मौजूदा समय में अलग अलग म्युचुअल फंडों में मेरा निवेश 50,000 रुपए से ज्यादा नहीं है।
अगर हम एसआईपी के जरिए निवेश करते हैं और निवेश की एकमुश्त रकम 50 हजार से कम है तो क्या हमें नो युअर कस्टमर (केवाईसी) प्रमाणपत्र की जरूरत होगी?
मसलन, मैं 24 महीनों के लिए 5,000 रुपए की एक एसआईपी लेता हूं, तो उस फंड विशेष में मेरा निवेश 1.2 लाख रुपए का होगा। कई निवेश सलाहकारों ने मुझे बताया है कि हर निवेश पर अगर एकमुश्त रकम 50 हजार से कम है तो केवाईसी उस पर लागू नहीं होगा। – असीम कुमार
आप बिना केवाईसी मानकों के निवेश कर सकते हैं। सेबी के दिशानिर्देशों के मुताबिक जो भी निवेशक किसी भी फंड में एकमुश्त 50 हजार से ज्यादा की रकम का निवेश करना चाहता है उसे केवाईसी मानकों का पालन करना होगा। यह नियम एसआईपी के जरिए किए जाने वाले निवेश पर भी लागू होगा लेकिन तभी जब एसआईपी की किस्त 50 हजार रुपए या फिर उससे ज्यादा हो। दरअसल इसके लिए एक बार में निवेश की गई रकम को ही लिया जाता है और एक अवधि में निवेश की गई कुल रकम से कोई मतलब नहीं होता।
क्या यह सच है कि फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी) बैंकों की एफडी से ज्यादा रिटर्न का वादा करते हैं और कर भी कम लगता है लेकिन इसमें डिफाल्ट का जोखिम काफी ज्यादा होता है। मैंने सुना है कि काफी रिटर्न देने के चक्कर में कई एफएमपी रियल एस्टेट पेपर्स में निवेश करते हैं और ऐसे इंस्ट्रूमेंट भी खरीदती हैं जिनकी मेच्योरिटी डेट एफएमपी की डेट से अलग होती है। – हिमांशु नायक
एफएमपी आकर्षक निवेश का जरिया होते हैं जो अच्छा रिटर्न तो देते ही हैं, इनमें कर छूट का लाभ भी रहता है। हालांकि इनमें से कई में ऐसे जोखिम भी जुड़े रहते हैं जिनका आपने जिक्र किया है। एफएमपी में क्रेडिट रिस्क जुड़ा होता है। एक कंपनी जिसने एफएमपी को बांड जारी किए हैं, वह डिफाल्ट कर सकती है और इसका असर रिटर्न पर पड़ सकता है। एफएमपी रियल एस्टेट कंपनियों के बांड में भी निवेश करते हैं लेकिन यह निवेश उनके पोर्टफोलियो का एक छोटा हिस्सा ही होता है। अभी तक ऐसे किसी डिफाल्ट की खबर नहीं आई है।
आमतौर पर एफएमपी अपने फंड की मियाद से ज्यादा लंबी अवधि के लिए किसी बांड या डिबेंचर में निवेश नहीं करते हैं। इसमें कुछ अपवाद हो सकते हैं। एफएमपी उन कंपनियों के बांड या डिबेंचर खरीद सकते हैं जिनकी क्रेडिट क्वालिटी बेहतर हो और जिन्हें बेचने में मुश्किल न हो।
लेकिन ऐसी स्कीमें उतना रिटर्न नहीं दे पातीं जितने का वादा किया जाता है क्योंकि अगर निवेशक समय से पहले ही स्कीम से बाहर हो जाए तो यह मुश्किल हो जाता है। निवेशकों को इन जोखिमों का ध्यान रखना चाहिए और उसी के अनुसार फैसला करना चाहिए।
एसआईपी में फंड के निवेश की अवधि हर किस्त से तब से फिर शुरू हो जाती है जब हम यूनिट खरीदते हैं और यह पहली बार एसआईपी की खरीद तारीख नहीं होती। हम इसका पुनर्भुगतान किस तरह करें कि लांग टर्म कैपिटल गेन से बचा जा सके। – पूनम शिंदे
एसआईपी के जरिए खरीदी गई यूनिट के रिडम्पशन को लेकर कोई सीमा नहीं है। अपवाद केवल इक्विटी लिंक्ड सेविंग्स स्कीम हैं जिनमें निवेश की तारीख से तीन साल का लॉकइन पीरियड रहता है। अन्य खर्चों में म्युचुअल फंड अपने एसआईपी निवेश में समय से पहले रीडम्पशन पर एक्जिट लोड लगा सकते हैं।
कैपिटल गेन और एक्जिट लोड की गणना के लिए फीफो सिध्दांत का (फर्स्ट इन फर्स्ट आउट) का इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब कि जब आप यूनिट बेचते हैं तो सबसे पहले सबसे पुराने यूनिट बेचे जाते हैं।
मैं एसआईपी के जरिए डीएसपीएमएल के वर्ल्ड गोल्ड फंड में निवेश कर रहा हूं। इसकी नेट असेट वैल्यू पिछले पांच महीनों में 50 फीसदी तक गिर गई है। क्या मुझे अपना निवेश जारी रखना चाहिए? – मनोज कुमार संत
एक थीमेटिक फंड होने के नाते डीएसपीएमएल वर्ल्ड गोल्ड फंड में निवेश जोखिम भरा हो सकता है। फंड का निवेश विदेशी फंडों के जरिए सोने के खनन या उससे जुडे क़ारोबार में लगी कंपनियों में है। शुरुआत में फंड का कारोबार बेहतर रहा है। अगस्त 2007 से मार्च 2008 तक इसने 63 फीसदी रिटर्न दिया।
हाल में वैश्विक मंदी में इस फंड का सारा मुनाफा खत्म हो गया और फिलहाल यह नेगेटिव जोन में है। अक्टूबर 20, 2008 को इसकी एनएवी (8.01 रु.) इसकी फेस वैल्यू से भी कम थी। अगर आप केवल इसी एक फंड में निवेश किए हुए हैं तो बेहतर होगा कि आप इसके बजाए किसी डाइवर्सिफाइड इक्विटी या बैलेंस्ड फंड में निवेश करें। थीम फंड किसी भी पोर्टफोलियो में अकेला फंड नहीं होना चाहिए। अगर यह फंड आपके निवेश का एक छोटा सा हिस्सा है तो इसे अपने पोर्टफोलियो के डाइवर्सिफिकेशन के लिए रखा जा सकता है।
मैं अपने विवाह के लिए हर महीने 8 हजार रुपए की बचत कर रहा हूं। अगले दो साल में मेरी शादी करने की योजना है और हमने 1.2 लाख रुपए का लक्ष्य तय किया है। क्या शार्ट टर्म गोल के लिए किसी आर्बिट्राज फंड में निवेश करना उचित रहेगा? – अभिजीत जे
आर्बिट्राज फंड का उद्देश्य स्पॉट और वायदा बाजारों की कीमतों के अंतर को भुनाना रहता है। इस तरह के फंड में निवेश का फायदा यह है कि ये डेट फंड जैसा रिटर्न देते हैं लेकिन इनमें कर का लाभ इक्विटी फंड की तरह मिलता है। पिछले छह महीनों में आर्बिट्राज फंडों का रिटर्न पहले जैसा नहीं रहा है। शार्ट टर्म के निवेश के लिए बैंकों के रिकरिंग डिपॉजिट में निवेश पर विचार करें। मौजूदा समय में कई बैंक सालाना 10 फीसदी का रिटर्न दे रहे हैं।
मैंने जनवरी 2008 में लोटस इंडिया एजिल फंड में 15,000 रुपये का और जेपी मोर्गन स्मॉलर कंपनी फंड में 20,000 रुपये का निवेश किया था। लेकिन जनवरी में बाजार के क्रैश होने के बाद ये फंड मेरी उम्मीदों के अनुसार प्रदर्शन नहीं कर रहे हैं।
क्या इन फंडों को एवरेज पर लाने के लिए इनमें 15,000 रुपये का निवेश ठीक रहेगा या फिर यह राशि दूसरे अच्छा प्रदर्शन कर रहे फंडों में निवेश की जाए। मुझे यह भी बताएं कि यह फंड भविष्य में किस तरह का प्रदर्शन करेंगे। – सुहास इसोरे
चूंकि ये दोनों बेहद नए फंड हैं, लिहाजा इनके भविष्य के प्रदर्शन के बारे में कुछ कह पाना जल्दबाजी होगी। लेकिन गिरते बाजार में इनका प्रदर्शन बेहद कमतर रहा है। जनवरी से अगस्त के बीच ये दोनों अपनी केटेगरी की तुलना में अधिक गिरे हैं।