विदेशी निवेशकों द्वारा की जा रही भारी मात्रा बिकवाली से बन रही स्थितियों के मद्देनजर कुछ मध्यम दर्जे की कंपनियों के प्रवर्तकों को भारी मुश्किलों में डाल रही है।
दरअसल इन प्रमोटरों या उनकी संस्थाओं ने अपनी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से व्यक्तिगत होल्डिंग के एवज में गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं (एनबीएफसी) से उधार लिया है। भारी गिरावट और बाजार के बदले हालातों में अब वह खुद को फंसा हुआ महसूस कर रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों में इन एनबीएफसी ने कोर प्रोजेक्ट, रांक्लिन सॉल्यूशन सहित कई अन्य कंपनियों के अपने पास गिरवी रखे शेयरों की जम कर बिकवाली की जिससे इन कंपनियों के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई। हालांकि इस बारे में कोर प्रोजेक्ट के सीएमडी संजीव मनसोत्रा का कहना है कि इंडियाबुल्स द्वारा बेची गई हिस्सेदारी प्रमोटरों की हिस्सेदारी नहीं थी।
कुछ हाई नेटवर्थ इंडिविजुअल (एचएनआई) जिनके पास शुरुआत से ही कंपनी के शेयर थे, ने बाजार से कुछ अतिरिक्त शेयर हासिल करने के लिए अपनी हिस्सेदारी गिरवी रखी थी। अब यह अतिरिक्त मार्जिन मनी के लिए बाजार में बेची गई है।
बाजार में न सिर्फ इस तरह की कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइजेशन तेजी से घटा है, बल्कि इन कर्जधारकों के लिए अतिरिक्त सिक्योरिटीज जुटाना भी खासा मुश्किल हो गया है। इनके द्वारा बतौर जमानत रखे गए शेयरों की वैल्यू पिछले कुछ माहों में तेजी से घटी है। नतीजतन एनबीएफसी ने इन प्रमोटरों को कर्ज चुकाने या फिर जमानत में और शेयर रखने को कहा है।
बैंक लोन के अभाव में इन एनबीएफसी से कर्ज लेने वाली कई रियल एस्टेट कंपनियों की हालत भी इससे जुदा नहीं है। इन कंपनियों के प्रमोटरों ने अतिरिक्त जमानत के रूप में अपनी जमीनें इन एनबीएफसियों को दी है, जबकि इन्हें अभी नहीं बल्कि तीन साल बाद अपने ऋण चुकाने हैं।
एनबीएफसी ने वैल्यू घटने से बनी स्थिति में अतिरिक्त जरूरतों को पूरा करने में नाकाम रहने वाले प्रमोटरों के शेयरों को बाजार में बेचना प्रारंभ कर दिया है। एक रियलिटी कंपनी के प्रमोटर ने बताया कि प्रमोटरों के अतिरिक्त शेयर या फिर असेट की व्यवस्था करने में नाकाम रहने के बाद वित्तीय कंपनियां उनके शेयरों को बाजार में बेच रही है।
एक वित्तीय कंपनी के वरिष्ठ कार्यकारी ने बताया कि जो ऑर्किड कंपनी के साथ हुआ वह कई अन्य कंपनियों के साथ भी हो सकता है क्योंकि कई कंपनियों के प्रमोटर अधिक लागत के लोन चुकाने में नाकाम रहे हैं। अब इनके शेयरों के बिक्री उसी समय रुक सकती है जब बाजार तेजी से चढ़ जाए और इन शेयरों का मूल्यांकन बढ़े।
अन्यथा वित्तीय कंपनियों के शेयरों को बेचने के अतिरिक्त कोई चारा नहीं है। उल्लेखनीय है कि 2007 में जब इंडियाबुल्स और रेलिगेयर फाइनेंस ने गिरवी रखे हुए रखे हुए ऑर्किड के प्रमोटरों के शेयरों की बिकवाली की तो रैनबैक्सी ने ऑर्किड केमिकल्स की 14.9 फीसदी हिस्सेदारी खरीद ली थी।