भारत में उद्यम पूंजी और प्राइवेट इक्विटी समर्थित नई पीढ़ी की 25 कंपनियां मई 2020 और जून 2025 के बीच सूचीबद्ध हुईं। इनके विश्लेषण से यह गंभीर वास्तविकता उजागर होती है कि इन आईपीओ में से सिर्फ एक तिहाई ही बाजार के मुकाबले उम्दा प्रदर्शन कर पाए हैं। क्लाइंट एसोसिएट्स के व्हाइट पेपर के मुताबिक आईपीओ निवेशकों में से सिर्फ 36 फीसदी और सूचीबद्धता के बाद के 32 फीसदी निवेशकों ने ही बीएसई 500 इंडेक्स के मुकाबले सकारात्मक और बेहतर रिटर्न सृजित किया है।
प्री-आईपीओ निवेशकों का प्रदर्शन 43 फीसदी के साथ थोड़ा बेहतर रहा। लेकिन तभी जब उन्होंने सही समय पर निकासी की। जिन लोगों ने अनिवार्य छह महीने की लॉक-इन समाप्ति अवधि में बिक्री की, उन्हें अक्सर सबसे ज्यादा रिटर्न मिला जबकि लंबी अवधि के निवेशकों को बहुत कम या यहां तक कि नकारात्मक रिटर्न मिला।
हालांकि आईपीओ की मजबूत मांग आम थी। लेकिन रिपोर्ट में पाया गया है कि ज्यादातर लिस्टिंग लाभ टिकाऊ नहीं रहे। क्लाइंट एसोसिएट्स के व्हाइट पेपर में कहा गया है, अध्ययन का निष्कर्ष है कि नए जमाने के आईपीओ ने जहां काफी उत्साह और अल्पकालिक लाभ पैदा किया, वहीं खुदरा निवेशकों के लिए, ख़ासकर गैर-सूचीबद्ध बाज़ार में जोखिम-समायोजित रिटर्न पर सवाल खड़ा होता है।
इक्जिगो, ज़ोमैटो, नज़ारा टेक और पॉलिसीबाजार जैसे शीर्ष प्रदर्शनकर्ताओं ने राजस्व और मार्जिन विस्तार के साथ स्पष्ट लाभप्रदता की राह दिखाई। खराब प्रदर्शन करने वालों में ओला इलेक्ट्रिक, पेटीएम, मोबिक्विक और फर्स्टक्राई जैसी कंपनियां रहीं।