लगातार दो महीने तक शुद्ध बिकवाल बने रहने के बाद दिसंबर में भारत के ऋण बाजार में लौटने वाले विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने जनवरी में एक बार फिर निकासी शुरू कर दी है क्योंकि अमेरिकी ट्रेजरी यील्ड और भारत के सरकारी बॉन्ड यील्ड के बीच अंतर कम हो गया है। बाजार के भागीदारों ने यह जानकारी दी।
उनका कहना है कि कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही भारतीय बॉन्ड और इक्विटी बाजारों के लिए अहम चुनौती पेश कर रही है क्योंकि 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड और 10 वर्षीय बेंचमार्क सरकारी बॉन्ड यील्ड का अंतर जनवरी में अब तक 13 आधार अंक कम हो गया है। अगले 2-3 महीने इंडेक्स संबंधी समायोजन के चलते होने वाले निवेश के अलावा खास तौर से पूंजी आकर्षित करने को लेकर मुश्किल भरे होंगे।
क्लियरिंग कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया के आंकड़ों के अनुसार दिसंबर में विदेशी निवेशकों ने फुल्ली एक्सेसेबल रूट (एफएआर) के तहत रखी गई 7,080 करोड़ रुपये की सरकारी प्रतिभूतियां खरीदीं। इस बीच, उन्होंने जनवरी में अब तक 3,409 करोड़ रुपये की एफएआर प्रतिभूतियां बेचीं। आरबीएल बैंक के ट्रेजरी प्रमुख अंशुल चांडक ने कहा कि कैलेंडर वर्ष की पहली तिमाही भारतीय बॉन्ड और इक्विटी बाजार के लिए काफी मुश्कलों वाली होने जा रही है। चूंकि अंतर घट गया है।
लिहाजा निवेश भी मुश्किल होगा। अगले दो-3 महीने निवेश आकर्षित करने के लिहाज से परेशानी वाले हो सकते हैं। अक्टूबर और नवंबर में विदेशी निवेशक एफएआर प्रतिभूतियों के शुद्ध बिकवाल रहे थे जिसकी वजह मौजूदा वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अनुमान से कम वृद्धि थी। उन्होंने नवंबर में शुद्ध रूप से करीब 5,187 करोड़ रुपये की एफएआर प्रतिभूतियां बेचीं।
ब्लूमबर्ग इंडेक्स सर्विसेज के इमर्जिंग मार्केट लोकर करेंसी गवर्नमेंट इंडेक्स से भारत 31 जनवरी, 2025 से जुड़ेगा। जेपी मॉर्गन सूचकांकों से भारत के सरकारी बॉन्डों का आधिकारिक जुड़ाव मौजूदा वित्त वर्ष में 28 जून से हुआ और अब तक एफएआर प्रतिभूतियों ने करीब 50,000 करोड़ रुपये का शुद्ध निवेश हासिल किया है।