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जोखिम बढ़ा, उतारचढ़ाव के लिए रहें तैयार

Last Updated- December 12, 2022 | 6:52 AM IST

उच्चस्तर पर बाजार टिकने में अक्षम रहा है क्योंंकि वैश्विक स्तर पर बॉन्ड प्रतिफल में बढ़ोतरी (खास तौर से अमेरिका) से माहौल बिगड़ गया है। जिंस की कीमतों में इजाफा (खास तौर से कच्चा तेल, जो 70 डॉलर प्रति बैरल के पार निकल गया है) और महंगाई की चिंता, कोविड की वापसी के कारण अहम अर्थव्यवस्थाओं में लॉकडाउन के डर ने तेजडिय़ों को दूर कर दिया है।
विश्लेषकों का मानना है कि अल्पावधि में बाजार में उतारचढ़ाव बना रहेगा क्योंकि वह देश-विदेश के घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया जता रहा है। उनका कहना है कि निवेशकों को इस पर नजर रखने की दरकार है कि अमेरिकी ट्रेजरी प्रतिफल कैसे आगे बढ़ता है, जिसका असर यह होगा कि किस तरह से मुद्राएं विकसित व भारत समेत उभरते बाजारों की ओर बढ़ती है।
डाल्टन कैपिटल के प्रबंध निदेशक यू आर भट्ट ने कहा, अमेरिकी फेडरल रिजर्व की हालिया टिप्पणी बताती है कि निकट भविष्य के लिए वह शांतिवादी रुख बनाए रखेगा। हालांकि बाजार इसे मानने को तैयार नहीं है, जिसकी वजह से गुरुवार को बिकवाली हुई। अमेरिकी ट्रेजरी पर प्रतिफल मध्यम अवधि में 1.6 से 1.65 फीसदी के बीच रहने की संभावना है और यह इस अवधि में बाजार को अस्थिर रखेगा। बहुत ही खराब स्थिति में निफ्टी 14,000 तक फिसल सकता है, जो इंडेक्स का अहम समर्थन स्तर है।
अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने नीतिगत दरों को 0-0.25 फीसदी पर बनाए रखा है, लेकिन वित्त वर्ष 2021 के लिए आर्थिक बढ़त के अनुमान को 4.2 फीसदी से 6.5 फीसदी पर पहुंचा दिया है। अपने नीतिगत बयान में अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने कहा कि उसे आगामी महीनों में महंगाई बढऩे का अंदेशा है, जिसकी वजह आधार प्रभाव, मुद्रा की आपूर्ति में इजाफा, कच्चे तेल की ऊंची कीमतें और राहत पैकेज है।
राबौबैंक इंटरनैशनल के वरिष्ठ अमेरिकी रणनीतिकार फिलिप मैरे ने कहा, इस पर नजर डालने से पता चलता है कि समिति 2023 में उड़ान भरने के बारे में सोच रही है। इसके अलावा आधार प्रभाव के कारण आगामी महीनों में महंगाई के आंकड़े बढ़ेंगे। ऐसे में हमारा अनुमान है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व व बाजारों के बीच रस्साकशी जारी रहेगी।
वैश्विक संकेतों के अलावा कोविड के बढ़ते मामलों के बीच शहरों मेंं छिटपुट लॉकडाउन बाजारों के लिए एक अन्य चिंता का विषय है, जिसके बारे में विश्लेषकों ने कहा कि इसमें आर्थिक रिकवरी पर प्रभाव डालने की क्षमता है। हालांकि उनका मानना है कि ऐसे लॉकडाउन का असर साल 2020 के मुकाबले कम होगा। साल 2020 में लॉकडाउन के कारण आर्थिक गतिविधियां थम गई थीं। मध्यम अवधि में टीके पर प्रगति, वैश्विक बढ़त की रफ्तार और आसान वित्तीय स्थिति आदि बढ़त पर असर डाल सकते हैं।
नोमूरा की प्रबंध निदेशक व मुख्य अर्थशास्त्री (भारत) सोनल वर्मा ने ए नंदी के साथ लिखे एक नोट में कहा है, भारत मेंं कोरोना की दूसरी लहर का जोखिम काफी बढ़ा है। इससे अल्पावधि में बढ़त की चिंता पैदा हो सकती है और नीति के लिहाज से सामान्य स्थिति बहाल होने का समय बाजार के अनुमान के मुताबिक नहीं रह सकता है।
24 मार्च 2020 के निचले स्तर से एसऐंड़पी बीएसई सेंसेक्स व निफ्टी-50 में क्रमश: 92 व 94 फीसदी की तेजी आई है। स्मॉलकैप व मिडकैप की रफ्तार और तेज रही है और इस अवधि में उनमें क्रमश: 107 व 136 फीसदी की उछाल दर्ज हुई है। इसमें ज्यादातर योगदान वैश्विक केंद्रीय बैंकों की आसान मुद्रा की नीतियों का रहा है, जिसने ज्यादातर परिसंपत्ति वर्गों खास तौर से शेयरों में तरलता बढ़ी।

First Published - March 19, 2021 | 12:23 AM IST

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