जेफरीज के वैश्विक इक्विटी रणनीति के प्रमुख क्रिस्टोफर वुड ने एशिया प्रशांत (जापान को छोड़कर) सापेक्षिक रिटर्न पोर्टफोलियो में भारतीय इक्विटी में एक फीसदी निवेश घटाया है। ऑस्ट्रेलिया और मलेशिया में हरेक में आधा फीसदी की कटौती चीन के हक में हुई है। चीन में उनके निवेश में दो फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई है।
वुड ने लिखा कि चीन में तेजी ने सात दिन की छुट्टी से पहले रफ्तार भरी है और सीएसआई 300 इंडेक्स सोमवार को 8.5 फीसदी चढ़ा जबकि पांच कारोबारी सत्र में इसमें 25.1 फीसदी का इजाफा हुआ। शांघाई में अगला कारोबारी सत्र 8 अक्टूबर को होगा।
वुड ने कहा कि इस कारण चीन का एमएससीआई एसी एशिया प्रशांत (जापान को छोड़कर) और एमएससीआई इमर्जिंग मार्केट्स बेंचमार्क में तटस्थ भारांक क्रमश: 3.4 फीसदी और 3.7 फीसदी बढ़ा और यह पिछले पांच कारोबारी सत्र में 26.5 फीसदी व 27.8 फीसदी हो गया। इससे उस देश में इन परिसंपत्ति वर्गों के फंड मैनेजरों की मुश्किलों का पता चलता है, जहां जाहिर तौर पर प्रमुख नीतिगत फैसले अनिवार्य रूप से एक व्यक्ति ले रहा है।
भूराजनीति का जोखिम
वुड ने कहा कि भूराजनीतिक हालात का बिगड़ना वैश्विक इक्विटी बाजारों के लिए सबसे बड़ा जोखिम है। इसके बारे में उनका मानना है कि उन्होंने इसे पूरी तरह खारिज नहीं किया है। पश्चिम एशिया और रूस-यूक्रेन में बढ़ता संकट भारत समेत सभी वैश्विक बाजारों को बुरा असर डालेगा जिसके लिए ये देश अभी तक तैयार नहीं हैं।
वुड ने ग्रीड ऐंड फियर में निवेशकों को लिखे अपने साप्ताहिक नोट में कहा कि मेरा अब भी मानना है कि बाजारों के लिए अल्पावधि का सबसे बड़ा जोखिम भूराजनीति है। यूक्रेन और पश्चिम एशिया में जमीनी हालात काफी खराब हैं। अभी भी डॉनल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने पर यह संभावना बन सकती है कि कम से कम एक विवाद (रूस-यूक्रेन) का तेजी से समाधान निकलेगा।
तेल में उबाल
भूराजनीतिक घटनाक्रम का तात्कालिक असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ा है और यह 1 अक्टूबर को करीब 5 फीसदी बढ़कर 74 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गईं। पिछले कुछ हफ्तों में हालांकि कच्चे तेल की कीमतें 75 डॉलर से घटकर 68 डॉलर प्रति बैरल पर आ गई थीं।
विश्लेषकों के मुताबिक इसका मुख्य कारण चीन के अनुमान से कमजोर आंकड़ों से जुड़ी खबरें है, जिनसे पुष्टि होती है कि दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक अभी भी आर्थिक कमजोरी में फंसा हुआ है, जिसका असर निर्माण, शिपिंग और ऊर्जा बाजारों पर पड़ा है।
राबोबैंक इंटरनैशनल के विश्लेषकों ने हालिया नोट में कहा है कि अगर ओपेक और अन्य देश अपनी सहायक उत्पादन योजना पर अमल करते हैं तो तेल बाजार में आपूर्ति की भरमार का जोखिम हो सकता है। उन्हें लगता है कि ब्रेंट क्रूड तेल की कीमतें अक्टूबर-दिसंबर 2024 की तिमाही में औसतन 71 डॉलर रहेंगी जबकि 2025 में इनके औसतन 70 डॉलर, 2026 में 72 डॉलर और 2027 में करीब 75 डॉलर रहने का अनुमान लगाया गया है।