कई इक्विटी म्युचुअल फंड्स का खर्च अनुपात (Expense Ratio) सितंबर 2024 से मार्च 2025 के बीच बढ़ गया है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यह बदलाव देखा गया है। निवेशकों को इस पर तुरंत प्रतिक्रिया देने के बजाय सोच-समझकर फैसला लेना चाहिए।
कुल खर्च अनुपात (Total Expense Ratio – TER) उस फंड पर हुए खर्च को उसके AUM (एसेट अंडर मैनेजमेंट) से डिवाइड करके निकाला जाता है। सैंक्टम वेल्थ के इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट हेड आलेख यादव का कहना है, “मार्केट में गिरावट की वजह से कई फंड्स का AUM घटा है, लेकिन उन पर होने वाला खर्च जस का तस है। इसी कारण TER बढ़ा हुआ दिख रहा है।”
कुछ मामलों में AUM बढ़ने के बावजूद भी TER बढ़ गया है। मैक्सिओम वेल्थ के स्ट्रैटेजी डायरेक्टर मनोज त्रिवेदी कहते हैं, “फंड हाउस कभी-कभी अपनी लागत बढ़ने की वजह से फीस बढ़ाते हैं, और कभी-कभी इसलिए भी बढ़ा देते हैं क्योंकि उन्हें मुनाफा बढ़ाने का मौका दिखता है।”
हालांकि मार्केट रेगुलेटर सेबी ने फंड के आकार के आधार पर शुल्क की अधिकतम सीमा तय की हुई है, लेकिन कई फंड इस सीमा से नीचे काम करते हैं, जिससे उन्हें चार्ज बढ़ाने की छूट मिल जाती है।
अक्सर निवेशकों को खर्चों के बारे में पूरी जानकारी नहीं होती। फिड्युसरीज के फाउंडर और सेबी में रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार अविनाश लूथरिया कहते हैं, “रेगुलर प्लान लेने वाले कई ग्राहक फीस के बारे में ज्यादा नहीं जानते।”
अगर TER ज्यादा होता है, तो इसका मतलब है कि म्युचुअल फंड की कमाई का बड़ा हिस्सा एसेट मैनेजमेंट कंपनी (AMC) को चला जाता है। और निवेशक को कम रिटर्न मिलता है—जब तक कि फंड से मिलने वाला रिटर्न बहुत अच्छा न हो।
जब भी TER में बदलाव होता है, तो फंड हाउस को निवेशकों को ईमेल के जरिए इसकी जानकारी देना जरूरी होता है। लूथरिया कहते हैं कि निवेशकों को नेशनल सिक्योरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) और सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज लिमिटेड (CDSL) की ओर से मार्च और सितंबर में भेजे जाने वाले संयुक्त खाता विवरण (Consolidated Account Statement) भी जरूर चेक करने चाहिए, जिनमें TER की जानकारी होती है।
किसी फंड का TER (कुल खर्च अनुपात) उसकी कैटेगरी के औसत से तुलना करके देखना चाहिए। यादव कहते हैं, “किसी फंड का TER उसकी ही कैटेगरी के अन्य फंड्स से तुलना करके जांचना चाहिए।”
केवल TER में बढ़ोतरी पर ध्यान देना ठीक नहीं है। लूथरिया कहते हैं, “यह देखें कि जो नया खर्च है, वह कैटेगरी में उपलब्ध दूसरे विकल्पों की तुलना में ठीक है या नहीं।”
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कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि एक्टिव फंड्स में खर्च अनुपात (TER) की अहमियत उतनी नहीं होती। त्रिवेदी कहते हैं, “निवेशकों को TER के ज्यादा या कम होने की बजाय उस फंड के रिटर्न पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि रिटर्न TER घटाने के बाद ही दिखाया जाता है।”
हालांकि, अगर खर्च ज्यादा है और रिटर्न खराब है, तो यह चिंता की बात है। यादव कहते हैं, “अगर कोई एक्टिव फंड लगातार कमजोर प्रदर्शन कर रहा है, तो उसमें से निवेश हटा लेना चाहिए।” उनके अनुसार फंड बदलने की दूसरी वजहें भी हो सकती हैं— जैसे फंड मैनेजमेंट की स्ट्रैटेजी में बदलाव या फंड मैनेजर के बदलने पर अगर आपको लगे कि नया मैनेजर उतना सक्षम नहीं है।
एक्टिव फंड्स में लागत (cost) को लेकर सतर्क रहने वाले निवेशक बड़े फंड स्कीम्स को चुन सकते हैं। लूथरिया कहते हैं, “ऐसी स्कीम्स में सेबी की तय की गई सीमा फीस को नियंत्रित रखने में मदद करती है।”
सेक्टर और थीमैटिक फंड्स के खर्च को लेकर भी सावधान रहना चाहिए। लूथरिया कहते हैं, “इनमें से कई फंड्स की फीस सामान्य से ज्यादा होती है।”
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पैसिव फंड्स में भी TER पर कड़ी नजर रखना जरूरी है, क्योंकि इनमें बाजार को मात देने की संभावना नहीं होती। यादव कहते हैं, “ऐसे फंड्स में खर्च अनुपात (TER) बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है।”
अंत में, छोटी फीस बढ़ोतरी के आधार पर फंड बदलना जरूरी नहीं है। लूथरिया कहते हैं, “इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जिस फंड हाउस में आप शिफ्ट करेंगे, वह आगे चलकर फीस नहीं बढ़ाएगा। जब तक फीस में बढ़ोतरी बहुत ज्यादा न हो, तब तक फंड बदलने का फैसला न लें।”
ध्यान रखें कि फंड बदलने पर खर्च भी आता है। यादव कहते हैं, “फंड स्विच करने पर टैक्स भी देना पड़ता है—अगर आपने फंड एक साल से ज्यादा समय तक रखा है तो 12.5% और एक साल से कम रखा है तो 20% टैक्स देना पड़ सकता है।”