अदाणी-हिंडनबर्ग मामले से बाजार में उथलपुथल मचने के बाद भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने अधिक जोखिम वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) के लिए ज्यादा खुलासे जरूरी करने का प्रस्ताव रखा है। यह प्रस्ताव भरोसा और पारदर्शिता बढ़ाने के मकसद से रखा गया है।
नए नियमों के तहत किसी एक समूह में 50 फीसदी से अधिक निवेश वाले या 25,000 करोड़ रुपये से अधिक संपत्तियों वाले एफपीआई को अधिक जोखिम वाला माना जाएगा। उन्हें स्वामित्व, आर्थिक हितों और नियंत्रण अधिकारों की पूरी पहचान जैसी अतिरिक्त जानकारी भी देनी होगी। ऐसा नहीं करने पर एफपीआई का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा।
यह कदम उन चिंताओं को दूर करने के लिए लगाया गया है कि कुछ प्रवर्तक 25 फीसदी न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता के नियम से बचने के लिए अतिरिक्त शेयर इधर-उधर कर सकते हैं। सेबी ने आज एक परामर्श पत्र में कहा, ‘एक ही जगह निवेश होने से चिंता बढ़ जाती है कि ऐसे कॉरपोरेट समूहों के प्रवर्तक या उनके साथ मिलीभगत कर रहे अन्य निवेशक न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता जैसी नियामकीय जरूरतों से बचने के लिए एफपीआई का रास्ता पकड़ रहे हों।’
प्रस्तावित नियमों के जरिये बाजार नियामक स्वाभाविक व्यक्तियों, सार्वजनिक खुदरा फंडों या बड़ी सूचीबद्ध कंपनियों तक स्वामित्व का विस्तृत ब्योरा जानना चाहता है। इसके लिए अन्य मामलों में लागू होने वाले धन शोधन निवारक अधिनियम (पीएमएलए) अथवा गोपनीयता कानूनों जैसी कोई बंदिश नहीं होंगी। कानून विशेषज्ञों ने कहा कि यदि इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है तो दुनिया भर में एफपीआई के लिए खुलासे के सबसे सख्त नियम भारत में ही होंगे। सेबी ने कहा है कि नए नियम सरलता के बजाय पारदर्शिता को तवज्जो देते हैं।
सेबी ने कहा, ‘ऐसा लग सकता है कि खुलासों की जरूरत बढ़ने से निवेश पहले जितना सुगम नहीं रहेगा। मगर पारदर्शिता और भरोसे के बगैर लगातार पूंजी नहीं आ सकती।’हालांकि ये सख्त मानदंड सभी एफपीआई पर लागू नहीं होंगे। बाजार नियामक ने जोखिम के आधार पर एफपीआई की श्रेणियां बनाने का प्रस्ताव रखा है। सरकार और उससे संबंधित संस्थाओं जैसे केंद्रीय बैंकों, सॉवरिन वेल्थ फंडों को कम जोखिम वाली श्रेणी में रखा गया है तथा पेंशन फंडों और सार्वजनिक खुदरा फंडों को मध्यम जोखिम वाला माना गया है। बाकी सभी एफपीआई को अधिक जोखिम की श्रेणी में रखा गया है।
सेबी का अनुमान है कि कुल एफपीआई निवेश (एयूसी) में से 6 फीसदी यानी करीब 2.6 लाख करोड़ रुपये अधिक जोखिम वाले एफपीआई की श्रेणी में रखे जा सकते हैं। इनमें किसी एक समूह में ही 50 फीसदी से अधिक निवेश अथवा 25,000 करोड़ रुपये का निवेश हो सकता है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति ने हाल ही में अपनी रिपोर्ट में बताया कि पीएमएलए में संशोधन के कारण अदाणी समूह की कंपनियों में न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता नियमों के संभावित उल्लंघन की जांच में सेबी को कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। सेबी ने 2018 में ‘अपारदर्शी ढांचे’ वाले एफपीआई पर बंदिश यह कहकर हटा दी कि धनशोधन निवारक कानून के तहत लाभार्थी मालिक के निवेश की घोषणा नियमन के लिहाज से पर्याप्त है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित समिति ने पाया था कि ‘अपारदर्शी ढांचे’ पर प्रावधान खत्म किए जाने से अदाणी मामले में एफपीआई योगदान करने वाले स्वाभाविक मालिकों की पहचान शायद हमेशा चलती रहे क्योंकि उनका ठिकाना ही नहीं पता है।
फिलहाल पीएमएलए के तहत 10 फीसदी या 25 फीसदी जैसी निश्चित सीमा के आधार पर कानूनी निकायों के लाभार्थी मालिकों की पहचान का प्रावधान है। मगर एफपीआई के लाभार्थी मालिक के रूप में किसी भी व्यक्ति की पहचान नहीं की जाती है क्योंकि एफपीआई में निवेश करने वाला प्रत्येक निकाय आम तौर पर पीएमएलए नियमों में दी गई सीमा के नीचे ही रहता है।
ध्रुव एडवाइजर्स के पार्टनर पुनीत शाह ने कहा, ‘लाभार्थी मालिक की अवधारणा को पूरी मान्यता हासिल है और नियमों से बचने के लिए बनाए गए अपारदर्शी ढांचों को हतोत्साहित करना चाहिए। अतिरिक्त खुलासों को अधिक जोखिम वाले पहचाने गए एफपीआई तक ही सीमित रखना सही है।’