ग्लोबल इनवेस्टर्स का भारत के प्रति रुझान पिछले कुछ हफ्तों में तेजी से बदला है। भारत केंद्रित इक्विटी फंड्स से निवेशक भारी मात्रा में पैसा निकाल रहे हैं, जबकि चीन और हॉन्गकॉन्ग के फंड्स में निवेश बढ़ रहा है। Elara Capital की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले चार हफ्तों में भारत केंद्रित फंड्स से 1.8 अरब डॉलर की निकासी हुई है, जो जनवरी के बाद सबसे बड़ी निकासी है। दूसरी ओर, चीन के फंड्स में 3 अरब डॉलर और हॉन्गकॉन्ग के फंड्स में 4.5 अरब डॉलर का निवेश आया है। यह बदलाव उभरते बाजारों (इमर्जिंग मार्केट्स) में निवेश के रुझान में बड़ा उलटफेर है, जो 2023 से 2024 तक भारत के पक्ष में था।
रिपोर्ट के अनुसार, यह बदलाव अक्टूबर 2024 में डॉनल्ड ट्रंप की अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में जीत के बाद शुरू हुआ। तब से भारत से 3.7 अरब डॉलर की निकासी हो चुकी है, जबकि चीन में 5.4 अरब डॉलर का निवेश आया है। यह स्थिति मार्च 2024 से सितंबर 2024 के बीच की तस्वीर से बिल्कुल उलट है, जब भारत में 29 अरब डॉलर का निवेश आया था और चीन से 26 अरब डॉलर की निकासी हुई थी।
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Elara Capital की रिपोर्ट में बताया गया कि हाल की 1.8 अरब डॉलर की निकासी में से 1 अरब डॉलर ETF (एक्सचेंज ट्रेडेड फंड्स) से और 770 मिलियन डॉलर एक्टिव फंड्स से निकाले गए। अप्रैल में ट्रंप के टैरिफ से जुड़े डर के बाद आए निवेश ज्यादातर ETF में केंद्रित थे, लेकिन अक्टूबर से लॉन्ग-ओनली फंड्स पर लगातार निकासी का दबाव बना हुआ है। बड़े ग्लोबल फंड्स जैसे विजडमट्री, इनवेस्को, श्रोडर, अमुंडी और फ्रैंकलिन इंडिया से भारी बिकवाली देखी गई, खासकर लार्ज-कैप केंद्रित रणनीतियों में। हालांकि, घरेलू फंड्स की मजबूत खरीदारी ने इस बिकवाली के असर को कुछ हद तक कम किया है।
Nomura की एक हालिया रिपोर्ट में भी भारत के प्रति निवेशकों का घटता भरोसा उजागर हुआ है। 45 बड़े इमर्जिंग मार्केट फंड्स के विश्लेषण में पता चला कि जुलाई में भारत में निवेश 110 बेसिस पॉइंट्स (BPS) कम हुआ और 41 फंड्स ने अपनी हिस्सेदारी घटाई। भारत अब MSCI EM इंडेक्स की तुलना में 2.9 फीसदी अंडरवेट है, और 71 फीसदी फंड्स भारत में अंडरवेट हैं, जो जून में 60 फीसदी था। दूसरी ओर, हॉन्गकॉन्ग, चीन और दक्षिण कोरिया में निवेश बढ़ा है, जहां क्रमशः 80 BPS, 70 BPS और 40 BPS की बढ़ोतरी हुई है।