सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (PSB) के शेयरों में दो साल तक रही तेजी के बाद फंड मैनेजरों ने कुछ मुनाफावसूली की है। नौ तिमाहियों में पहली बार देसी म्युचुअल फंड PSB शेयरों में शुद्ध बिकवाल रहे और मार्च तिमाही के दौरान उन्होंने 1,800 करोड़ रुपये के शेयर बेचे। यह जानकारी आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज की रिपोर्ट के विश्लेषण से मिली।
पिछली आठ तिमाहियों में फंड हाउस ने सरकारी बैंकों में 10,000 करोड़ रुपये से ज्यादा का निवेश किया था क्योंकि निजी बैंकों के मुकाबले ये शेयर काफी छूट पर मिल रहे थे।
फंड मैनेजरों ने कहा कि PSB में अब और बढ़त की संभावना अल्पावधि में सीमित रह सकती है क्योंकि ज्यादातर सकारात्मक चीजें पहले ही समाहित हो चुकी हैं। इसके अलावा निजी क्षेत्र के बैंकों के शेयर अब ज्यादा आकर्षक बन गए हैं।
बंधन एमएफ के वरिष्ठ फंड मैनेजर (इक्विटी) सुमित अग्रवाल ने कहा, चूंकि ज्यादातर सुधार पहले ही स्पष्ट हो चुके हैं और मूल्यांकन का स्तर उचित है, ऐसे में यहां से आगे बढ़ने की यात्रा काफी मुश्किल भरी होगी। दूसरी ओर, निजी क्षेत्र में कुछ बड़े बैंक हैं, जिसने पिछले दो साल से निवेशकों को कोई रिटर्न नहीं दिया है। कीमत के अंतर और सहज जोखिम-प्रतिफल को देखते हुए कुछ रकम इन बैंकों में लगाने और पीएसयू बैंकों से मुनाफावसूली का मतलब बनता है।
वित्त वर्ष 23 में PSB समूह सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला क्षेत्रीय सूचकांक रहा और उसमें 36 फीसदी की उछाल आई जबकि बेंचमार्क सेंसेक्स में महज एक फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई।
एमएफ की बिकवाली के बीच अगर मार्च तिमाही में 14 फीसदी की गिरावट नहीं आई होती तो यह बढ़ोतरी और ज्यादा हो सकती थी।
20 अग्रणी फंड हाउस ने इक्विटी पोर्टफोलियो का औसतन 3.8 फीसदी दिसंबर तिमाही के आखिर में पीएसयू शेयरों में लगा हुआ था। मार्च तिमाही के आखिर में यह निवेश घटकर 3.2 फीसदी रह गया। यह जानकारी मोतीलाल ओसवाल फाइनैंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट से मिली।
शेयरों में तेजी कोविड के बाद कारोबार के आयाम में मजबूत सुधार की पृष्ठभूमि में दर्ज हुई। इनकी परिसंपत्ति गुणवत्ता महामारी की शुरुआत से पहले से ही बेहतर स्थिति में थी। ऐसे में पिछले कुछ वर्षों में ज्यादा उधारी से उनका मार्जिन बढ़ा और दरों में बढ़ोतरी से सरकारी बैंकों का उम्दा मुनाफा सुनिश्चित हुआ। वित्त वर्ष 22 में कई PSB ने शुद्ध लाभ दोगुना होने की सूचना दी।
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स्मॉलकेस के मैनेजर और ग्रीन पोर्टफोलियो के सह-संस्थापक डी. शर्मा ने कहा, ब्याज दरें बढ़ने के साथ बैंकों का मार्जिन बढ़ रहा है। साल 2021 में नकदी ज्यादा थी और वह ज्यादा उधारी के उठाव सुनिश्चित कर रहा था। इसी वजह से पिछली कुछ तिमाहियों में इन बैंकों के नतीजे काफी अच्छे रहे।
सिलिकन वैली बैंक के धराशायी होने के बाद बैंकिंग शेयरों को लेकर मार्च में सेंटिमेंट खराब हो गया।
मार्च में भारतीय इक्विटी के शुद्ध खरीदार बने विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक वित्तीय शेयरों के शुद्ध बिकवाल बने हुए हैं। देसी कारकों की बात करें तो अनुमान है कि उच्च ब्याज दरों के कारण बैंकों की रफ्तार थोड़ी नरम हो सकती है।