Expense Ratios: अगर आप चाहते हैं कि आपके म्युचुअल फंड निवेश से ज्यादा से ज्यादा रिटर्न मिले, तो सिर्फ फंड की परफॉर्मेंस पर ही नहीं बल्कि खर्च यानी एक्सपेंश रेश्यो (expense ratios) पर भी ध्यान देना जरूरी है। क्या आपने कभी सोचा है कि दो एक जैसे म्युचुअल फंड्स के एक्सपेंश रेश्यो में अंतर क्यों होता है? अक्सर निवेशक यह मानते हैं कि ज्यादा एक्सपेंश रेश्यो वाले फंड बेहतर प्रदर्शन करते हैं लेकिन यह हमेशा सही नहीं होता। वास्तव में, म्युचुअल फंड में छोटी-छोटी लागतें जैसे एक्सपेंश रेश्यो, मैनेजमेंट फीस या ब्रोकरेज चार्ज लॉन्ग टर्म में आपके कुल रिटर्न को काफी हद तक प्रभावित कर सकती हैं। कम से कम लागत में ज्यादा से ज्यादा रिटर्न हासिल करने के लिए आपको एक्सपेंश रेश्यो का गणित समझने की जरूरत है। अक्सर ज्यादा एक्सपेंश रेश्यो चुपचाप आपके वेल्थ को घटाता है।
एक जैसे दो म्युचुअल फंड्स के एक्सपेंश रेश्यो अलग-अलग हो सकते हैं, यदि वे अलग-अलग म्युचुअल फंड हाउस से जुड़े हों। इसका कारण यह है कि एक्सपेंश रेश्यो तय करते समय कई फैक्टर काम करते हैं। मुख्य रूप से किसी फंड का AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) इसका सबसे बड़ा निर्धारक होता है। आमतौर पर, जितना ज्यादा AUM होगा, उतना कम एक्सपेंश रेश्यो होगा। Moneyfront के MD और CEO मोहित गांग के मुताबिक, एक्सपेंश रेश्यो के प्रमुख घटक (components) निम्नलिखित हैं:
मैनेजमेंट फीस: यह शुल्क फंड मैनेजर को दिया जाता है जो निवेश के लिए सही सिक्योरिटीज चुनने और फंड को संचालित करने का कार्य करता है। यह फीस फंड के आकार, निवेश रणनीति और निवेश शैली पर निर्भर करती है। अगर फंड का प्रबंधन एक अनुभवी टीम कर रही है तो फीस आमतौर पर अधिक होती है।
डिस्ट्रीब्यूटर फीस: 12b-1 फीस एक वार्षिक मार्केटिंग या वितरण शुल्क है, जो निवेशकों से वसूला जाता है ताकि फंड की मार्केटिंग और बिक्री से जुड़ी लागत को कवर किया जा सके। यह शुल्क भी फंड के एक्सपेंश रेश्यो में शामिल होता है।
ब्रोकरेज फीस: यह फीस आमतौर पर तब बढ़ जाती है जब फंड की ट्रेडिंग गतिविधियां ज्यादा होती हैं। इसका सीधा संबंध फंड की निवेश शैली से होता है — जितनी अधिक खरीद-बिक्री होगी, उतनी ही अधिक ब्रोकरेज फीस लगेगी।
एक्सपेंस रेश्यो वह एनुअल मेंटेनेंस चार्ज है जो म्युचुअल फंड्स अपने ऑपरेशन खर्चों को पूरा करने के लिए निवेशकों से वसूलते हैं। इसमें फंड के सालाना ऑपरेशनल खर्च जैसे मैनेजमेंट फीस, अलोकेशन चार्जेस और विज्ञापन खर्च आदि शामिल होते हैं।
सेबी (SEBI) ने म्युचुअल फंड्स के टोटल एक्सपेंस रेश्यो पर सीमा तय की है। नीचे इक्विटी म्युचुअल फंड्स के लिए सेबी द्वारा निर्धारित सीमा दी गई है:
AUM of Schemes (in ₹ Crores) | Total Expense Ratio Limit |
---|---|
₹0 – ₹500 | 2.25% |
₹501 – ₹750 | 2.00% |
₹751 – ₹2,000 | 1.75% |
₹2,001 – ₹5,000 | 1.60% |
₹5,001 – ₹10,000 | 1.50% |
₹10,001 – ₹50,000 | 0.05% (reduces with every ₹5,000 Cr increase in daily net assets) |
Remaining Assets | 1.50% |
स्त्रोत : आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड
कम AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) वाले फंड्स में आमतौर पर एक्सपेंस रेश्यो अधिक होता है, जिसकी अधिकतम सीमा 2.25% तक होती है। वहीं, ज्यादा AUM वाली स्कीम्स में यह रेश्यो अपेक्षाकृत कम या मध्यम होता है, जिसकी अधिकतम सीमा 1.5% तक होती है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी फंड का आकार (AUM) ही उसके एक्सपेंस रेश्यो का प्रमुख निर्धारक होता है, न कि एएमसी (AMC) या फंड की कैटेगरी।
फंड का आकार (Size) ही एक्सपेंस रेश्यो तय करने में सबसे अहम भूमिका निभाता है। आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अर्जुन गुहा ठाकुरता ने कहा, “निवेशकों के बीच यह एक आम गलतफहमी है कि ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो का मतलब बेहतर फंड मैनेजमेंट या ज्यादा मुनाफे की संभावना होता है। जबकि सच्चाई यह है कि अगर कोई अनुभवी प्रोफेशनल फंड को समझदारी से मैनेज करें, तो कम एक्सपेंस रेश्यो वाला म्युचुअल फंड भी शानदार रिटर्न दे सकता है। कम एक्सपेंस रेश्यो का मतलब यह है कि निवेशकों को उनकी कमाई का ज्यादा हिस्सा मिलता है और कम हिस्सा खर्चों में कटता है।”
AMC | Scheme Name | AUM (Rs Cr) | Expense Ratio (%) | 1 Year CAGR (%) | 3 Year CAGR (%) | 5 Year CAGR (%) |
---|---|---|---|---|---|---|
Flexi Cap Fund | ||||||
Taurus MF | Taurus Flexi Cap Fund-Reg(G) | 350.54 | 2.62 | 4.97 | 12.24 | 20.54 |
Shriram MF | Shriram Flexi Cap Fund-Reg(G) | 129.67 | 2.39 | -3.82 | 9.45 | 17.61 |
LIC MF | LIC MF Flexi Cap Fund(G) | 992.01 | 2.33 | 4.04 | 10.41 | 17.22 |
HDFC MF | HDFC Flexi Cap Fund(G) | 65,966.82 | 1.43 | 15.80 | 21.91 | 31.34 |
Kotak MF | Kotak Flexicap Fund(G) | 49,112.04 | 1.49 | 10.60 | 14.20 | 22.47 |
SBI MF | SBI Flexicap Fund-Reg(G) | 21,592.65 | 1.69 | 6.90 | 10.02 | 21.14 |
Large Cap Fund | ||||||
Taurus MF | Taurus Large Cap Fund-Reg(G) | 47.48 | 2.57 | 5.78 | 13.01 | 20.28 |
Union MF | Union Largecap Fund-Reg(G) | 423.44 | 2.50 | 4.23 | 10.79 | 21.16 |
Groww MF | Groww Largecap Fund-Reg(G) | 119.34 | 2.43 | 3.25 | 11.40 | 18.63 |
ICICI Pru MF | ICICI Pru Bluechip Fund(G) | 63,296.96 | 1.47 | 8.55 | 15.85 | 25.63 |
Mirae MF | Mirae Asset Large Cap Fund-Reg(G) | 37,845.29 | 1.53 | 9.48 | 10.39 | 21.06 |
SBI MF | SBI BlueChip Fund-Reg(G) | 49,128.07 | 1.53 | 10.42 | 12.63 | 22.80 |
स्त्रोत : आनंद राठी वेल्थ लिमिटेड
टेबल में यह साफ देखा जा सकता है कि ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो वाला फंड जरूरी नहीं कि ज्यादा रिटर्न दे। उसी तरह, ज्यादा AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) और कम एक्सपेंस रेश्यो वाला फंड कमजोर प्रदर्शन कर रहा है, यह मान लेना भी सही नहीं है। ठाकुरता कहते हैं, “वास्तव में, बड़े साइज की स्कीमें अक्सर उन प्रमुख एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) द्वारा चलाई जाती हैं जिनके पास इंडस्ट्री का बड़ा हिस्सा होता है और जिनके फंड मैनेजर्स अनुभवी होते हैं जो बेहतर रिटर्न (अल्फा जेनरेट करने) की क्षमता रखते हैं।
Moneyfront के MD और CEO मोहित गांग कहते हैं, “ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो का मतलब यह नहीं होता कि फंड अपने प्रतिद्वंद्वी अन्य फंड्स से बेहतर है। इसका यह भी संकेत हो सकता है कि उस फंड में ट्रेडिंग गतिविधियां ज्यादा हैं जिससे उसमें अस्थिरता (वोलैटिलिटी) बढ़ जाती है। साथ ही, जैसे-जैसे एक्सपेंस रेश्यो बढ़ता है वैसे-वैसे निवेशकों को मिलने वाला नेट रिटर्न घट सकता है। वहीं, कम एक्सपेंस रेश्यो वाला फंड भी बराबर या उससे बेहतर प्रदर्शन कर सकता है।”
गांग ने निवेशकों को सलाह दी कि किसी फंड का चयन करते समय सिर्फ एक्सपेंस रेश्यो पर ध्यान नहीं देना चाहिए बल्कि फंड के नेट रिटर्न और उसके प्रदर्शन को प्राथमिकता देनी चाहिए। एक्सपेंस रेश्यो एक महत्वपूर्ण कारक है, लेकिन फंड चुनने का यह अकेला आधार नहीं होना चाहिए।
गुहा ने कहा, “फंड चुनते समय निवेशकों को एक्सपेंस रेश्यो के बजाय फंड की जोखिम-समायोजित रिटर्न देने की क्षमता (risk-adjusted return generation potential) पर ध्यान देना चाहिए।
ज्यादा एक्सपेंस रेश्यो चुपचाप आपकी वेल्थ को घटाता है। आइए एक काल्पनिक लेकिन आम निवेश स्थिति के माध्यम से समझते हैं। मान लीजिए आपको दो म्युचुअल फंड्स ऑफर किए जाते हैं: फंड A और फंड B। दोनों ही फंड्स सालाना 12% रिटर्न देने का दावा करते हैं। दिखने में दोनों फंड्स लगभग एक जैसे हैं, लेकिन फंड A का एक्सपेंस रेश्यो 0.5% है जबकि फंड B का एक्सपेंस रेश्यो 2% है।
अब सवाल यह उठता है कि आखिर फंड B का खर्च ज्यादा क्यों है? क्या उनके पास ऐसा कोई छुपा हुआ तरीका है जिससे वे बेहतर प्रदर्शन कर पाएंगे? शायद यही सोचकर आप जोखिम उठाने का फैसला करते हैं और ₹5,000 की मासिक SIP शुरू कर देते हैं।
Years | Fund A with 0.5% Expense Ratio (Rs lakh) |
Fund B with 2% Expense Ratio (Rs lakh) |
---|---|---|
10 | 11,27,721 | 10,32,760 |
20 | 47,69,434 | 39,02,376 |
30 | 1,56,39,029 | 1,12,96,628 |
These values assume an investment of ₹5,000 each month |
स्त्रोत: फिन लाइव म्युचुअल फंड एक्सपेंस रेश्यो कैलकुलेटर पर आधारित कैलकुलेशन
जब दोनों फंड्स का रिटर्न एक जैसा है, तो सिर्फ 1.5% के एक्सपेंस रेश्यो के अंतर से इतना बड़ा फर्क कैसे आ गया? जिस तरह कंपाउंडिंग आपके रिटर्न को बर्फ के गोले की तरह बढ़ाती है, उसी तरह यह आपके खर्चों को भी बढ़ा देती है। कंपाउंडिंग को एक घूमते हुए सिक्के की तरह समझें — एक तरफ होता है शानदार रिटर्न, और दूसरी तरफ छिपा हुआ खर्च। ये दोनों साथ-साथ चलते हैं, एक के बिना दूसरा अधूरा है।
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गांग का मानना है कि खर्च को कम करने का तरीका यह है कि ऐसे म्युचुअल फंड्स चुने जाएं जिनका एक्सपेंस रेश्यो कम हो। इसके अलावा, डायरेक्ट प्लान को चुनने से भी लागत में बचत की जा सकती है। वहीं, रिटर्न को अधिकतम करने के लिए SIP (सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान) के जरिए निवेश करना बेहतर होता है। साथ ही, ऐसे फंड्स चुनना चाहिए जिनमें पोर्टफोलियो टर्नओवर कम हो क्योंकि ज्यादा टर्नओवर का मतलब है ज्यादा खरीद-बिक्री, जिससे ट्रेडिंग कॉस्ट बढ़ती है और रिटर्न पर असर पड़ता है।
ठाकुरता के मुताबिक, निवेशकों को यह समझना चाहिए कि जिस फंड में वे निवेश कर रहे हैं, उसके पोर्टफोलियो में कमाई (earnings) बढ़ने की कितनी संभावना है। ऐसा करने से वे एक्सपेंस रेश्यो पर ज्यादा ध्यान दिए बिना बेहतर रिटर्न कमा सकते हैं। इसका सबसे अच्छा तरीका यह है कि वे एक्टिवली मैनेज्ड डाइवर्सिफाइड फंड्स में निवेश करें और अलग-अलग मार्केट कैप, कैटेगरीज और AMCs में एक्सपोजर रखें, ताकि कंसंट्रेशन रिस्क (एक ही जगह ज्यादा निवेश का खतरा) कम हो सके।