विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने इस महीने 3.4 अरब डॉलर के शेयरों की बिकवाली की, जो पिछले साल जनवरी के बाद का सर्वोच्च आंकड़ा है क्योंकि तब उन्होंने 3.6 अरब डॉलर निकाले थे।
एफपीआई के बड़े निवेश वाली ब्लूचिप फर्मों के निराशाजनक नतीजों, अमेरिकी बॉन्ड के बढ़ते प्रतिफल और भूराजनीतिक अनिश्चितता जैसी वजह ने विदेशी फंडों को जोखिम न उठाने के लिए प्रेरित किया।
भारत से हुई यह डॉलर निकासी उभरते बाजारों में सबसे ज्यादा रही। मेगा कैप्स में शामिल कंपनियों मसलन एचडीएफसी बैंक, हिंदुस्तान यूनिलीवर और बजाज फाइनैंस के दिसंबर तिमाही के नतीजों से उनको निराशा हुई और उनके सेंटिमेंट पर असर पड़ा। इन कंपनियों में एफपीआई का खासा निवेश है।
एचडीएफसी बैंक की कर्ज वृद्धि और शुद्ध ब्याज मार्जिन को लेकर चिंता के कारण महज पांच सत्रों में एचडीएफसी बैंक के शेयर में 15 फीसदी तक की गिरावट आ गई।
17 जनवरी को एफपीआई ने एक दिन में देसी बाजारों से 10,483 करोड़ रुपये की सबसे अधिक निकासी देश के निजी क्षेत्र के सबसे बड़े बैंक में की जिससे उसके शेयर में 8.4 फीसदी की गिरावट आई।
अमेरिकी बॉन्ड यील्ड बढ़ने का भी सेंटिमेंट पर असर पड़ा और चिंता बढ़ी कि क्या अमेरिकी फेडरल रिजर्व उसी रफ्तार से ब्याज दरें घटाएगा, जितनी बाजार ने उम्मीद की थी। दिसंबर में 3.86 फीसदी पर टिकने के बाद 10 वर्षीय अमेरिकी बॉन्ड का प्रतिफल 4.2 फीसदी तक चढ़ गया, जिससे जोखिम वाली परिसंपत्तियों की कीमतें दोबारा तय हुई।
बाजार के कुछ विशेषज्ञों ने कहा कि उभरते बाजारों के फंडों पर शायद भारत से मुनाफावसूली का दबाव हो सकता है क्योंकि पिछले दो महीनों में यहां के बाजारों में काफी तेजी देखने को मिली है।
एवेंडस कैपिटल पब्लिक मार्केट्स ऑल्टरनेट स्ट्रैटिजीज के सीईओ एंड्यू हॉलैंड ने कहा कि एफपीआई शायद चीन में निवेश के लिए भारत जैसे बाजारों से रकम निकाल रहे हैं। यह सस्ता बाजार है।
नतीजों के लिहाज से बैंकिंग क्षेत्र ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया है। अर्थव्यवस्था की दिशा का संकेत देने वाले बैंकिंग क्षेत्र के शेयरों के खराब नतीजों के कारण उनका शेयर विशेष में भारांक घटाने पर ज्यादा ध्यान रहा।
भारी बिकवाली के बावजूद सेंसेक्स में जनवरी में महज 0.7 फीसदी की गिरावट आई। इसकी वजह देसी संस्थागत निवेशकों की खरीद रही है। देसी म्युचुअल फंडों ने करीब 20,000 करोड़ रुपये के शेयर खरीदे।
साल 2023 में उनकी खरीद 1.7 लाख करोड़ रुपये की रही, जो किसी कैलेंडर वर्ष में हुई सबसे ज्यादा शुद्ध खरीद में से एक है। मजबूत आय और आर्थिक वृद्धि, फेड की ब्याज बढ़ोतरी का चक्र समाप्त होने की उम्मीद और ब्लॉक डील व अन्य निजी इश्यू में निवेश के मौके ने पिछले साल निवेश के आंकड़ों को सहारा दिया।
विश्लेषकों को मुताबिक, आने वाले समय में आम बजट, विकसित दुनिया में ब्याज दरों की दिशा और चीनी अर्थव्यवस्था में सुधार की संभावना जैसी बातों का एफपीआई के निवेश पर असर रहेगा। भारत का मजबूत आर्थिक माहौल और अमेरिका में ब्याज दरों में कटौती देसी बाजारों की मजबूती के लिए अनुकूल हैं। हालांकि भारत का महंगा मू्ल्यांकन चिंता का विषय हो सकता है।
बीएनपी पारिबा ने हालिया नोट में कहा है कि मूल्यांकन अब हर मानक पर ऊंचा है। जोखिम की अन्य वजह हैं रिकवरी का आधार संकरा होना, आम उपभोग वाली श्रेणियों का अभी भी दबाव में होना, चीन को लेकर फिर से दिलचस्पी और इक्विटी पर लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर में बढ़ोतरी की संभावना।