देश में संपत्ति से जुड़े लेनदेन को ‘कष्टप्रद’ बताते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से कहा कि वह ब्लॉकचेन तकनीक अपनाकर देश भर में संपत्ति पंजीयन को सरल-सहज बनाने की दिशा में पहल करे। न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति जयमाल्य बागची ने देश में भू पंजीयन और स्वामित्व व्यवस्था में आमूलचूल सुधार का आह्वान करते हुए कहा कि मौजूदा कानूनी व्यवस्था की जड़ें औपनिवेशिक दौर में निहित हैं जिसके चलते भ्रम, अक्षमता और ढेर सारे विवाद पैदा हो रहे हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने पंजीयन और स्वामित्व के बीच विरोधाभास का परीक्षण करते हुए केंद्र सरकार से आग्रह किया कि वह सुधारों का नेतृत्व करे ताकि अचल संपत्ति लेनदेन के ढांचे का आधुनिकीकरण किया जा सके। उसने इस काम में ब्लॉकचेन जैसी तकनीक इस्तेमाल करने की बात कही। उसने भारतीय विधि आयोग से कहा कि वह इस मुद्दे का व्यापक अध्ययन करे और संपत्तियों के स्वामित्व के लिए तकनीक आधारित समावेशी और उपयुक्त उपायों की सिफारिश करे।
पीठ ने कहा, ‘रजिस्ट्रेशन एक्ट दस्तावेजों के पंजीकरण को अनिवार्य करता है, न कि स्वामित्व के। किसी बिक्री विलेख का पंजीकरण स्वामित्व की गारंटी नहीं देता; यह केवल लेन-देन का एक सार्वजनिक रिकॉर्ड होता है, जिसका प्रारंभिक साक्ष्यात्मक मूल्य होता है।‘
न्यायाधीशों ने कहा कि एक पंजीकृत सेल डीड भी स्वामित्व का पूर्ण प्रमाण नहीं होती और खरीदारों को दशकों पुराने लेनदेन का खाता निकालना होता है। न्यायालय के मुताबिक देश के कुल दीवानी मामलों में 66 फीसदी संपत्ति से संबंधित हैं। इसने प्रणालीगत खामियों, फर्जी और धोखाधड़ी वाले दस्तावेजों, भूमि पर अतिक्रमण, सत्यापन में देरी, और राज्य स्तर पर बिखरी हुई प्रक्रियाओं की पहचान की जिन्होंने भूमि लेन-देन में विश्वास को कमजोर कर दिया है।
डिजिटल इंडिया भूमि अभिलेख आधुनिकीकरण कार्यक्रम और नेशनल जेनरिक डॉक्युमेंट रजिस्ट्रेशन सिस्टम जैसी पहलों को स्वीकार करते हुए, पीठ ने चेतावनी दी कि ‘यदि मूल रिकॉर्ड गलत, अधूरा या विवादित है, तो उसका डिजिटल संस्करण केवल उसी त्रुटि को आगे बढ़ाएगा।‘
ब्लॉकचेन को एक संभावित समाधान के रूप में प्रस्तुत करते हुए, न्यायालय ने कहा कि यह तकनीक भूमि पंजीकरण प्रणाली को ‘सुरक्षित, पारदर्शी और छेड़छाड़-रहित’ बना सकती है। न्यायालय ने केंद्र से कहा वह राज्यों के साथ तालमेल कायम करे और प्रमुख कानूनों मसलन ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी एक्ट, 1882, रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908, भारतीय स्टांप एक्ट, 1899, एविडेंस एक्ट, 1872, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000, और डेटा संरक्षण अधिनियम, 2023, इन सभी कानूनों को मिलाकर एक आधुनिक नियामक ढांचा तैयार किया जा सकता है।