बाजार नियामक की तरफ से प्रस्तावित नये परिसंपत्ति वर्ग (जो म्युचुअल फंडों और पोर्टफोलियो मैनेजमेंट सर्विसेज के बीच फिट बैठेगा) से देसी परिसंपत्ति प्रबंधन कंपनियों (एएमसी) को कारोबार के नए मौके मिलेंगे। हालांकि उद्योग के विशेषज्ञों का मानना है कि यह फंडों और पीएमएस की कुछ मौजूदा परिसंपत्तियों का हिस्सा खा सकता है।
बाजार नियामक सेबी ने मंगलवार को ऐसे निवेशकों के लिए नया निवेश माध्यम शुरू करने का प्रस्ताव रखा है जो बाजार में ज्यादा जोखिम वाले दांव लगाने के इच्छुक हैं, लेकिन जिनकी पहुंच पोर्टफोलियो प्रबंधन सेवाओं (पीएमएस) या वैकल्पिक निवेश फंड (AIएफ) तक नहीं हैं। नियामक ने निवेश का न्यूनतम आकार 10 लाख रुपये रखने का प्रस्ताव किया है जो पीएमएस की न्यूनतम सीमा 50 लाख रुपये से काफी कम है।
इंडियालॉ एलएलपी के वरिष्ठ पार्टनर शिजू पीवी ने कहा कि एएमसी के लिए यह अच्छा मौका है क्योंकि उनके पास निवेशकों के लिए कई पेशकश हो सकती हैं। हालांकि इसके लिए उन्हें जरूरी विशेषज्ञता विकसित करनी होगी। यह पीएमएस निवेश का कुछ हिस्सा ले सकता है और इसकी मांग भी उठेगी कि उन्हें भी नए परिसंपत्ति वर्ग में आने दिया जाए।
एडलवाइस एमएफ की एमडी और सीईओ राधिका गुप्ता ने भी कहा कि नए परिसंपत्ति वर्ग के बाद से फंडों को एक ही शैली या एक व्यक्ति से संचालित कारोबार के बजाय बहु विशेषज्ञता वाले केंद्र तैयार करने होंगे। प्रस्तावित नई पेशकश में न सिर्फ पीएमएस के मुकाबले निवेश का आकार कम होगा बल्कि इससे ऐसी योजनाएं भी सामने आएंगी जो फंडों और पीएमएस ढांचे के तहत संभव होंगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह परिसंपत्ति वर्ग पीएमएस और फंडों के मौजूदा निवेशक आधार से भी परिसंपत्तियां हासिल करने में मदद करेगा।
पीएमएस फर्म कैपिटलमाइंड के सीईओ दीपक शेनॉय ने कहा कि पीएमएस में प्रतिस्पर्धा पहले से ही काफी ज्यादा है – पीएमस फर्मों के बीच भी है और उनको फंडों तथा AIएफ से भी प्रतिस्पर्धा का सामना करना होता है। अब प्रतिस्पर्धा और बढ़ जाएगी। हम उम्मीद करते हैं कि पीएमएस सेवा प्रदाताओं को भी आगे ऐसी इकाइयों के परिचालन की इजाजत मिलेगी क्योंकि उनके पास उच्च जोखिम वाली रणनीतियों के प्रबंधन का अनुभव है।
इस फर्म ने भी म्युचुअल फंड लाइसेंस के लिए आवेदन कर रखा है। परिसंपत्ति प्रबंधकों और निवेशक सलाहकारों को प्रस्तावित श्रेणी अपने क्लाइंटों के पोर्टफोलियो में एकदम सही से फिट बैठती दिख रही है। प्लान अहेड वेल्थ एडवाइजर्स के संस्थापक और सीईओ विशाल धवन ने कहा कि इससे निवेशकों के लिए ज्यादा अवसर और उनकी पहुंच बढ़ जाएगी। साथ ही उनको लॉन्ग-शॉर्ट रणनीति का विकल्प मिल सकता है।
नुवामा वेल्थ के अध्यक्ष राहुल जैन ने कहा कि योजनाओं की ऐसी श्रेणी की जरूरत थी ताकि उन रणनीतियों तक पहुंच हो जो पोर्टफोलियो में वैल्यू जोड़ सके। लेकिन म्युचुअल फंडों के जरिये यह अभी उपलब्ध नहीं है। ज्यादा अहम यह भी है कि ये रणनीतियां नियमन के तहत होंगी और इन पर अमल अनुभवी प्रोफेशनल करेंगे।
विशेषज्ञों के मुताबिक म्युचुअल फंड के निवेशकों के एक बड़े आधार के पास नए परिसंपत्ति वर्ग में निवेश के लिए न्यूनतम आकार का 10 लाख रुपये का कोष है। वित्त वर्ष 2024 के आखिर में एचएनआई निवेशकों का म्युचुअल फंडों में 9 लाख करोड़ रुपये का निवेश था। वित्त वर्ष 21 के आखिर में फंडों में उनका निवेश 3.6 लाख करोड़ रुपये था।
एम्फी के मुताबिक म्युचुअल फंड के किसी खाते में अगर एक किस्त के जरिये 2 लाख रुपये से ज्यादा का निवेश होता है तो उसे एचएनआई खाता माना जाता है। वास्तव में फंडों की एयूएम में एचएनआई की हिस्सेदारी मार्च 2024 में समाप्त तीन वर्ष में 35.5 फीसदी से बढ़कर 38.3 फीसदी पर पहुंच गई है। इस दौरान खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी 55 फीसदी से घटकर 52.8 फीसदी रह गई।