हालांकि बाजार जनवरी से ही नीचे जा रहा है। लेकिन पिछले कुछ सप्ताह से बाजार सचमुच काफी खराब स्थिति में है। और हो सकता है कि बाजार का अभी और खराब समय बाकी हो।
बीएसई सेंसेक्स जनवरी में 20,800 अंकों पर था। शुक्रवार को यह 10,527 पर बंद हुआ। बाजार से लगभग आधी पूंजी बाहर जा चुकी है। ऐसा नहीं है कि सिर्फ बाजार में सीधे निवेश करने वालों पर ही मार पड़ी है। म्युचुअल फंड के निवेशक भी इसके असर से बाहर नहीं हैं।
बाजार के लगातार गिरने के कारण कई निवेशक बस फंस कर रह गए हैं। उनको बाहर निकलने का रास्ता ही नहीं सूझ रहा है। पिछले छह माह में इक्विटी निवेशकों के हाथ सिर्फ गिरावट लगी है, उसके अलावा कुछ नहीं। सभी इक्विटी डायवर्सिफाइड फंडों में 28 फीसदी की औसतन गिरावट हुई है।
तकनीकी और बैंकिंग फंडों में क्रम से 31.68 फीसदी और 22.79 फीसदी की गिरावट आई है। इस स्थिति को देखते हुए निवेशकों में निराशा फैलना लाजमी ही है। इनमें से कई तो सिर्फ यह सुनिश्चित करने के बाद बाजार से बाहर निकल जाना चाहते हैं कि उनका नुकसान सीमित हो जाए।
म्युचुअल फंडों में एकमुश्त निवेश करने वाले निवेशक तो घाटा भी बुक करने के लिए तैयार होंगे। हालांकि जिन निवेशकों ने सिस्टेमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लॉन (एसआईपी) का तरीका अपनाया है, उनके लिए ऐसा कदम उठाने की कोई वजह नहीं है।
यह अक्सर देखा गया है कि जो निवेशक एसआईपी के माध्यम से बाजार में दाखिल होते हैं, वे एक्सर ऐसे समय में निवेश करना बंद करना पसंद करते हैं जब बाजार नीचे की ओर जाता है या फिर नुकसान उठाकर भी इसे भुना लेते हैं।
सामान्य तौर पर अपनी मियाद के बीच में ही एसआईपी रोकने या फिर उनका वास्तविक समय खत्म होने के बाद भी इसका नवीकरण न कराने के लिए एक निश्चित तरीका अपनाया जाता है। लेकिन यह वास्तव में एक सुखद निर्णय नहीं होता, खासकर उस समय जब आपने निवेश उस समय शुरु किया हो जब बाजार लगातार ऊपर जा रहा था। इसके प्रमुख कारण ये हैं:-
निवेशक कम वैल्यू का लाभ लेने का अवसर गंवा देते हैं: चढ़ते बाजार में निवेश करने वाले निवेशक को पहले तुलनात्मक दृष्टि से कम ही यूनिट मिले होते हैं। इसकी वजह यह है कि ऊंचे बाजार में म्युचुअल फंड की ऊंची नेट असेट वैल्यू (एनएवी) होती है। इससे खरीददार को कम यूनिट मिलते हैं।
निवेशक को वास्तविक लाभ उस समय मिलता है जब कम राशि में ज्यादा यूनिट मिलते हैं। जब बाजार नीचे आता है तब फंड का एनएवी भी कम होता है। इसलिए निवेशक को यूनिट की औसत लागत घटने के कारण और यूनिट मिल जाते हैं। उदाहरण के लिए अगर कोई निवेशक 20 रुपये के एनएवी पर प्रतिमाह 36,000 रुपये बाजार में लगाता है तो उसे 180 यूनिट मिलेंगे।
इसके बाद अगर बाजार लगातार गिरकर 18 रुपये के एनएवी पर आ जाए तो निवेशक को 200 यूनिट मिल सकते हैं। गिरती कीमतों का सबसे बड़ा लाभ यह है कि यही एक माध्यम है जिसके जरिए निवेश की औसत लागत को कम किया जा सकता है।
बाजार नीचे गिरने के समय में निवेशक सबसे बड़ी गलती यही करते हैं कि वे निवेश करना बंद कर देते हैं। इस स्थिति में यह होता है कि उन्होंने यूनिट ऊंची लागत पर खरीदे होते हैं। लेकिन लागत कम होने पर वे कोई यूनिट नहीं खरीद रहे होते हैं।
यहां निवेश रोकने का मतलब है, ऊंची लागत वाला यूनिटधारी होना। वास्तव में यह ऊंची कीमत पर किए गए उस निवेश जैसा है जो बाजार के फिसलने पर लगातार अपनी वैल्यू खोता जा रहा है। ऐसी स्थिति में जब बाजार बहुत तेजी से गिरता है और बेहद धीमी गति से सुधरता है तो निवेशक को अपने निवेश से लाभ कमाने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ सकता है। इसके ठीक विपरीत जब औसतन लागत गिरते बाजार के साथ लगातार कम होती जाती है तब भले ही रिकवरी कम हो देर सवेर निवेशक फायदा कमाना शुरु कर देगा।
समय की कीमत अधिक: एसआईपी निवेश का एक पसंदीदा विकल्प है क्योंकि अधिकांश निवेशकों के लिए लगातार बाजार को समय दे पाना संभव नहीं होता। इसलिए जब शेयर बाजार जनवरी में 21,000 के स्तर पर था तब किसी विश्लेषक के लिए यह भविष्यवाणी कर पाना खासा मुश्किल ही था कि बाजार इस स्तर तक गिर जाएगा।
इसके उलट कई तो बाजार के 25,000-30,000 के स्तर पर जाने की भविष्यवाणी करने लगे थे। इसी तरह जब बाजार आज 10,500 के स्तर पर है तब भी यह किसी के लिए कह पाना आसान नहीं है कि यह बाजार का बॉटम है या फिर और खराब समय आ सकता है।
इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि कम पर खरीदारी और अधिक पर बिकवाली का फार्मूला हमेशा ही काम नहीं करता और कभी-कभार ही यह बात लागू होती है। एसआईपी इस समस्या का समाधान कर सकती है। क्योंकि इसमें निवेशक हर स्थिति में निवेश करता रहता है, चाहे बाजार उठे या फिर नीचे गिरे।
सामान्य तौर पर उसका निवेश पांच से सात साल के लिए होता है। इस पूरी बात में उपयुक्त समय की बात कहीं नहीं आती। इसलिए निवेशक जब निवेश कर रहा तो उसे इसे लेकर कतई चिंतित नहीं होना चाहिए।
वास्तव में एसआईपी में निवेश करना बंद करके निवेशक निवेश को छोड़ देता है और निचले स्तर पर खरीदारी और ऊंचे स्तर पर बिकवाली की जगह वह ऊंचे स्तर पर खरीदारी और निचले स्तर पर बिकवाली कर रहा होता है।
कैसे करें स्थिति का सामना: इस स्थिति का उपयुक्त समाधान यही है कि निवेशक को एसआईपी में निवेश जारी रखना चाहिए। उस स्थिति में भी जब चारों ओर निराशा ही निराशा हो। इस निवेश को आपके द्वारा हर माह किए जाने वाला अनिवार्य निवेश ही माने और फिर उसे भूल जाएं।
यहां यह ध्यान में रखें कि एसआईपी से लाभ कमाने के लिए आपको पांच साल तक निवेश करना जारी रखना ही होगा। हां, यहां आपको अपने मासिक स्टेटमेंट को देखकर होने वाले दुख पर भी पार पाना होगा जो यह बताता है कि आपके निवेश की वैल्यू कम हुई है। वास्तव में यह किसी बीमारी को ठीक करने के लिए ली गई कोई गोली जैसी ही बात है।
इसी तरह आपको लंबे समय में पैसा बनाने के लिए बाजार के उतरने और गिरने के कड़वे अनुभवों से गुजरना ही होगा। अगर आप किसी एक निवेश से डरे हुए हैं तो बेहतर हो कि एक ही बार में 6-12 निवेश करें। चेक के बजाय ऑटो डेबिट सिस्टम इसका एक अन्य विकल्प है। जहां आपके खाते से पेसा हर माह सीधे ट्रांसफर हो जाता है। इससे आपके निवेश की प्रक्रिया बाधित नहीं होगी।
(लेखक एक पंजीकृत वित्तीय योजनाकार हैं।)