रियल्टी फर्म और गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां यानि एनबीएफसी खुद में नए तरीकों के जरिए निवेश करवाये जाने का तरीका ढ़ूंढ़ रही है।
यह तरीका डेट फंडों के इस्तेमाल करते हुए अंजाम दिया जा रहा है। इस बाबत क्रेडिट रेटिंग एजेंसी क्रिसिल के एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2007 में बैंकों के द्वारा जारी किए गए कॉरपोरेट सिंगल लोन सेलडाऊन (सीएसएलएस) इंस्ट्रूमेंट में 80 फीसदी केवल रियाल्टी और एनबीएफसी के लिए जारी किया गया था।
यह लोन कुल 25,000 करोड़ रुपये का था जो साल 2006 के 4,600 करोड़ रुपये के मुकाबले 350 फीसदी ज्यादा था।जारी किए गए लोन में ज्यादा हिस्सा डेट फंडों का था। मालूम हो कि सीएसएलएस कारोबार में प्राप्त किए गए कर्ज सिक्योरटाइज किए जाते हैं और फिर पॉस थ्रू सर्टिफिकेट यानि पीटीसी रेटिंग के जरिए लेनदार की क्रेडिट क्वालिटी को परखा जाता है।
इस प्रकार रिटर्न करने की दर 15 फीसदी है तो फिर इस पर बैंक कुल 2 फीसदी का शुल्क लेती है,जबकि पीटीसी खरीद करनेवाले को लोन अवधि का 13 फीसदी मिलता है। क्रिसिल रेटिंग के डायरेक्टर एन मुत्थुरमन का कहना है कि सीएसएलएस का बाजार गर्म है और इसने गति भी पकड़ ली है। 2006 में जहां ऐसे लोन के कारोबार की संख्या 51 थी वहीं 2007 में यह संख्या पहुंचकर 250 हो गई।
फिच रेटिंग के संदीप सिंह का कहना है कि अब म्युचुअल फंडों का निवेश इन दो सेक्टरों में ज्यादा बढ़ा है,क्योंकि बांडों में सीधे निवेश से ज्यादा सुरक्षित इन दो सेक्टरों में निवेश करना है। किसी म्युचुअल फंड के द्वारा रियल एस्टेट फंड के बांड खरीदे जाते हैं और तब अगर किसी प्रकार की डिफॉल्टिंग का मसला उत्पन्न होता है तो ऐसी स्थिति में म्युचुअल फंड सीधे अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है।
इसके अलावा सीएसएलएस कारोबार वाली स्थिति में डिफाल्टेड बांड दस्तावेजों को सीधे बैंक को बेचा जा सकता है। साथ ही डिफॉल्ट करने वाली कंपनी की परिसंपत्ति को भी जब्त किया जा सकता है।