वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस सप्ताह की शुरुआत में दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में उचित बदलाव करने के संकेत दिए थे, हालांकि उन्होंने बदलाव का कोई ब्योरा नहीं दिया था। वहीं उद्योग जगत का मानना है कि बड़ी फर्मों के लिए प्री-पैकेज्ड इंसॉल्वेंसी, समूह दिवाला मानदंडों को संहिताबद्ध करना और परियोजनावार दिवाला में ज्यादा स्पष्टता लाना सरकार की प्राथमिकता सूची में शामिल होगा।
वित्त मंत्री ने 23 जुलाई को कहा था कि आईबीसी में उचित बदलाव, पंचाटों व अपील पंचाटों में सुधार और उन्हें मजबूत बनाने की पहल की जाएगी, जिससे कि दिवाला समाधान की गति तेज की जा सके। इसके अलावा और ज्यादा पंचाटों की स्थापना की जाएगी और उनमें से कुछ को विशेष रूप से कंपनी अधिनियम के तहत मामलों पर फैसला करने के लिए अधिसूचित किया जाएगा।
सिरिल अमरचंद मंगलदास में पार्टनर माधव कनोरिया के मुताबिक प्री पैकेज्ड दिवाला को कंपनियों की अतिरिक्त श्रेणी तक बढ़ाया जाना चाहिए और यह प्रक्रिया मजबूत होनी चाहिए और केवल अंतिम समाधान योजना को मंजूरी के लिए राष्ट्रीय कंपनी कानून पंचाट (एनसीएलटी) को शामिल किया जाना चाहिए। यह कारोबारों को दिवाला से बचाने के लिए फायदेमंद होगा, खासकर उनके लिए, जहां कारोबार चक्रीय प्रकृति का होता है।
इस समय प्री पैकेज्ड दिवाला सिर्फ सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) के लिए उपलब्ध है। इसमें औपचारिक समाधान प्रक्रिया शुरू करने के पहले कर्जदाता और कर्जदार के बीच समाधान प्रक्रिया को लेकर बातचीत और समझौता होता है। अब तक 5 मामलों में समाधान योजनाओं को मंजूरी दी गई, जिसमें स्वीकृत दावों में 25 प्रतिशत वसूली ही हो सकी है।
कनोरिया का समर्थन करते हुए खेतान ऐंड कंपनी के पार्टनर सिद्धार्थ श्रीवास्तव ने कहा कि सरकार को प्री पैकेज्डदिवाला प्रक्रिया का विस्तार बड़ी फर्मों तक करना चाहिए। वैकल्पिक रूप से आईबीसी के तहत ऋणदाता के नेतृत्व वाली समाधान प्रक्रिया पर विचार किया जा सकता है, जो संभावित रूप से फास्ट ट्रैक दिवाला मार्ग का स्थान ले सकती है।
पिछले साल भारतीय दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता बोर्ड (आईबीबीआई) की विशेषज्ञों की एक समिति ने ऋणदाता के नेतृत्व में दिवाला समाधान प्रक्रिया ढांचे का प्रस्ताव किया था, जिससे कि ऋणदाता के नेतृत्व में और न्यायालय के बाहर दिवाला प्रक्रिया की पहल की जा सके और देश में दिवाला समाधान ढांचा मजबूत हो सके। इस समय आईबीसी के तहत 3 अलग समाधान प्रक्रिया उपलब्ध है- कॉर्पोरेट इंसॉल्वेंसी रिजॉलूशन प्रॉसेस (सीआरआईपी), फास्ट ट्रैक कॉर्पोरेट इंसॉल्वेंसी रिजॉलूशन प्रॉसेस और प्री पैकेज्ड इंसॉल्वेंसी रिजॉलूशन प्रॉसेस।
इसके अलावा विशेषज्ञों ने यह भी सुझाव दिया है कि सरकार को समूह दिवाला मानकों के संहिताकरण पर भी विचार करना चाहिए। साथ ही परियोजनावार दिवाला में ज्यादा स्पष्टता लाया जाना चाहिए।
श्रीवास्तव ने कहा, ‘हालांकि सीआरआईपी के तहत परियोजनावार दिवाला को सक्षम बनाने के लिए नियमों में संशोधन किया गया है, लेकिन इसके मुताबिक आईबीसी में ही संशोधन नहीं किया गया है। परियोजनावार दिवाला को अवधारणा के रूप में पेश किया गया है, लेकिन इसके कामकाज के तरीके का ब्योरा अभी दिया जाना है। इसकी वजह से हितधारकों/आरपी को इसके आवेदन की स्वतंत्र रूप से व्याख्या करनी पड़ रही है।’
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार को व्यक्तियों के लिए व्यक्तिगत दिवाला के प्रावधानों का संहिताकरण करना चाहिए, क्योंकि इस समय आईबीसी के तहत व्यक्तिगत दिवाला ढांचा सिर्फ कॉर्पोरेट कर्जदारों के व्यक्तिगत गारंटरों के लिए ही अधिसूचित किया गया है।
किंग स्टब ऐंड कासिवा के पार्टनर जीशान फारूकी का कहना है कि केंद्रीय बजट 2024 के बाद दिवाला एवं ऋणशोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में प्रमुख बदलावों में बड़ी फर्मों के लिए प्री-पैकेज्ड दिवाला योजनाओं की शुरुआत और रियल एस्टेट दिवाला के लिए एक अलग ढांचा बनाना शामिल होना चाहिए। इसके साथ ही सरकार को सीमा पार और समूह दिवाला के समाधान, परिसमापन प्रक्रिया को लेकर भी संशोधन करने की जरूरत है। बहरहाल वित्त मंत्री और आर्थिक समीक्षा दोनों में ही आईबीसी की सफलता को रेखांकित किया गया है।