प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
हेल्थ इंश्योरेंस बदलना एक सही फैसला हो सकता है, लेकिन अगर सही तरीके से किया जाए तभी। पोर्टेबिलिटी की सुविधा से आप एक कंपनी से दूसरी में जा सकते हैं, बिना वेटिंग पीरियड का फायदा खोए। लेकिन एक्सपर्ट्स कहते हैं कि गलत टाइमिंग, अधूरे डॉक्यूमेंट्स या हेल्थ डिटेल्स छुपाने से प्रोसेस बिगड़ सकता है, जिससे नई वेटिंग पीरियड लगे या पॉलिसी लैप्स हो जाए।
पॉलिसीबाजार के हेल्थ इंश्योरेंस हेड सिद्धार्थ सिंघल कहते हैं, “पोर्टिंग में सबसे बड़ी गलती लोग तब करते हैं जब पॉलिसी खत्म होने के करीब पहुंच जाते हैं। अगर पॉलिसी पीरियड में कोई गैप आ जाए, जैसे ग्रेस पीरियड खत्म होने से पहले नई कंपनी पॉलिसी जारी न करे, तो कंटिन्यूटी बेनिफिट्स चले जाते हैं।”
एलायंस इंश्योरेंस ब्रोकर्स के एलिफेंट.इन के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (बिजनेस डेवलपमेंट) चेतन वासुदेवा सलाह देते हैं कि रिन्यूअल से ‘कम से कम 45 से 60 दिन पहले’ प्रोसेस शुरू करें। देर से सबमिट करने पर पोर्टिंग रिक्वेस्ट अपने आप रिजेक्ट हो जाती है।
द हेल्दी इंडियन प्रोजेक्ट की मैनेजर (ग्रोथ एंड स्ट्रैटेजी) अंकिता श्रीवास्तव भी मानती हैं, “देर से देने पर अप्रूवल में देरी हो सकती है या पॉलिसी लैप्स हो जाए, जिससे व्यक्ति कुछ समय के लिए बिना इंश्योरेंस रह जाए।”
पोर्टिंग तब सही रहता है जब मौजूदा पॉलिसी जरूरत पूरी न कर रही हो, लेकिन वेटिंग पीरियड का फायदा रखना हो।
सिंघल कहते हैं, “ये तब अच्छा है जब ज्यादा सम इंश्योर्ड, बड़ा हॉस्पिटल नेटवर्क या एक्स्ट्रा फीचर्स जैसे OPD या मैटरनिटी कवर चाहिए।”
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श्रीवास्तव कहती हैं कि 5 लाख से 10 लाख कवरेज में अपग्रेड करने या बेहतर हॉस्पिटल टाई-अप वाली कंपनी में जाने के लिए खासतौर पर काम की है।
वासुदेवा जोड़ते हैं कि अगर मौजूदा कंपनी ने प्रीमियम बहुत बढ़ा दिया ‘बिना फायदे बढ़ाए’ या नई कंपनी का क्लेम सेटलमेंट रेशियो और कस्टमर सर्विस बेहतर हो, तो भी फायदा है।
रिजेक्शन ज्यादातर अधूरी जानकारी या ज्यादा हेल्थ रिस्क की वजह से होते हैं। वासुदेवा के मुताबिक, “बढ़ती उम्र, हाल में कई बार हॉस्पिटलाइजेशन या छुपाई गई पुरानी बीमारियां” रेड फ्लैग हैं।
श्रीवास्तव कहती हैं, “कवरेज लगातार रखें, सारी मेडिकल डिटेल्स बताएं और कागजात दुरुस्त रखें। पारदर्शिता और समय पर रिन्यूअल ही रिजेक्शन बचाते हैं।”
सिंघल ने एक कहानी बताई, “एक 61 साल के कस्टमर ने लाइफटाइम रिन्यूएबिलिटी और बड़ा हॉस्पिटल नेटवर्क वाली पॉलिसी में पोर्ट किया, पुरानी बीमारियों के बावजूद ज्यादा कवरेज कम प्रीमियम में मिली ।”
वहीं वासुदेवा दो अलग नतीजे बताते हैं। उन्होंने कहा कि एक 45 साल के सॉफ्टवेयर प्रोफेशनल ने जल्दी शुरू किया और सारी डिटेल्स खोलकर बताईं, ज्यादा कवरेज मिला और वेटिंग पीरियड माफ हो गया। वहीं 50 साल के बिजनेसमैन ने पोर्टिंग लेट की और मेडिकल डिटेल्स छुपाईं, एप्लीकेशन रिजेक्ट हो गई, दो हफ्ते बिना इंश्योरेंस रहे और बाद में वेटिंग पीरियड फिर शुरू करना पड़ा।