार में पीई गुणक (प्राइस टू अर्निंग) अब भी महंगा है। यानी भारतीय बाजार में निवेश करने से निवेशकों को अन्य बाजारों की तुलना में कम मुनाफा मिलने के आसार हैं।
उल्लेखनीय है कि निवेशक पीई गुणक के आधार पर ही भविष्य के लिए निवेश करते हैं। ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, 29 अक्टूबर तक बंबई स्टॉक एक्सचेंज के सेंसेक्स में पीई अनुपात 9.18 था, जबकि थाइलैंड, इंडोनेशिया, ताइवान, मलेशिया, पाकिस्तान, हांगकांग और कोरियाई बाजारों में निवेशक इससे कहीं ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं।
यहां तक की यूरोप के एफटीएसई 100 भी भारतीय बाजार से कम 7.25 पीई अनुपात पर कारोबार कर रहा है। सिटी ग्रुप के मुताबिक, भारत समेत छह एशियाई बाजारों से विदेशी संस्थागत निवेशकों ने वर्ष 2008 में अब तक करीब 60 बिलियन डॉलर निकाल लिया है।
अक्टूबर महीने में विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार से करीब 16890 करोड़ रुपये निकाल चुके हैं। बाजार से एक माह में निकाली गई यह अब तक की सबसे बडी रकम है। सिटी ग्रुप के रिपोर्ट के मुताबिक, भविष्य में भी एशियाई बाजारों से विदेशी संस्थागत निवेशक और रकम की निकासी कर सकते हैं।
कोटक महिंद्रा कैपिटल के सीओओ एस. रमेश के मुताबिक, भारी गिरावट के बावजूद अब भी भारतीय बाजार काफी महंगा है, जबकि विदेशी शेयर काफी कम दामों पर मिल रहे हैं। बाजार अनुमान के मुताबिक, पिछले साल अक्टूबर के अंत तक विदेशी संस्थागत निवेशकों की ओर से करीब 250 बिलियन डॉलर बाजारों में निवेश किया गया था, जो इस साल घट कर 60 बिलियन डॉलर पर पहुंच गया है। इसकी वजह भारी बिकवाली और भारतीय मुद्रा का उतार-चढ़ाव है।
सिटी ग्रुप की रिपोर्ट के मुताबिक, सिंगापुर, हांगकांग और थाइलैंड की अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आने की आशंका है, जबकि भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर इनकी तुलना में कहीं बेहतर होने की उम्मीद है।
भारतीय बाजार के मुकाबले एशियाई और यूरोपीय बाजार मुनाफे के लिए ज्यादा मुफीद
अक्टूबर महीने में विदेशी संस्थागत निवेशक भारतीय बाजार से करीब 16,890 करोड़ रुपये निकाल चुके हैं
एक माह में निकाली गई यह अब तक की सबसे बडी रकम
अमेरिका में आशंका से कम मार, एशिया गुलजार
वैश्विक वित्तीय संकट का असर अमेरिका में गहराता जा रहा है। लेकिन आशंका से कम मार पड़ने पर वहां की सरकार ने कुछ राहत की सांस ली है। तीसरी तिमाही में अमेरिका के सकल घरेलू उत्पाद की सालाना दर में करीब 0.3 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है।
विशेषज्ञ 0.5 फीसदी की गिरावट की आशंका व्यक्त कर रहे थे। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में यह गिरावट 7 सालों के बाद आई है। इसकी प्रमुख वजह मंदी है, जिसमें उपभोक्ता मांग में गिरावट आई है।
एशियाई बाजार उछले: अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज दरों में कटौती और अरबों डॉलर की मुद्रा अदला-बदली (स्वैप) की घोषणा ने गुरुवार को एशियाई बाजारों में उछाल ला दिया।