मॉरीशस के दो विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (एफपीआई) ने 9 सितंबर की समय-सीमा पर मोहलत के लिए प्रतिभूति अपील पंचाट (सैट) में अपीलें दाखिल की हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एफपीआ के लिए निर्धारित सीमा से अधिक होल्डिंग बेचने के लिए 9 सितंबर की समय-सीमा तय कर रखी है।
सैट की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार लोटस ग्लोबल इन्वेस्टमेंट और एलटीएस इन्वेस्टमेंट फंड्स ने 20 अगस्त को पंचाट के समक्ष दो अलग अलग याचिकाएं पेश कीं। कानूनी सूत्रों के अनुसार मामले की सुनवाई मंगलवार को होने की संभावना है। संयोग से शॉर्टसेलर हिंडनबर्ग ने अदाणी समूह के खिलाफ अपनी रिपोर्ट में इन दोनों फंडों को संदिग्ध बताया था।
इस घटनाक्रम से अवगत एक व्यक्ति ने कहा, ‘हालांकि इन फंडों ने सेबी द्वारा निर्धारित सीमा नियमों का उल्लंघन नहीं किया है लेकिन इन्हें अतिरिक्त खुलासे करने से छूट नहीं दी गई है। ये फंड अब अपनी होल्डिंग बेचने के लिए समय-सीमा बढ़ाने का अनुरोध कर रहे हैं और खुलासे में छूट नहीं मांग रहे हैं।’
सेबी की खुलासा व्यवस्था उन चिंताओं के बीच शुरू की गई थी कि एफपीआई के रास्ते का इस्तेमाल न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता मानदंडों सै बचने के लिए किया जा सकता है। सेबी ने एफपीआई (जो स्वामित्व विवरण का व्यापक खुलासा मुहैया कराने में विफल रहे) को अपनी अतिरिक्त हिस्सेदारी घटाने और उल्लंघन सुधारने के लिए 9 सितंबर तक का समय दिया था।
शुक्रवार को ऐसी अटकलें लगती रहीं कि कुछ खास विदेशी फंड सोमवार की समय-समय से पहले ही अपनी होल्डिंग बेचने में लगे हैं। स्टॉक एक्सचेंजों के अस्थायी आंकड़ों के अनुसार शुक्रवार को 2.1 अरब डॉलर की सकल बिक्री और 2.01 अरब डॉलर की सकल खरीदारी हुई।
नियामकीय अधिकारी इस बात को दोहराते रहे हैं कि अतिरिक्त खुलासा मानकों का क्रियान्वय सुचारू रूप से हुआ है और निवेशकों को लंबी अवधि के लिहाज से मदद मिली है। उन्होंने कहा कि दिशा-निर्देशों में ‘अच्छे’ कारोबारियों को नुकसान पहुंचाए बिना ‘बुरे’ कारोबारियों को रोकने के प्रावधान किए गए हैं।
सूत्रों का कहना है कि कई अन्य एफपीआई (जो सेबी के अगस्त 2023 के सर्कुलर में आते थे) ने छूट के लिए आवेदन किया था लेकिन उन्हें किसी तरह की राहत नहीं दी गई है। इस संबंध में सेबी को भेजे गए ईमेल सवालों का कोई जवाब नहीं मिला है।
फरवरी में नियमों में बदलाव के बाद मॉरीशस और केमैन द्वीप के कुछ एफपीआई (जिन्हें पहले कुछ नियमों से छूट थी) अब अपनी छूट की स्थिति खोने के बाद ‘नियामकीय उतार-चढ़ाव’ से गुजर रहे हैं। हालांकि नियामक ने कुछ खास अनुपालन मुद्दों को सरल बनाने के लिए कदम उठाए हैं।