पीजीआईएम के प्रबंध निदेशक एवं इंस्टीट्यूशनल एडवायजरी ऐंड सॉल्युशंस के प्रमुख ब्रूस फेल्प्स ने समी मोडक के साथ साक्षात्कार में कहा कि पिछले साल के दमदार प्रतिफल के बावजूद अमेरिकी और भारतीय इक्विटी बाजारों की रफ्तार मजबूत बनी हुई है, क्योंकि उन्हें आर्थिक वृद्धि में सुधार से मदद मिल रही है। उनका मानना है कि आगामी राह उतार-चढ़ाव भरी होगी, वहीं इक्विटी निवेशकों के लिए संपूर्ण परिदृश्य अनुकूल बना रहेगा। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश:
जैसे ही हमने 2023 में प्रवेश किया, इसकी आशंका बनी हुई थी कि मंदी आने वाली है। कुछ ने इसके आने की 95 प्रतिशत आशंका जताई। इसलिए, यह आश्चर्य और राहत, दोनों है कि दुनिया का अधिकांश हिस्सा मंदी से बचने में कामयाब रहा। इस नए आशावाद ने शेयरों में तेजी को प्रेरित किया है, क्योंकि निवेशक मंदी की संभावना के बारे में कम आशंकित हैं।
अमेरिकी बाजार में, एक मुख्य चुनौती है अल्पावधि जमाओं पर ऊंची दर, जो 5 प्रतिशत पर है। यह शून्य प्रतिशत प्रतिफल से काफी अधिक है। निवेशकों को कई साल शून्य स्तर के प्रतिफल का सामना किया था। इसके परिणामस्वरूप, बड़ी मात्रा में पूंजी को दरकिनार कर दिया गया है, जिससे निवेशक जल्दबाजी में बाजार में उतरने में अनिच्छा दिखा रहे हैं। भूराजनीतिक अनिश्चितता ने अन्य चुनौती पैदा की है।
इस साल वैश्विक चुनावी वर्ष होने की वजह से राजनीतिक परिदृश्य से जुड़ी अनिश्चितता सामने आई जिससे कुछ निवेशकों को निवेश पर 5 प्रतिशत प्रतिफल से संतुष्ट रहना पड़ा। जहां भविष्य के लिए उम्मीद बनी हुई है, लेकिन यह अक्सर देखा जाता है कि वर्ष की दूसरी छमाही अस्थिरता कायम रहती है।
इस प्रकार, वर्ष के अंत में पूंजी लगाने से पहले मूल्यांकन के नरम होने की प्रतीक्षा करके भविष्य की अस्थिरता का लाभ उठाना समझदारी हो सकती है। नकारात्मक अस्थिरता की स्थिति में, निवेशक अमेरिकी फेडरल रिजर्व की दरों में कटौती करने की बढ़ती संभावना पर ध्यान दे सकते हैं। कुल मिलाकर, इससे इक्विटी निवेशकों के लिए अनुकूल पृष्ठभूमि तैयार हुई है।
नहीं, मैं ऐसा नहीं मानता। मेरा मानना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूत और दमदार वृद्धि (1.4 प्रतिशत से 2 प्रतिशत के बीच) के लंबे चरण में प्रवेश कर रही है। यह दृष्टिकोण 1990 के दशक के आर्थिक परिदृश्य से मिलता जुलता है। विशेष रूप से, मुद्रास्फीति की उम्मीदें काफी अनुरूप हैं। इसके अलावा, विशेष रूप से ऊर्जा परिवर्तन और आपूर्ति श्रृंखला पुनर्गठन जैसे क्षेत्रों में नए निवेश की ज्यादा आवश्यकता है।
ये निवेश वृद्धि की रफ्तार मजबूत बनाएंगे। नई इक्विटी पूंजी के लिए मांग बरकरार है और प्रतिफल भी ऊंचा बना रह सकता है। जहां अमेरिका में इक्विटी मूल्यांकन मौजूदा समय में ऊपर है, लेकिन इतना भी ज्यादा नहीं है कि बड़ी गिरावट खतरा पैदा हो सके।
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, रियल एस्टेट बाजार ने अपने सबसे बुरे दौर का सामना किया है, जिससे अमेरिका और यूरोप में सूचीबद्ध रियल एस्टेट निवेश ट्रस्टों और निजी रियल एस्टेट फंडों में आकर्षक अवसर पैदा हुए हैं। अन्य निजी परिसंपत्तियों ने अच्छा प्रदर्शन किया है। निजी इक्विटी (पीई) को आईपीओ बाजार के सुधार से लाभ मिलेगा। संस्थागत निवेशक इन क्षेत्रों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं।
इसके अलावा सार्वजनिक बॉन्ड भी अनुकूल राह पर बढ़ने को तैयार हैं। रियल यील्ड काफी ऊपर हैं और ये निगेटिव 1 प्रतिशत से पॉजीटिव 2 प्रतिशत पर पहुंची हैं। यह बदलाव बेहद महत्वपूर्ण है और इससे बॉन्ड और शेयर प्रतिफल के बीच अंतर काफी घटा है।
पिछले रिकॉर्ड देखें तो अंदाजा लग जाएगा कि आगामी बॉन्ड प्रतिफल शेयर प्रतिफल के साथ काफी प्रतिस्पर्धी साबित हो सकता है, खासकर रिस्क-समायोजित आधार पर। इसलिए किसी के पोर्टफोलियो में बॉन्डों को शामिल करना अच्छा अवसर प्रदान करता है।
भारत अंतरराष्ट्रीय निवेशकों का ध्यान आकर्षित कर वैश्विक पैमाने पर बेहद मजबूत वृद्धि वाले बाजारों में से एक के तौर पर उभरने को तैयार है। देश ने मजबूत वृहद आर्थिक स्थायित्व प्रदर्शित किया है। इसके परिणामस्वरूप, भारत अवसर तलाशने वाले वैश्विक निवेशकों के लिए संभावनाएं पेश करता है।