बाजार में बढ़त का रुख, अच्छी खासी खुदरा भागीदारी और पर्याप्त नकदी स्मॉलकैप व माइक्रोकैप शेयरों में तेजी के लिए काफी मुफीद होते हैं। हालांकि स्टॉक एक्सचेंजों और बाजार नियामक सेबी की बढ़ती निगरानी से सेंटिमेंट और अत्याधिक सटोरिया गतिविधियों को नियंत्रित रखने में मदद मिली है। यह कहना है बाजार पर नजर रखने वालों का। साल की शुरुआत में माइक्रोकैप (जिसका बाजार पूंजीकरण 500 करोड़ रुपये से कम है) में करीब 1,750 शेयर थे। इनमें से करीब दो तिहाई ने इस साल अब तक स्मॉलकैप इंडेक्स के मुकाबले कमजोर प्रदर्शन किया है। माइक्रोकैप शेयरों यानी निफ्टी माइक्रोकैप 250 इंडेक्स में औसत बढ़ोतरी हालांकि निप्टी स्मॉलकैप 250 की तरह ही रही है। विशेषज्ञों ने कहा, अगर सख्त निगरानी की व्यवस्था नहीं होती तो माइक्रोकैप यानी तथाकथित चवन्नी शेयरों की कीमतों में अतार्किक बढ़ोतरी देखने को मिल सकती थी।
इक्विनॉमिक्स के संस्थापक जी. चोकालिंगम ने कहा, इस क्षेत्र की कई कंपनियों ने बाजार पूंजीकरण में भारी नुकसान का सामना किया है। सेबी ने निगरानी के बढ़े कदम (ईएसएम) जैसी पाबंदी लगाई है और इससे सटोरिया गतिविधियों पर लगाम लगी है।
सेबी ने माइक्रो-स्मॉल कंपनियों (जिनका बाजार पूंजीकरण 500 करोड़ रुपये से कम है) के लिए जून में ईएसएम ढांचा लागू किया। हालांकि कुछ प्रावधानों में बाद में ढील दी गई, लेकिन उच्च कीमत प्रदर्शित करने वाले शेयरों के लिए निगरानी की व्यवस्था लागू की गई। इन पाबंदियों में 100 फीसदी अग्रिम मार्जिन और हलचल वाले शेयरों के लिए ट्रेड टु ट्रेड सेटलमेंट शामिल है, जहां शेयरों की अनिवार्य तौर पर डिलिवरी होती है।
स्वतंत्र बाजार विश्लेषक अंबरीश बालिगा ने कहा, एक्सचेंजों में काफी निगरानी हो रही है। अगर किसी शेयर में तीन या चार दिन तक असामान्य हलचल देखने को मिलती है तो वह निगरानी के दायरे में आ जाता है। इस सेगमेंट में ज्यादातर गतिविधियां सटोरिया होती थी, लेकिन निगरानी के इन कदमों से अब पूरा ध्यान एसएमई एक्सचेंज पर शिफ्ट हो गया है। पिछले दो साल में एसएमई सेगमेंट में आने वाले आईपीओ मल्टीबैगर यानी खासी कमाई वाले बन गए हैं।
आईडीबीआई कैपिटल के शोध प्रमुख ए के प्रभाकर ने कहा, अल्पावधि वाले ट्रेड के लिए प्रोत्साहन अब नए कदमों की भेंट चढ़ गया है। इसके अतिरिक्त, चूंकि हम तेजी के दौर के शुरुआती स्तर पर हैं, लिहाजा इन माइक्रोकैप शेयरों की ओर गतिविधियां शिफ्ट होने में समय लग सकता है।
ईएसएम ढांचे से हालांकि सटोरिया गतिविधियों पर लगाम कसने में मदद मिली है। शुरुआती नियमों को काफी सख्त माना गया, लिहाजा इस पर कानूनी संघर्ष हुआ और एक्सचेंज इस ढांचे को हटाने के लिए बाध्य हुए।
इससे पहले ईएसएम स्टेज-2 के दायरे में रखे जाने वाले शेयरों को सप्ताह में एक बार ट्रेड की इजाजत थी, वह भी सीमित कॉल ऐक्शन के साथ। जुलाई में नियमों में ढील दी गई और दो फीसदी कीमत दायरे के साथ इन्हें हर दिन कारोबार की अनुमति मिली, लेकिन इसके साथ 100 फीसदी मार्जिन अनिवार्य किया गया।
बीएसई में सूचीबद्ध कंपनी मरकरी ईवी टेक ने नए ढांचे से राहत पाने के लिए प्रतिभूति अपील पंचाट यानी सैट का दरवाजा खटखटाया था। कंपनी ने कहा था कि स्टेज-2 में शामिल किए जाने से उनका शेयर इलिक्विड हो गया, जिससे कंपनी व निवेशकों को नुकसान हुआ।
बाजार के प्रतिभागियों का मानना है कि ईएसएम ढांचा हालांकि सटोरिया गतिविधियों को समाप्त कर रहा है, लेकिन यह नकदी भी बाहर कर रहा है और नई व्यवस्था में इस पर नजर डाली जानी चाहिए।
केआर चोकसी फिनसर्व के प्रबंध निदेशक देवेन चोकसी ने कहा, नियामक को मार्केट मेकर्स के सृजन की सुविधा देनी चाहिए, जो स्मॉल माइक्रोकैप के लिए पारदर्शी दोतरफा कीमत देगा।
चोकसी ने कहा, इस सेगमेंट में नकदी के कुछ मसले हैं और कुछ एचएनआई इसका फायदा उठा रहे हैं। कई म्युचुअल फंड (खास तौर से स्मॉलकैप फंड) तब तक निवेश नहीं करते जबतक कि कंपनी का बाजार पूंजीकरण 1,000 करोड़ रुपये के पार नहीं किल जाता। किसी भी समय में बाजार में आपूर्ति व मांग दोनों पक्षों में पर्याप्त गहराई होनी चाहिए। क्योंकि गहराई के अभाव में इस सेगमेंट में काफी ज्यादा उतारचढ़ाव दिखता है।