सॉवरेन बॉन्डों में निवेश करने वाले भारतीय डेट फंड, निवेशकों को बेहतर रिटर्न और बेहतर सुरक्षित उपायों के जरिये लुभाने की कोशिश में लगे हुए हैं।
इसके अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था में किए जा रहे सुधारों के प्रयासों के बीच ये डेट फंड ब्याज दरों में और कटौती की संभावना व्यक्त कर रहे हैं। गौरतलब है कि पिछले 6 महीने तक निराशाजनक प्रदर्शन करने वाले गिल्ट फंडों में अक्टूबर में 37.25 अरब रुपये का निवेश हुआ है।
गौरतलब है कि वर्ष 1999 से म्युचुअल फंडों की संस्था-एम्फी-इस तरह के आंकड़े उपलब्ध कराती आ रही है। गिल्ट फंडों में अक्टूबर में हुआ निवेश किसी भी महीने होनेवाला सबसे अधिक निवेश है। अक्टूबर में इन फंडों के शुध्द परिसंपत्ति मूल्य में औसतन 3.3 प्रतिशत की औसत बढ़ोतरी के बाद निवेशक इनकी तरफ आकर्षित हुए।
वैश्विक स्तर पर फंडों के बारे में जानकारी रखने वाले लिपर के अनुसार मौद्रिक उपायों में नरमी के कारण इन फंडों द्वारा दिए जा रहे रिटर्न में 112 आधार अंकों की गिरावट आई।
अक्टूबर में रिटर्न में बढ़ोतरी नवंबर 2001 के बाद सबसे ज्यादा है।
गिल्ट फंड द्वारा दिए जा रहे रिटर्न के बारे में कोटक महिन्द्रा ऐसेट मैंनेजमेंट की फिक्स्ड इनकम प्रमुख लक्ष्मी अय्यर ने कहा कि कुल मिलाकर ब्याज दरों में अच्छी बढ़ोतरी हो रही है और निश्चित तौर पर इसका सीधा फायदा गिल्ट फंडों को ही होगा।
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा पिछले चार सालों से कड़े मौद्रिक उपाय अक्टूबर में थम गए थए। वैश्विक स्तर पर मंदी की चिंताओं के बीच निवेशकों के खोए विश्वास को वापस लाने के लिए रिजर्व बैंक ने दरों में कटौती की घोषणा कर डाली।
इसके बाद छोटी अवधि के कर्ज की दरों या रेपो रेट में 150 आधार अंकों की कटौती की गई और इसी तर्ज पर नकद आरक्षी अनुपात में भी 350 आधार अंकों की कटौती की घोषणा की गई। इस बाबत अय्यर ने कहा कि ब्याज दरें अब अपने चरम पर पहुंच चुकी हैं और अब इनमें कमी देखने को मिलेगी।
गौरतलब है कि अय्यर के गिल्ट सेविंग प्लान फंड की परिसंपत्ति में अक्टूबर महीने में सौ गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 6.4 अरब रुपये के स्तर पर पहुंच गई।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज और डेवलपमेंट बैंक सिंगापुर और कुछ अन्य बैंकों का मानना है कि कमोडिटी की कीमतों में आ रही गिरावट और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के कमजोर पड़ने से कीमतों में बढ़ोतरी की चिंता कम होगी। लिहाज, ब्याज दरों में और कटौती की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
मालूम हो कि खुदरा और कॉर्पोरेट निवेशक दोनों ही फिक्स्ड इनकम फंड से निकलने के बाद सरकारी सिक्योरिटी में निवेश करने वाले फंडों के लिए कतार में खड़े हैं। उनकी चिंता की वजह बांड फंड पोर्टफोलियो की क्रेडिट गुणवत्ता को लेकर है।
इस बाबत भारत में डॉयचे बैंक के फिक्स्ड इनकम फंड मैनेजर निशांत गुप्ता ने कहा कि निवेशक जोखिम उठाने से कतरा रहे थे और ब्याज दरों पर ही अपना सारा ध्यान केन्द्रित कर दिया था जो कि अब नीचे की ओर जा रही हैं।