पिछले हफ्ते रेलिगेयर-एइगॉन ने लोटस म्युचुअल फंड को उसके औसत असेट अंडर मैनेजमेंट के 1-2 फीसदी की अनुमानित कीमत पर खरीद लिया।
इस डील की पहले हुई दूसरी म्युचुअल फंड की किसी डील से तुलना करें तो आपकों समझ में आ जाएगा कि हम क्या कह रहे हैं। मिसाल के तौर पर इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट फाइनेंस कार्पोरेशन (आईडीएफसी) ने स्टैंडर्ड चार्टर्ड म्युचुअल फंड को इस साल मार्च में 830 करोड़ रुपए में खरीदा जो उसके औसत असेट अंडर मैनेजमेंट (एयूएम) का 5.7 फीसदी था।
दरअसल म्युचुअल फंड उद्योग में होने वाले ज्यादातर अधिग्रहण एयूएम के 5 से 7 फीसदी के बीच की वैल्यू पर ही होते हैं। लोटस म्युचुअल फंड का वैल्युएशन कम होने की एक वजह यह भी थी कि फंड के एयूएम का 85 फीसदी हिस्सा डेट की शक्ल में था और दूसरी वजह यह थी कि लोटस के एयूएम में भारी गिरावट आ गई थी।
पिछले एक महीने में इस फंड हाउस का एयूएम 7937 करोड़ से घटकर 5457 करोड़ पर आ गया है। इस गिरावट में दो संस्थागत योजनाओं- लोटस इंडिया लिक्विड प्लस इंस्टिटयूशनल (1430 करोड़) और लोटस इंडिया लिक्विड सुपर इंस्टिटयूशनल (284 करोड़) को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ। इसके अलावा एक फिक्स्ड मेच्योरिटी प्लान (एफएमपी) को भी करीब 240 करोड़ का नुकसान हुआ।
लोटस इंडिया लिक्विड प्लस इंस्टिटयूशनल एक ओपन एंडेड फंड लिक्विड प्लस फंड है जो 2007 में शुरू की गई थी। हालांकि सितंबर 2008 की आखिरी में फंड के पास जो निवेश थे उनकी औसत मेच्योरिटी 1.12 साल की थी।
सूत्रों के मुताबिक इनमें से कुछ तो 2009 की शुरुआत तक मेच्योर हो रहे हैं लेकिन इस निवेश में से काफी कुछ अगले साल के आखिरी तक या फिर उसके भी बाद मेच्योर हो रहे हैं। लेकिन दोनों ही कंपनियों ने इस डील पर बात करने से इनकार कर दिया।
म्युचुअल फंड रिसर्च एजेंसी वैल्यू रिसर्च के आंकडों के मुताबिक इस स्कीम का 35.66 फीसदी पैसा डिबेंचरों में निवेश किया गया था जबकि 27.62 फीसदी हिस्सा सर्टिफिकेट ऑफ डिपॉजिट में, 20.89 फीसदी स्ट्रक्चर्ड ऑब्लिगेशंस में और बाकी का पैसा कॉमर्शियल पेपरों में निवेश किया गया था।
जब इस लिक्विड प्लस स्कीम का एयूएम 2094 करोड़ से गिरकर 663 करोड़ पर आ गया तब उसने कुछ इल्लिक्विड पेपर्स (यानी जिनमें उतनी तरलता नहीं थी)एएमसी को हस्तांतरित कर दिए। इसके बदले एएमसी ने बैंकों से कर्ज लेकर रिडम्पशन के दबाव को हल्का किया।
हालांकि इस पेपर्स की औसत रेटिंग एए है लेकिन चूंकि यह एक साल के बाद ही मेच्योर होंगे लिहाजा फंड हाउस अब मुश्किल में फंस गया था। सूत्रों का कहना है कि इसके प्रमोटर, टेमासेक्स एलेक्जैन्ड्रा फंड मैनेजमेंट और साबरे कैपिटल को इसकी कीमत तुरंत मिलना भी मुश्किल है।
एक म्युचुअल फंड एक्सपर्ट का कहना है कि चूंकि अब रेलिगेयर- एइगॉन की जिम्मेदारी बनती है कि वह अपने निवेशकों को पैसा वापस करे लिहाजा अब वह ऐसा करने के लिए बहुत संभव है कि वह यह पैसा पेपर की मेच्योरिटी तक अपने पास ही रखने का फैसला करे। दूसरा रास्ता यह है कि वह इन पेपरों को तुरंत ही बेच दे। लेकिन तब उसे डिस्काउंट में बिकवाली करनी होगी जो लोटस का वैल्युएशन और कम कर देगा।