निजी क्षेत्र के ऋणदाता इंडसइंड बैंक का शेयर बुधवार को 7 फीसदी से ज्यादा चढ़ गया। बैंक ने खुलासा किया था कि पीडब्ल्यूसी ने उसके डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में विसंगतियों का जितना प्रभाव पड़ने का अनुमान जताया है, वह आंतरिक समीक्षा के निष्कर्षों के मुकाबले थोड़ा कम होगा। पोर्टफोलियो का नुकसान अनुमान से कम रहने की खबर से बैंक के शेयर में यह तेजी देखने को मिली है।
इंडसइंड बैंक का शेयर बुधवार को बीएसई पर 788.25 रुपये पर बंद हुआ जो पिछले बंद भाव से 7.12 प्रतिशत अधिक है। निजी क्षेत्र के ऋणदाता का शेयर 25 मार्च के 637.30 रुपये के निचले स्तर के बाद से करीब 24 फीसदी सुधर चुका है। एक्सचेंजों के समक्ष यह खुलासा किए जाने के बाद से शेयर में 25 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ गई थी कि आंतरिक समीक्षा में उसके डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में गड़बड़ियां पाई गई हैं।
मंगलवार को बैंक ने खुलासा किया कि उसकी आंतरिक समीक्षा के निष्कर्ष को प्रमाणित करने के लिए बाहरी एजेंसी ‘पीडब्ल्यूसी’की सेवा ली गई। पीडब्ल्यूसी ने उसके डेरिवेटिव पोर्टफोलियो में गड़बड़ियां होने की बात कही है और 30 जून 2024 तक 1,979 करोड़ रुपये के नकारात्मक प्रभाव का अनुमान लगाया है।
बाहरी एजेंसी की रिपोर्ट के आधार पर बैंक ने कहा कि गड़बड़ियों का दिसंबर 2024 तक उसकी नेटवर्थ पर 2.27 प्रतिशत का विपरीत कर-बाद असर होगा। वित्त वर्ष 2025 की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में बैंक की नेटवर्थ 65,102 करोड़ रुपये थी। मैक्वेरी कैपिटल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘इंडसइंड बैंक ने हाल में खुलासा किया कि डेरिवेटिव खाते में गड़बड़ियों का पता लगाने के लिए नियुक्त एजेंसी ने इसके असर का अनुमान लगाया है। यह बैंक की नेटवर्थ (वित्त वर्ष 2025 की तीसरी तिमाही तक) का 2.27 प्रतिशत (1,520 करोड़ रुपये) है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि यह प्रभाव बैंक की आंतरिक समीक्षा में अनुमानित आंकड़े के मुकाबले कम है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हमारा मानना है कि यह घटनाक्रम अल्पावधि के लिहाज से सकारात्मक है क्योंकि गड़बड़ियों का प्रभाव प्रबंधन द्वारा शुरू में जताए गए अनुमान के मुकाबले सीमित होगा।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि अब ध्यान एक और बाहरी एजेंसी की फॉरेंसिक ऑडिट रिपोर्ट पर होगा। भारतीय रिजर्व बैंक ने मौजूदा प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी सुमंत कठपालिया को सिर्फ एक साल का विस्तार दिया है जबकि बैंक के बोर्ड ने तीन साल के विस्तार की सिफारिश की थी। यह दूसरी बार है जब आरबीआई ने कठपालिया को पूरे तीन साल का विस्तार नहीं दिया।