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अन्य बाजारों पर दिखेगा अमेरिका में बदलाव का प्रभाव

Last Updated- December 12, 2022 | 4:46 AM IST

ईपीपीआर में शोध निदेशक केमरॉन ब्रांट ने पुनीत वाधवा के साथ एक साक्षात्कार के दौरान इस बारे में विस्तार से जानकारी दी कि पिछले कुछ महीनों के दौरान विभिन्न भूभागों और परिसंपत्ति वर्गों में किस तरह से पूंजी प्रवाह आकर्षित हुआ है और आगे की राह कैसी रहेगी। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
2021 में अब तक वैश्विक पूंजी प्रवाह कैसा रहा है?
वर्ष 2021 के शुरू से ही निवेशक एशियाई बाजारों पर ध्यान दे रहे थे जिससे वैश्विक सुधार को बढ़ावा मिला है। दिसंबर 2020 और जनवरी 2021 के बीच, उन्होंने ईपीएफआर-केंद्रित यूरोपीय और उत्तर अमेरिकी इक्विटी फंड समूहों से 55 अरब डॉलर रुपये निकाले, जबकि एशिया प्रशांत और एशियाई फंडों (जापान को छोड़कर) में 18 अरब डॉलर का निवेश किया। दूसरी तिमाही की शुरुआत के बाद से, हालांकि 36 अरब डॉलर का निवेश उत्तरी अमेरिकी और यूरोपीय इक्विटी फंडों की ओर आकर्षित हुआ, जबकि सभी एशियाई समूहों के लिए यह आंकड़ा महज 2 अरब डॉलर रहा। इस बदलाव से अमेरिका में वित्तीय प्रोत्साहन की मात्रा और दुनिया की इस सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था में आर्थिक वृद्घि तथा परिसंपत्ति वैल्यू पर पडऩे वाले प्रभाव का पता चलता है। इसलिए अमेरिका की रेटिंग में बदलाव लगभग हरेक अन्य बाजार से जुड़ा हुआ है।
निवेश स्थान के तौर पर निवेशक भारत को किस नजरिये से देख रहे हैं?
कोविड मामलों में तेजी से निश्चित तौर पर भारतीय इक्विटी फंडों के लिए पूंजी प्रवाह में वापसी हुई है। पहली लहर के दौरान संक्रमण सितंबर के मध्य में चरम पर पहुंचा था, लेकिन भारतीय इक्विटी फंडों ने 2021 की पहली तिमाही में सुधार आने तक बड़ा बदलाव दर्ज नहीं किया था।
क्या बाद में भारतीय बाजार वैश्विक प्रतिस्पर्धियों से कुछ हद तक अलग दिखे हैं। क्या आप जल्द इस रुझान में किसी तरह का बदलाव देख रहे हैं?
मेरा मानना है कि यह रुझान बरकरार रह सकता है। भारत के मजबूत घरेलू बाजार, निर्यात पर निर्भरता की कमी और कृषि से संबंधित कामकाजी आबादी के प्रतिशत से संकेत मिलता है कि यह दूसरों से हमेशा अलग और खास रहा है। कोविड मामलों में तेजी से भी इस अलगाव का संकेत मिलता है।
जहां तक भारत का सवाल है, विदेशी संस्थागत निवेशकों को किस तरह की चिंताओं से बेचैनी हो रही है?
नए कोविड मामलों में वृद्घि मुख्य कारण है। विदेशी धारणा के संदर्भ में इस पर प्रभाव देखा जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस संकट की वजह से काफी राजनीतिक पूंजी गंवानी पड़ सकती है और व्यापक ढांचागत सुधारों पर ध्यान बरकरार नहीं रखा जा सकता है। लेकिन अंतरराष्टï्रीय मुद्रा कोष द्वारा इस साल दो अंक की आर्थिक वृद्घि का अनुमान जताया गया है, इसलिए विदेशी दिलचस्पी बढऩे की संभावना बनी हुई है।
क्या एक वर्ष के नजरिये से डेट फंडों में रिस्क-रिवार्ड अनुकूल है?
रिस्क-रिवार्ड का समीकरण काफी प्रतिकूल दिख रहा है, बशर्ते कि आप इस समीकरण के परिणाम की तुलना में विकल्पों के साथ करें। हम जिन बॉन्ड फंडों पर नजर रख रहे हैं, वे पहले ही इस साल अब तक 300 अरब डॉलर से ज्यादा आकर्षित कर चुके हैं। इसलिए यह स्पष्टï है कि कई निवेशक रिस्क और रिवार्ड के बीच मौजूदा संतुलन पर ध्यान बनाए रख सकते हैं।
प्रवाह के संदर्भ में जिंस केंद्रित फंडों का प्रदर्शन कैसा है?
मुद्रास्फीति और सख्त आपूर्ति को लेकर चिंताओं के बीच आर्थिक गतिविधियां बहाल होने से जिंस क्षेत्र के फंडों को मदद मिली है। उनका ताजा पूंजी प्रवाह पिछले 28 सप्ताहों में 26वां तेज प्रवाह था। तांबे और लौह अयस्क की कीमतें इस साल नई ऊंचाई चार पहुंचीं, मक्का की कीमतें इस साल अब तक करीब 40 प्रतिशत तक चढ़ी हैं और सूअर मांस की कीमतें भी इसी रफ्तार से बढ़ी हैं। एनर्जी फंडों में निवेश को समान रुझान देखा गया। 
 

First Published - May 16, 2021 | 11:36 PM IST

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