जीएसटी को तर्कसंगत बनाने से रोजमर्रा की चिकित्सा सामग्रियों की लागत में सीधे तौर पर कमी आएगी, साथ ही कैंसर और गंभीर बीमारियों के इलाज का खर्च घटेगा। हालांकि, इस कदम से घरेलू फॉर्मूलेशन निर्माता (विशेष रूप से बायोलॉजिक्स क्षेत्र में) ऊंचे कर इनपुट पर इनपुट-टैक्स-क्रेडिट (आईटीसी) का लाभ खत्म हो जाएगा, जिससे मार्जिन पर दबाव बढ़ेगा।
ज्यादातर दवाइयां, चिकित्सा उपकरण, उपभोग्य वस्तुएं और डायग्नोस्टिक्स अब 5 फीसदी के स्लैब में आ गए हैं। इन पर पहले 12 प्रतिशत जीएसटी लगता था। महंगी और दुर्लभ बीमारियों के उपचार से जुड़ी दवाओं से जीएसटी पूरी तरह हटा लिया गया है। इनमें ऑन्कोलॉजी, आनुवंशिक विकार और गंभीर मेटाबोलिक स्थितियों से जुड़े प्रमुख उपचार शामिल हैं। थर्मामीटर और भौतिक या रासायनिक विश्लेषण के उपकरण जैसी श्रेणियों पर पहले 18 फीसदी जीएसटी लगता था जो अब केवल 5 प्रतिशत लगेगा।
मैनकाइंड फार्मा में प्रवर्तक और सीईओ शीतल अरोड़ा ने कहा कि उन्हें मांग में स्पष्ट वृद्धि दिख रही है क्योंकि 33 जीवन रक्षक दवाओं और आवश्यक औषधियों पर जीएसटी घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे मरीजों का वित्तीय बोझ सीधे तौर पर कम होगा। उन्होंने कहा, ‘जब दवाएं सस्ती हो जाएंगी तो मरीज उन नई चिकित्सा प्रणालियों को अपनाने के लिए ज्यादा उत्सुक होंगे जो पहले उनकी पहुंच से बाहर थीं।’
अपोलो हेल्थको की कार्यकारी अध्यक्ष शोभना कामिनेनी का मानना है कि स्वास्थ्य और जीवन बीमा पर जीएसटी शून्य करना एक ‘मास्टरस्ट्रोक’ है। दवाओं और अन्य जरूरी सामान पर छूट से हर घर तक किफायती स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचती हैं।
इक्रा के वरिष्ठ उपाध्यक्ष और कॉरपोरेट सेक्टर रेटिंग्स के ग्रुप हेड जितिन मक्कड़ ने इस बात पर जोर दिया कि जैसे-जैसे स्वास्थ्य बीमा की पहुंच बढ़ेगी, अस्पताल क्षेत्र को भी फायदा होगा, जिसमें पिछले कुछ वर्षों में बीमा की बढ़ती पहुंच के कारण मांग में पहले से ही वृद्धि देखी जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि एक तरफ जहां मरीज को फायदा होगा, वहीं क्या फार्मा कंपनियों को भी लाभ होगा?
फॉर्मूलेशन क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के लिए एक समान 5 प्रतिशत जीएसटी स्लैब में जाने से प्राप्तियों में कोई खास बदलाव नहीं आएगा, लेकिन बड़ा फायदा यह होगा कि स्थिति स्पष्ट हो जाने से दरों के विवाद पर आशंका समाप्त हो जाएगी।