वित्त वर्ष 2022-23 का बजट ऐसे समय पर पेश होने जा रहा है जब भारत की अर्थव्यवस्था विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से जूझ रही है। इन चुनौतियों में कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें और लगातार बनी हुई मुद्रास्फीति प्रमुख हैं। इनकी वजह से आगामी महीनों में सरकारी कोष पर दबाव पड़ सकता है। ओमिक्रॉन के कारण छिटपुट तौर पर लगाए जा रहे लॉकडाउन ने पहले ही चुनिंदा क्षेत्रों में कारोबार की धारणा पर असर डाला है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण 1 फरवरी को बजट पेश करेंगी।
इस संदर्भ में विश्लेषकों का मानना है कि व्यापार, आतिथ्य और पर्यटन, वाहन और लॉजिस्टिक क्षेत्रों पर आगामी बजट में विशेष ध्यान दिया जा सकता है क्योंकि विगत कुछ महीनों में इन्हें काफी अधिक झटका लगा है। आगामी महीनों में पांच राज्यों में चुनाव होने हैं जिनमें उत्तर प्रदेश और पंजाब बड़े राज्य हैं। ऐसे में कुछ लोक लुभावन घोषणाओं से भी इनकार नहीं किया जा सकता है।
प्रभुदास लीलाधर में शोध प्रमुख अमनिश अग्रवाल ने अनुष्का झाजेड के साथ मिलकर लिखे एक हालिया नोट में कहा, ‘हमें मनरेगा, पीएम किसान योजना और किसान कर्ज माफी के लिए अधिक आवंटन किए जाने की उम्मीद है ताकि ग्रामीण लोगों को खुश किया जा सके। मध्य वर्ग के लिए आयकर के लिए मानक कटौती की सीमा बढ़ाई जा सकती है।’
अग्रणी ब्रोकरेज कंपनियों की उम्मीदेंं
जेफरीज : तंबाकू कर में बदलाव किया जा सकता है क्योंकि डब्ल्यूएचओ की सिफारिश है कि करों को बढ़ाकर खुदरा कीमतों के 75 फीसदी तक ले जाया जाए और सरकार इस पर विचार कर रही है। विशेष तौर पर सड़क और रेल क्षेत्र में बजट खर्च में करीब 20 से 25 फीसदी का इजाफा किया जा सकता है, हाइड्रोजन मिशन के लिए आवंटन बढ़ाया जा सकता है और सड़कों, रेल और विद्युत संपत्तियों के मुद्रीकरण का विचार और जोर पकड़ सकता है। बूस्टर डोज के लिए धन दिया जा सकता है और जन औषधि केंद्रों की संख्या बढ़ाने के लिए आवंटन किया जा सकता है। निजीकरण/विनिवेश पर नए सिरे से जोर दिया जा सकता है।
मॉर्गन स्टैनली : बजट में क्रमिक रूप से राजकोषीय समेकन, सार्वजनिक और निजी दोनों तरह के पूंजीगत व्यय पर जोर देते हुए निवेश संचालित वृद्घि को लगातार बढ़ावा देने और रणनीति विनिवेशों तथा संपत्ति मुद्रीकरण के जरिये अतिरिक्त संसाधन जुटाने पर ध्यान दिया जा सकता है। वैश्विक बॉन्ड सूचकांकों में भारतीय बॉन्डों को शामिल कराने पर स्पष्टता लाई जा सकती है।
इक्विटी बाजारों में जिन कारकों का सर्वाधिक असर पड़ेगा उनमें एक विश्वसनीय राजकोषीय घाटा लक्ष्य, सरकार की खर्च योजनाएं बनाम वित्तीय समेकन, लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर में बदलाव, सेवा क्षेत्र के लिए कम कर, एफएआर बॉन्डों के लिए कर मुद्दों का समाधान शामिल है।
नोमुरा : हमें उम्मीद है कि सरकार वित्त वर्ष 2022 में 6.8 फीसदी के जीडीपी राजकोषीय घाटे के लक्ष्य को हासिल करेगी और वित्त वर्ष 2023 के लिए जीडीपी के 6.4 फीसदी राजकोषीय घाटे का लक्ष्य निर्धारित करेगी। कॉर्पोरेट/व्यक्तिगत आयकर दरों में कोई बड़ा बदलाव होने की उम्मीद नहीं है। पंूजीगत व्यय में 25 फीसदी की मजबूत वृद्घि होने की उम्मीद है जिसका जोर बुनियादी ढांचे पर होगा।
मोतीलाल ओसवाल क्यिोरिटीज : बड़े आंकड़ों से इतर तीन क्षेत्रों में घोषणाओं पर हम करीब से नजर रखेंगे- पहला यह कि निकट भविष्य में कुछ स्व-परिसमापन अस्थायी व्यक्तिगत नौकरी/निजी खपत को बढ़ावा देने के लिए आय समर्थन के उपाय, दूसरा यह कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के कमजोर पडऩे और आसन्न चुनावों के बीच ग्रामीण अर्थव्यवस्था को समर्थन देने के लिए कुछ उपाय और तीसरा यह कि आवासीय रियल एस्टेट क्षेत्र को उबारने के लिए किसी उपाय का स्वागत किया जाएगा।
एमके ग्लोबल : राजकोषीय नीति के रुख को जानने के लिए बाजार की व्यग्रता को समझा जा सकता है। तंग वैश्विक वित्तीय परिस्थितियों के बीच वृद्घि और संभावित बाजार स्थिरता के मध्य समझौताकारी तालमेल की लागत को लेकर नीतिगत धारणा से तय होगा कि राजकोषीय रुख प्रकृति में चक्रीय या फिर प्रति-चक्रीय होगा। सरकार से अगले वित्त वर्ष में किसी महत्त्वाकांक्षी वित्तीय समेकन के लक्ष्य की उम्मीद कम है।
एडलवायस सिक्योरिटीज : पॉलिसी का जोर ग्रामीण खर्च को समर्थन देने पर रह सकता है लेकिन बुनियादी ढांचे के लिए बजट से इतर संसाधनों की आवश्यकता होगी। विनिर्माण के लिए पीएलआई का विस्तार और एमएसएमई के लिए और अधिक रियायतों की घोषणा हो सकती है।