बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) वित्त मंत्रालय और म्युचुअल फंड द्वारा उठाई गई चिंता को दूर करने के लिए पर्पेचुअल बॉन्डों के मूल्यांकन पर बीच का रास्ता निकालने के उपाय पर काम कर रहा है। मामले के जानकार शख्स ने इसकी जानकारी दी। नियामक इस संबंध में प्रस्तावित नियमों को वापस लेने के पक्ष में नहीं है क्योंकि उसका मानना है कि इन बॉन्डों के मूल्यांकन के सख्त नियम म्युचुअल फंड निवेशकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए जरूरी हैं। हालांकि सेबी 1 अप्रैल, 2021 से इसे लागू करने से पहले अपने परिपत्र के कई प्रावधानों को संशोधित कर सकता है।
जिन विकल्पों पर चर्चा की जा रही है उनमें 100 साल की परिपक्वता अवधि को कम करना, चुनिंदा म्युचुअल फंड योजनाओं में निवेश की सीमा को और कम करना, 100 साल का नियम केवल ए-रेटिंग से नीचे वाली प्रतिभूतियों पर लागू करने और मूल्यांकन नियमों के लिए पुराने प्रावधानों का विस्तार करना शामिल हैं। घटनाक्रम के जानकार शख्स ने कहा कि मूल्यांकन के नए नियम को 1 अक्टूबर तक या अप्रैल 2022 तक टाले जाने पर भी चर्चा की जा रही है। उन्होंने कहा कि सेबी क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों, फंडों और वित्त मंत्रालय के अधिकारियों के साथ विभिन्न विकल्पों पर चर्चा कर रहा है। 10 मार्च को सेबी ने परिपत्र जारी कर अतिरिक्त टियर-1 (एटी 1) और टियर 2 जैसे बॉन्डों में म्युचुअल फंड के निवेश की सीमा लगा दी थी। इस तरह के बॉन्ड आम तौर पर बैंकों द्वारा जारी किए जाते हैं। इसके साथ ही सेबी ने कहा था कि मूल्यांकन के मकसद से सभी पर्पेचुअल बॉन्डों की परिपक्वता अवधि उसके जारी होने की तारीख से 100 साल करनी चाहिए।
सेबी के कदम से येस बैंक द्वारा जारी एटी1 बॉन्ड का मूल्यांकन कम हो गया जिसका असर कई म्युचुअल फंड निवेशकों पर पड़ा।
सेबी के परिपत्र के बाद वित्त मंत्रालय ने पत्र लिखकर नियामक को कहा कि मूल्यांकन नियम प्रतिकूल हैं और इससे उधारी लागत बढ़ सकती है। प्रस्तावित 100 साल के मूल्यांकन नियम से इन बॉन्डों को जारी करने वालों के लिए उधारी लागत बढ़ जाएगी। आम तौर पर परिपक्वता अवधि लंबी होने से डेट प्रतिभूतियों पर प्रतिफल ज्यादा होता है। वर्तमान में म्युुचुअल फंड पर्पेचुअल बॉन्ड का मूल्यांकन जारीकर्ता द्वारा बॉन्ड को वापस खरीदने की तिथि के आधार पर करते हैं। नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर नियामक से जुड़े एक अधिकारी ने कहा, ‘मंत्रालय का अनुरोध स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि नियमों को वापस लेने से इसे निवेशकों के विरुद्घ माना जाएगा। हालांकि हम परिपत्र के कुछ विशिष्ट प्रावधानों का मूल्यांकन कर रहे हैं और देखेंगे कि इसमें कुछ बदलाव की गुंजाइश बनती है या नहीं।’
उद्योग जगत के सूत्रों ने कहा कि सेबी ने जिस तरह निवेश सीमित करने पर कुछ ढील दी है उसी तरह यही बात मूल्यांकन नियमों के साथ भी लागू की जा सकती है।
इस तरह, 100 वर्ष पुराना नियम केवल अभिवृद्धि निवेश पर ही लागू होगा जबकि मौजूदा निवेश मूल्यांकन वर्तमान नियमों के अनुरूप जारी रह सकते हैं।एक सूत्र ने कहा कि सेबी ने अल्पावधि, लघु अवधि और बैंकिंग एवं पीएसयू डेट फंडों में डेट म्युचुअल फंड योजनाओं के अधिक निवेश पर आपत्ति जताई है। एक फंड कंपनी के सीईओ ने कहा, ‘बेमियादी बॉन्ड में इन योजनाओं का निवेश अल्प अवधि के बॉन्ड में निवेश करने के उनके वादे के खिलाफ जाता है।’ एक दूसरे अधिकारी ने कहा कि ‘ए’ रेटिंग से ऊपर बॉन्ड के लिए मौजूदा मूल्यांकन विधि बरकरार रखने और ‘ए’ रेटिंग से कम बॉन्ड के लिए कड़ी व्यवस्था लागू करने के लिए एक प्रस्ताव पर विचार चल रहा है। एक अन्य अधिकारी ने कहा, ‘इस घोषणा से हैरानी हुई है क्योंकि यह विषय पर नियामक ने किसी भी मंच पर चर्चा नहीं की थी। ‘ए’ रेटिंग से नीचे के बॉन्ड के लिए नए मूल्यांकन नियम आने से एमएफ निवेशक केवल ऊंची रेटिंग प्राप्त बॉन्ड में ही निवेश करेंगे और अगर कोई जोखिम लेना चाहता है तो वे नई विधि का सहारा ले सकते हैं।’फंड उद्योग के लोगों का कहना है कि सेबी का दिशानिर्देश एक बार प्रभाव में आने के बाद एटी1 और टियर-2 बॉन्ड में म्युचुअल फंडों का निवेश सीमित हो जाएगा। वित्त मंत्रालय को इस बात की आशंका है कि सेबी की इस पहल से सरकार पर असर होगा क्योंकि उसे सरकार नियंत्रित बैंकों में अतिरिक्त पूंजी देनी होगी। नोमुरा के एक अनुमान के अनुसार बैंकों के एटी-1 और टियर-2 बॉन्ड 3.5 लाख करोड़ रुपये के हैं। इनमें ज्यादातर सरकार नियंत्रित बैंकों के हैं।
