कोविड-19 महामारी के बाद लोगों में सेहत के प्रति जागरूकता बढ़ी है और सरकारी तथा निजी क्षेत्र ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र पर खर्च भी बढ़ाया है। यही देखकर स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र की कई कंपनियां आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (IPO) लाई हैं। 2020 से करीब दो दर्जन स्वास्थ्य सेवा या हेल्थकेयर कंपनियों ने IPO के जरिये 32,400 करोड़ रुपये जुटाए हैं।
2007 से 2019 के बीच भी करीब इतनी ही हेल्थकेयर कंपनियों के IPO आए थे मगर उनसे केवल 12,000 करोड़ रुपये जुटाए गए थे। कोविड के बाद आए IPO से जो रकम जुटाई गई है, उसमें करीब 13 फीसदी हिस्सेदारी हेल्थकेयर की ही रही है। इससे पहले के 12 साल में IPO से जुटी कुल रकम में इनकी हिस्सेदारी केवल 4 फीसदी थी।
खास बात है कि अस्पताल चलाने वाली कई कंपनियों ने शेयर बाजार खटखटाया है। यथार्थ हॉस्पिटल, जुपिटर लाइफ लाइन और ग्लोबल हेल्थकेयर इनमें प्रमुख हैं। पिछले एक साल में आधा दर्जन से भी ज्यादा हेल्थकेयर कंपनियों ने IPO दस्तावेज जमा कराए हैं। बैंकरों को उम्मीद है कि कई दूसरी कंपनियां भी इसके लिए आवेदन कर सकती हैं।
निवेश बैंकरों का कहना है कि इस क्षेत्र में आम तौर पर कम IPO आए हैं क्योंकि भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च दुनिया भर के औसत के मुकाबले काफी कम था। दूसरी वजह यह भी थी कि इस बाजार का बड़ा हिस्सा अब भी असंगठित है। वित्त वर्ष 2020 तक केंद्र और राज्य सरकारें स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का बमुश्किल 1.4 फीसदी खर्च कर रही थीं।
मगर कोविड के बाद इस पर सरकार का ध्यान बढ़ा है। वित्त वर्ष 2022 में जीडीपी का करीब 2.2 फीसदी स्वास्थ्य सेवा पर खर्च किया गया और राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति का लक्ष्य वित्त वर्ष 2025 तक इस क्षेत्र पर खर्च बढ़ाकर 2.5-3 फीसदी करने का है।
पूर्वी भारत में आईएलएस ब्रांड के अस्पतालों की श्रृंखला चलाने वाली जीपीटी हेल्थकेयर के समूह मुख्य वित्त अधिकारी अतुल टांटिया को लगता है कि महामारी के बाद स्वास्थ्य सेवा के लिए जागरूकता बढ़ी है, जिससे इस क्षेत्र की कंपनियों की हैसियत भी बहुत बढ़ी है। जीपीटी हेल्थकेयर का IPO आज ही बंद हुआ। इसके जरिये मॉरिशस की पीई फर्म बैनयान ट्री ग्रोथ कैपिटल 2 एलएलसी ने अपनी समूची हिस्सेदारी बेच दी।
टांटिया ने कहा, ‘महामारी के बाद स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ी है, जिससे इस क्षेत्र की कंपनियों की कीमत भी बढ़ रही है। अब आम धारणा है कि स्वास्थ्य सेवा देने वाली कंपनियां मूल्य श्रृंखला का अभिन्न हिस्सा हैं और उनमें निवेश की जरूरत है।’
टांटिया ने कहा कि पूर्वी भारत में अस्पताल और स्वास्थ्य सेवा जरूरत से कम है। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया, ‘हम इस इलाके में विस्तार करना चाहते हैं। IPO से मिलने वाले पैसे का एक हिस्सा कर्ज (करीब 30 करोड़ रुपये) चुकाने में जाएगा। कंपनी पर करीब 45 करोड़ रुपये का कर्ज है और बाकी कर्ज भी इस साल के अंत तक चुका दिया जाएगा। निर्गम से मिली बाकी रकम विस्तार में खास तौर पर रायपुर परियोजना में लगाई जाएगी।’
उद्योग मानता है कि देश में अच्छी गुणवत्ता वाली शैया की कमी है। पश्चिम भारत में अस्पताल श्रृंखला चलाने वाली जुपिटर लाइफ लाइन हॉस्पिटल्स के मुख्य कार्याधिकारी अंकित ठक्कर ने कहा, ‘हमें लगता है कि महानगरों में भी गुणवत्ता भरे अस्पतालों की कमी है। इसलिए विस्तार की बहुत गुंजाइश है। हमने अपना पहला अस्पताल 2007 में और दूसरा 2017 में खोला था। तीसरा अस्पताल 2020 में चालू हुआ।
अस्पताल खास मुकाम पर पहुंच जाए और अच्छी टीम बन जाए तो विस्तार करना आसान हो जाता है।’उन्होंने कहा, ‘हम अपनी विस्तार योजना के लिए ज्यादा कर्ज नहीं लेना चाहते। IPO के बाद हमारे पास नकदी पड़ी है। नकदी और आंतरिक स्रोतों से मिलने वाले पैसों से विस्तार योजना को अमली जामा पहनाना आसान होगा।’
रेटिंग एजेंसी इक्रा के अनुसार अस्पतालों में रोगियों के भर्ती होने की दर बढ़ी है और प्रति बिस्तर औसत आय तथा मार्जिन में भी इजाफा हुआ है। इक्रा में असिस्टेंट वाइस प्रेसिडेंट एवं सेक्टर प्रमुख मैत्री माचेरला ने कहा कि अस्पतालों में प्रति बिस्तर औसत आय वित्त वर्ष 2020 में 34,000 रुपये प्रतिदिन थी, जो वित्त वर्ष 2024 की पहली छमाही में 50,000 रुपये प्रतिदिन हो गई है। इक्रा के विश्लेषण से पता चलता है कि अस्पतालों में भर्ती होने की दर भी इस दौरान 60 फीसदी से बढ़कर 66 फीसदी हो गई है। महामारी के बाद मैनकाइंड फार्मा ने भी IPO बाजार में दस्तक दी थी।