वर्ष 2024 में आईपीओ से 1.6 लाख करोड़ रुपये की रिकॉर्ड उगाही के बाद बढ़ते उतार-चढ़ाव के बीच इक्विटी पूंजी बाजार (ईसीएम) की रफ्तार धीमी है। गोल्डमैन सैक्स में इंडिया फाइनैंशियल ग्रुप के प्रबंध निदेशक और प्रमुख सुनील खेतान का मानना है कि बाजार के उतार-चढ़ाव से आईपीओ प्रक्रिया पर असर नहीं पड़ा है। मुंबई में समी मोडक और सुंदर सेतुरामन को दिए साक्षात्कार में खेतान ने उम्मीद जताई कि 2025 भी एक अपवाद वाला वर्ष हो सकता है। उनसे बातचीत के अंश:
सितंबर के बाद बाजार में अस्थिरता बढ़ गई। इसका इक्विटी पूंजी बाजार पर क्या असर पड़ा है?
हाल में अस्थिरता बढ़ी है। लेकिन इक्विटी पूंजी बाजार के सौदे दिसंबर और जनवरी में भी बरकरार रहे। विदेशी निवेशक सेकंडरी बाजारों में शुद्ध रूप से स्थिर बने रहे मगर 2024 में प्राथमिक बाजार (आईपीओ/ब्लॉक) में उन्होंने 12 अरब डॉलर का निवेश किया, जो अवसरों में बदलाव का संकेत है। मूल्यांकन ज्यादा होने और उपभोग में मंदी के कारण मार्च तक आईपीओ बाजार धीमा रहा। लेकिन आईपीओ के दस्तावेज दाखिल करना जारी हैं क्योंकि कंपनियां दीर्घावधि पर ध्यान दे रही हैं। विदेशी निवेशकों ने सेकंडरी बाजारों के मुकाबले प्राथमिक बाजारों (आईपीओ/ब्लॉक सौदों) को प्राथमिकता दी और वे थीम के हिसाब से पूंजी लगा रहे हैं।
क्या इस बार आईपीओ 2024 के 1.6 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड के बराबर पहुंच पाएंगे?
अगर वृहद आर्थिक हालात अनुकूल रहे (आरबीआई की नीतियां, कर कटौती से उपभोग में वृद्धि तथा भारत में दुनिया का भरोसा) तो हम 2024 के आंकड़े को पार कर सकते हैं। 2024 की पहली छमाही में छोटे सौदे हुए थे। लेकिन इस साल के बड़े, अच्छी गुणवत्ता वाले आईपीओ जारीकर्ता अगर बाजार पूरी तरह अनुकूल हुआ तो कुल संख्या में इजाफा कर सकते हैं।
क्या आईपीओ आवेदनों की संख्या पिछले साल की तरह मजबूत है या इसमें नरमी आई है?
आवेदनों की संख्या की रफ्तार मजबूत है। इसमें रुकावट केवल तभी आती है जब व्यवसाय का प्रदर्शन धीमा हो जाता है। उदाहरण के लिए, भारत में हाल में खपत में मंदी के दौरान ऐसा हुआ। कंपनियां फिर से आकलन के लिए अस्थायी रूप से फाइलिंग में देर कर सकती हैं, लेकिन बाजार में मौजूदा उतार-चढ़ाव ने इस प्रक्रिया में बाधा नहीं डाली है। आईपीओ में आम तौर पर फाइलिंग (डीआरएचपी सबमिशन) के बाद छह महीने से ज्यादा का समय लग जाता है और लिस्टिंग में तीन महीने और लगते हैं। अक्टूबर के बाद की सुस्त अवधि के बावजूद आईपीओ के लिए रुझान सकारात्मक बना हुआ है।
कौन से सेक्टर के ज्यादा आईपीओ आने हैं?
आईपीओ प्रस्ताव अलग अलग सेक्टरों से जुड़े हुए हैं। इनमें से करीब आधे टेक-केंद्रित (फिनटेक, हेल्थटेक, बी2बी प्लेटफॉर्म) हैं। साथ ही फाइनैंशियल और सीमेंट जैसे पारंपरिक क्षेत्र भी शामिल हैं। विनिर्माण या औद्योगिक कंपनियों वैश्विक दिलचस्पी आकर्षित कर रही हैं।
अस्थिर बाजारों में आप विक्रेताओं और खरीदारों की उम्मीदों को कैसे पूरा करते हैं?
हम पॉइंट-इन-टाइम वैल्यूएशन के बजाय लॉन्ग-टर्म मल्टीपल पर जोर देते हैं। भारतीय बाजारों ने ऐतिहासिक रूप से, अल्पावधि उतार-चढ़ाव के बावजूद, सेक्टोरल मल्टीपल बनाए रखा है। आईपीओ के लिए हम वित्त पोषित व्यावसायिक योजनाओं और सेकंडरी बिक्री (60-90 प्रतिशत निवेशक-स्वामित्व वाली) वाली कंपनियों पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
हाल में कॉन्फीडेंशियल फाइलिंग (गोपनीय फाइलिंग) का चलन बढ़ा है। इसके क्या फायदे और नुकसान हैं? क्या और भी कंपनियां इस रास्ते को अपनाएंगी?
कॉन्फीडेंशियल फाइलिंग को वैश्विक तौर पर नियामकों की मंजूरी हासिल है। लेकिन उनका इस्तेमाल व्यावसायिक जरूरतों के हिसाब से होना चाहिए। गोपनीय फाइलिंग का विकल्प चुनने का प्रमुख कारण यह है कि संवेदनशील डेटा को प्रतिस्पर्धियों के हाथों में जाने से रोका जा सके।
गोल्डमैन सैक्स के लिए वर्ष 2025 अब तक कैसा रहा है?
पिछले साल हमने 21 सौदे किए – 3 आईपीओ और 18 ब्लॉक डील। इस साल, कम अनुकूल बाजार हालात के बावजूद हमने पहले ही तीन सौदे पूरे कर लिए हैं जबकि चार अन्य अग्रिम चरणों में हैं तथा नौ सौदों के मजबूत प्रस्ताव बरकरार हैं।