Defensive funds: बाजार में गिरावट के दौरान कुछ फंड्स ने अन्य फंड्स और बेंचमार्क की तुलना में नुकसान को बेहतर तरीके से सीमित किया। अब निवेशक यह चर्चा कर रहे हैं कि क्या उन्हें इन फंड्स में शिफ्ट करना चाहिए। इन फंड्स की मजबूती के पीछे कुछ खास रणनीतियां रहीं। मॉर्निंगस्टार इन्वेस्टमेंट रिसर्च इंडिया के डायरेक्टर-मैनेजर रिसर्च कौस्तुभ बेलापुरकर के मुताबिक, “कुछ फंड मैनेजर्स ने अपने पोर्टफोलियो में बड़ी मात्रा में कैश बनाए रखा, जिससे बाजार गिरने पर नुकसान सीमित रहा। हालांकि, केवल कुछ ही फंड मैनेजर्स ने यह रणनीति अपनाई और 20% से ज्यादा कैश होल्ड किया, जबकि अधिकांश फंड्स ने अपने कैश स्तर को 10% से कम रखा।”
बेलापुरकर ने कहा, “कुछ सेक्टर, जैसे फाइनैंशियल सर्विसेज, हेल्थकेयर और सूचना प्रौद्योगिकी (IT), बाजार में गिरावट के दौरान अपेक्षाकृत कम गिरे। जिन फड्स ने इन सेक्टर्स में ज्यादा निवेश किया था, उन्हें कम नुकसान हुआ।”
सैंक्टम वेल्थ के इन्वेस्टमेंट प्रोडक्ट हेड आलेख यादव ने कहा, सब-एसेट एलोकेशन भी एक महत्वपूर्ण कारक रहा। जिन फ्लेक्सीकैप फंड्स ने लार्जकैप शेयरों की ओर ज्यादा झुकाव रखा, उन्होंने बेंचमार्क की तुलना में कम गिरावट दर्ज की।”
जो फंड्स बाजार में गिरावट के दौरान नुकसान को सीमित करने में सफल रहे, वे जरूरी नहीं कि बाजार रिकवरी में सबसे आगे हों। आलेख यादव के अनुसार, “जो फंड्स करेक्शन के दौरान डिफेंसिव हो गए थे, वे बाजार रिकवरी के समय पिछड़ सकते हैं, खासकर जब रिकवरी तेज होती है।”
बाजार में बेहतर प्रदर्शन फंड मैनेजर की रणनीतिक क्षमता पर निर्भर करेगा। बेलापुरकर ने कहा, “अगर किसी मैनेजर ने अधिक मात्रा में कैश होल्ड किया था, तो उसका प्रदर्शन इस पर निर्भर करेगा कि वह कितनी तेजी से उस कैश को फिर से निवेश करता है। वहीं, जिन फंड्स ने सेक्टोरल निवेश से अच्छा प्रदर्शन किया, उनका रिटर्न इस बात पर निर्भर करेगा कि कौन सा सेक्टर पहले रिकवर होता है।”
बाजार में रिकवरी अप्रत्याशित होती है। जो मैनेजर्स बहुत अधिक कैश होल्ड करके बैठे थे, वे अचानक और तेज रिकवरी की स्थिति में अवसर गंवा सकते हैं
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सेबी में रजिस्टर्ड निवेश सलाहकार दीपेश राघव कहते हैं, “अगर किसी फंड की नेट एसेट वैल्यू (NAV) ₹100 से गिरकर ₹50 हो जाती है- जो 50% की गिरावट है- तो उसे फिर से ₹100 तक पहुंचने के लिए 100% की बढ़त दर्ज करनी होगी। गणित उन फंड्स के पक्ष में रहता है जो कम गिरते हैं। जितनी ज्यादा गिरावट होगी, रिकवरी उतनी ही कठिन होगी।”डिफेंसिव फंड्स उतार-चढ़ाव के दौरान पोर्टफोलियो में बनाए रखना आसान होते हैं।
आलेख यादव के अनुसार, “बुल मार्केट में निवेशक थोड़े कम रिटर्न स्वीकार करने के लिए तैयार रहते हैं, लेकिन वे बड़ी गिरावट को पसंद नहीं करते। इसे ‘लॉस एवर्शन’ (loss aversion) कहा जाता है।”
एक से कम बीटा वाले फंड (जो बाजार की तुलना में कम उतार-चढ़ाव वाले होते हैं) स्थिरता प्रदान करते हैं। बेलापुरकर के अनुसार, “जो फंड बाजार गिरने पर कम गिरते हैं और तेजी के दौरान मध्यम रूप से बढ़ते हैं, वे स्थिर रिटर्न देते हैं। ऐसे फंड पोर्टफोलियो को अधिक मजबूत और संतुलित बनाने में मदद करते हैं।”
निवेशकों को अपने एसेट एलोकेशन (इक्विटी, फिक्स्ड इनकम, और गोल्ड का मिश्रण) और सब-एसेट एलोकेशन (लार्जकैप, मिडकैप, और स्मॉलकैप का अनुपात) का मूल्यांकन करना चाहिए। इस गिरावट ने उन्हें उनकी जोखिम सहनशीलता (risk appetite) को समझने का बेहतर अवसर दिया होगा। जिन निवेशकों ने अपनी क्षमता से ज्यादा जोखिम लिया है, उन्हें इक्विटी में अपने निवेश को घटाना चाहिए, खासकर मिडकैप और स्मॉलकैप फंड्स में एक्सपोजर कम करना चाहिए।
राघव के अनुसार, “अपने जोखिम को पहले एसेट और सब-एसेट एलोकेशन के माध्यम से कंट्रोल करने की कोशिश करें।”
लार्जकैप फंड्स पोर्टफोलियो में स्थिरता प्रदान करते हैं, जबकि मिडकैप और स्मॉलकैप फंड्स बाजार में गिरावट के दौरान ज्यादा प्रभावित होते हैं, लेकिन लॉन्ग टर्म में हाई रिटर्न देने की क्षमता रखते हैं।
राघव के अनुसार, “अपनी जोखिम सहने की क्षमता (risk appetite) के आधार पर इन सब-एसेट क्लासेज का सही संतुलन चुनें।”
जब किसी फंड का चयन करें तो सिर्फ हालिया प्रदर्शन न देखें। आलेख यादव के अनुसार, “इस बात पर ध्यान दें कि फंड ने विभिन्न बाजार चक्रों में कैसा प्रदर्शन किया है। उन फंड्स को चुनें, जिन्होंने लंबे समय तक स्थिरता और निरंतरता दिखाई है।”
केवल वे निवेशक जो अस्थिरता (volatility) को सहन कर सकते हैं, उन्हें अधिक उतार-चढ़ाव वाले फंड्स में निवेश करना चाहिए, बशर्ते कि उन फंड्स ने इतिहास में लॉन्ग टर्म में बेहतर रिटर्न दिए हों।