क्रेडिट के लिए कठिन वातावरण के बावजूद एचडीएफसी बैंक ने अपने लोन बुक को अपेक्षाकृत बेहतर रखने में सफल हुई है।
अगर बैंक का सितंबर 2008 की दूसरी तिमाही में परिसंपत्ति गुणवत्ता जून की तिमाही के मुकाले प्रतिकूल असर पडा तो इसका कारण सेंचुरियन बैंक के साथ विलय का प्रतिकूल असर है।
हालांकि सकल एनपीएलए के 1.6 प्रतिशत और शुध्द एनपीएल के 0.6 प्रतिशत के स्तर में 10 आधार अंकों उछाल के कारण चिंता की कोई बात नहीं है। मंदी का शिकार हो रही अर्थव्यवस्था से एनपीएल के स्तर में बढ़ोरती होती है इसमें कोई शक नहीं है, खासकर रिटेल पोर्टफोलियो पर तो प्रतिकूल स्तर पड़ता ही है।
एचडीएफसी बैंक का लेकिन पिछला रिकॉर्ड बहुत बढिया रहा है और बैंक को आगे भी इसे बरकरार रखना चाहिए। हालांकि इस चुनौति भरे माहौल में भी बैंक के कारोबार पर कोई खास असर नहीं पडा और यह पहले की तरह ही सामान्य रहा।
चूंकि बैंक के इस साल के आंकड़े की गणना को पिछले साल के आंकडों से करना वैध नहीं है क्योंकि सेंचुरियन बैंक का एचडीएफसी बैंक में विलय हो गया था लेकिन मोटे तौर पर तुलना करने पर पता लगता है कि इस साल सितंबर की तिमाही में लोन बुक और डिपॉजिट दोनों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है।
बैंक के लिए इससे भी ज्यादा खुशी की बात यह रही है कि इसका इंटरेस्ट मार्जिन सितंबर 2008 की तिमाही में 4.1 प्रतिशत से बढ़कर 4.2 के स्तर पर पहुंच गया है। इसकी वजह फंडों की कीमतों में बढोतरी हुई जिसका कि थोड़ा सा भार बैंक ने अपने ग्राहकों पर भी दिया।
अपने सस्ते करेंट और सेविंग एकाउंट डिपॉजिट के शेयरों को 45 प्रतिशत के नीचे रख कर बैंक फंडों की कीमतों पर नियंत्रण रख रहा है। इस तिमाही में एचडीएफसी बैंक के ऑपरेटिंग प्रॉफिट में साल-दर-साल के हिसाब से 36 प्रतिशत की आकर्षक बढोतरी हुई है, हालांकि इस तुलना को तकनीकी आधार पर सही नहीं माना जा सकता है।
सामान्य रूप से एचडीएफसी बैंक में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है हालांकि ताजा मंदी का संकट और मंदी पड रही अर्थव्यवस्था के कारण बैंक को कुछ सावधानीपूर्वक कदम उठाने पड सकते हैं। चूंकि बैंक का कॉर्पोरेट और खुदरा क्षेत्रों में बराबर का कारोबार है इसलिए बैंक अपने प्रतिद्वंदियो के मुकाबले बेहतर स्थिति में रहेगा। मौजूदा दौर में अगर बैंक को सबसे अधिक वैल्युएशन मिला है तो इसका कारण बैंक द्वारा उधार देने में सावधानी बरतना है और इसी बात फायदा बैंक को मिल रहा है।
कॉनकोर: मार्जिन पर दबाव
अनिश्तिता भरे आर्थिक वातावरण ने 3,341 करोड़ रुपये वाले कंटेनर कॉर्पोरेशन (कॉनकोर) को सतर्कता बरतने पर मजबूर कर दिया है। कपंनी को लगता है कि अगली दो तिमाहियों में आयात और निर्यात में कमजोरी रहेगी।
ऐसा लगता है कि बंदरगाहों पर आयात और निर्यात संबंधी गतिविधियों में काफी स्थिलता आ गई है। सितंबर की तिमाही में कारोबार बहुत ही निराशाजनक रहा और यह पिछले साल की समान अवधि के 23 प्रतिशत के मुकाबल सिर्फ 13 प्रतिशत रहा।
कॉनकोर के लिए सितंबर की दूसरी तिमाही अच्छी नहीं रही, हालांकि इसके बावजूद भी खर्च में कटौती के कारण ऑपरनेटिंग प्रॉफिट 380 आधार अंकों की बढ़ोतरी के साथ 29.7 प्रतिशत रहा और कंपनी ने 90 प्रतिशत के अपने मार्केट शेयर को बरकरार रखा।
वॉल्यूम में इस जून की तिमाही के 8.6 प्रतिशत की तुलना में सिर्फ एक प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। बेहतर रियालाइजेशन के कारण कपंनी अपने राजस्व में साल-दर-साल के हिसाब से 10 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज कर पाने में सफल रही।
अगस्त में भारतीय रेल ने अपने हॉलेज चार्जेज में बढ़ोतरी कर दी जिसकेबाद कॉनकोर ने भी कीमतों में 15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी कर दी थी। इसकी वजह से आयात-निर्यात के कारोबार जिसका कि योगदान कंपनी के राजस्व में 80 प्रतिशत का होता है, में 13 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई।
घरेलू बाजार में कॉनकोर का कारोबार पर असर पड़ा प्रमुख क्लाइंटों जैसे इंदोरमा सिंथेटिक्स, मित्सूबिशी और आईओसी ने बहुत ज्यादा कारोबार नहीं किया। कंपनी का बॉटमलाइन की स्थिति यह रही कि घरेलू बाजार में कंपनी के राजस्व में 1 प्रतिशत की गिरावट आई जबकि जून की तिमाही में इसमें 4 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
जबकि कंपनी का शुध्द मुनाफे में 29 प्रतिशत की अच्छी बढ़ोतरी हुई है लेकिन कॉनकोर केलिए और अधिक फायदा मिलना मुश्किल लग रहा है। फिलहाल कपंनी का परिसंपत्ति आधार काफी मजबूत है और 1,740 रुपये के कैश के साथ कोई कर्ज नहीं है लेकिन जब तक राजस्व में सुधार नहीं होता है, मार्जिन के आनेवाली तिमाहियों में दबाव में रहने की संभावना है।
कंपनी की आमदनी के अगले कुछ सालों में 14-15 प्रतिशत की दर से विकास करने की संभावना है। फिलहाल 715 रुपये पर कंपनी के शेयरों का कारोबार वित्त वर्ष 2009 के अर्निंग्स के 10.5 गुना पर हो रहा है।