कैश ही किंग है। लगता है फंड मैनेजर इस बात पर जरूरत से ज्यादा मुग्ध हैं।
वैश्विक फंड मैनेजर मेरिल लिंच के सर्वे में यह बात सामने आई है कि बाजार में जोखिम बढ़ने से 49 फीसदी फंड मैनेजर कैश के ढेर पर सवार है। इससे साफ है कि अधिकांश फंड मैनेजर कैश रखना चाहते हैं और बाजार के सुधरने का इंतजार कर रहे हैं ताकि वे फिर से उसमें कूद सकें।
मेरिल लिंच में इक्विटी स्ट्रेटजी प्रमुख गैरी बेकर ने बताया कि फंड मैनेजर किसी ट्रिगर के इंतजार में हैं जो उनमें खरीदारी का आत्मविश्वास बढ़ा सके। उन्हें मॉनेटरी स्थितियां आसान होने और तीसरी तिमाही की आय का इंतजार है इसके जरिए उन्हें यह पता चल सकेगा की वास्तव में समस्या कहां है। साथ ही वे पूरे इक्विटी बाजार में अवसरों की ताक में है।
ऐसी स्थिति में जब वैल्यूएशन काफी आकर्षक हैं और फंड मैनेजरों को ट्रिगर की प्रतीक्षा है एनाम प्रतिभूति के धर्मेश मेहता का कहना है कि पूंजी बाजार में स्थायित्व लाकर इन फंड मैनेजरों का खोया विश्वास वापस लाया जा सकता है। एक मजबूत मुद्रा से आयात की अधिक लागत और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में बढ़ती मुद्रा जोखिम जैसी समस्याओं का भी निदान हो सकता है।
पिछले दस माह में सेंसेक्स 50 फीसदी से अधिक गिरा है, लेकिन उन संस्थागत विदेशी निवेशकों (एफआईआई) और हेज फंडों को 20 फीसदी का ही नुकसान हुआ इसका कारण रुपये में हुआ अवमूल्यन रहा। हालांकि जब इक्विटी और करंसी दोनों में गिरावट आती है तो उनका नुकसान डॉलर के आधार पर बढ़ जाता है और उनका निवेश और कम हो जाता है। इस नुकसान से हेज फंडों पर रिडिंप्शन का दबाव बढ़ता है।
इसी के चलते फंड मैनेजर कैश चाहते हैं। इंडिया इंफोलाइन के चेयरमैन निर्मल जैन का कहना है कि ब्याज दरों में कटौती आन फंड मैनेजरों के लिए एक और ट्रिगर होगा। इस समय ब्याज दरों में 1.5 फीसदी से लेकर 2 फीसदी तक ब्याज दरों में कटौती किए जाने की दरकार है।
बेशक कंपनियों को तरलता बढ़ने से मदद मिलेगी, लेकिन पैसे लागत उनके लिए ज्यादा अहम है। इस समय भारतीय कंपनियां विस्तार कर रहीं हैं लिहाजा उन्हें अधिक तरलता की दरकार है। भारतीय रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार ने हाल में तरलता में तो इजाफा किया है, लेकिन अभी भी रुपये की लागत अधिक है।
यहां से ब्याज दरों में कटौती करने पर कंपनियों को न सिर्फ डेट की उगाही में मदद मिलेगी, बल्कि उन्हें वर्किंग कैपिटल की लागत को नियंत्रण में लाने में मदद मिलेगी। क्योंकि वैश्विक वित्तीय बाजार में आई मंदी के कारण उनके लिए फंड उगाही के तमाम स्रोत सूख गए हैं। इस समय फंड की मांग तो है लेकिन ब्याज की दरें अधिक होने के कारण शायद ही कोई उन्हें लेना चाहता है।