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ढाका से कोलंबो तक: GenZ ने भ्रष्ट शासन पर गुस्सा दिखाना शुरू कर दिया है

हमारे पड़ोसी देशों में हाल के दौर में जो भी विद्रोह हुए हैं उनकी जड़ें भ्रष्टाचार के विरोध में निहित रही हैं। इसमें भारत के लिए भी सबक छिपे हुए है

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अजय छिब्बर   
Last Updated- November 07, 2025 | 11:00 PM IST

हाल ही में आयोजित सरदार पटेल स्मृति व्याख्यान में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने उचित ही यह बात रेखांकित की है कि बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका में सरकारों के गिरने में शासन व्यवस्था एक प्रमुख कारण रही। जेन जी (सन 1997 से 2012 के बीच पैदा हुई पीढ़ी) के विद्रोहों ने भारत के पास-पड़ोस में मौजूद भ्रष्ट और गूंगी-बहरी सरकारों को गिरा दिया और यह सिलसिला आगे बढ़ता नजर आ रहा है।

ताजा नाम है हिंद महासागर में मौजूद मेडागास्कर का जहां प्रदर्शनकारियों का दावा है कि वे नेपाल और श्रीलंका से प्रेरित हुए। इसी प्रकार इंडोनेशिया, फिलिपींस, केन्या और मोरक्को में भी जेनजी प्रदर्शनों ने सरकारों को अपनी नीतियां बदलने के लिए विवश किया। एक सामान्य प्रतीक मसलन फूस से बनी टोपी पहने एक हंसती हुई खोपड़ी, इन प्रदर्शनों का मुख्य प्रतीक बनती जा रही है। यह जापानी मांगा और एनिमेशन सिरीज वन पीस से प्रेरित है जिसमें समुद्री डकैतों का एक गुट भ्रष्ट सरकारों से लोहा लेता है।

इनमें से प्रत्येक विद्रोह की तात्कालिक वजह थोड़ी अलग है। बांग्लादेश में इसकी वजह थी सरकारी नौकरी में कोटा सिस्टम वापस लाने का निर्णय, नेपाल में सोशल मीडिया पर प्रतिबंध, इंडोनेशिया में सांसदों के लिए ऊंचा वेतन और मैडागास्कर में बिजली और पानी की कमी। परंतु इन विद्रोहों की व्यापक वजह एक ही रही है, भले ही तात्कालिक प्रेरणा कुछ भी रही हो।

युवाओं के तेवर बगावती हैं क्योंकि अवसरों की कमी है और सेवाओं की गुणवत्ता खराब। परंतु इन तमाम विद्रोहों में एक साझा वजह भी है: भ्रष्टाचार का विरोध। सोशल मीडिया ने युवाओं को इस बात को लेकर जागरुक बना दिया है कि अभिजात सरकारें कितनी निष्प्रभावी और भ्रष्ट हैं और कैसे वे उनका जीवन और भविष्य बरबाद कर रही हैं।

ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल (टीआई) हर वर्ष भ्रष्टाचार धारणा सूचकांक प्रकाशित करता है। यह सूचकांक 180 देशों में भ्रष्टाचार को लेकर कारोबारियों की धारणा पर आधारित होता है। इन्हें 0 से 100 के पैमाने पर आंका जाता है जहां उच्च स्कोर का अर्थ होता है कम भ्रष्टाचार। टीआई के स्कोर के अनुसार देखा जाए तो बांग्लादेश में भ्रष्टाचार बहुत अधिक है और उसे 150वां स्थान दिया गया है। इसी प्रकार मेडागास्कर को 140वां स्थान और श्रीलंका को 121वां स्थान दिया गया है। इन सभी देशों में भ्रष्टाचार बहुत अधिक बढ़ा है। नेपाल भी बहुत भ्रष्ट देश माना गया है और उसे 107वां स्थान दिया गया है लेकिन टीआई के मुताबिक बीते एक दशक में उसके भ्रष्टाचार में अधिक इजाफा नहीं हुआ है। परंतु नेपाल में युवा बेरोजगारी की दर 20.8 फीसदी है जो बहुत अधिक है। यह श्रीलंका से थोड़ी ही कम है जहां इसका आंकड़ा 22.5 फीसदी है। वास्तविक बेरोजगारी काफी अधिक हो सकती है।

 अब विरोध प्रदर्शन लैटिन अमेरिका के पेरू तक फैल गया है जिसे सूचकांक में 127वां स्थान मिला है। हाल के वर्षों में वहां भ्रष्टाचार में भारी इजाफा हुआ है। वे देश जहां भ्रष्टाचार का स्तर बहुत अधिक है और जहां बहुत अधिक जोखिम है वे हैं मेक्सिको (140वां स्थान) और पाकिस्तान (135वां स्थान)। पूरे एशिया में हमें चीन, दक्षिण कोरिया, ताइवान और वियतनाम में भ्रष्टाचार विरोधी प्रयासों में काफी सुधार देखने को मिला है लेकिन इंडोनेशिया, फिलिपींस और थाईलैंड में यह नहीं नजर आया है। भ्रष्टाचार सूचकांक में सबसे अधिक सुधार दर्शाने वाले देश का नाम है वियतनाम (88वां स्थान),  और यही वजह है कि वह आर्थिक क्षेत्र में भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है। वियतनाम की सबसे अमीर महिला ट्रुऑन्ग माई लैन को वित्तीय धोखाधड़ी के मामले में सजा सुनाया जाना यह दिखाता है कि वियतनाम भ्रष्टाचार से निपटने को लेकर कितना गंभीर है।

यह अनुमान लगाना तो मुश्किल है कि अगला विद्रोह कहां होगा लेकिन उम्मीद की जा सकती है कि बढ़ती अनिश्चितता और भू-आर्थिक विभाजन के बीच ऐसी घटनाएं बढ़ेंगी। क्या भारत के लिए भी इसमें कुछ सबक हैं?

भारत इस सूची में 96वें स्थान पर है और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के पहले कार्यकाल में उसके टीआई भ्रष्टाचार स्कोर में कुछ सुधार नजर आया लेकिन बाद में वे तमाम फायदे नदारद हो गए और इस आंकड़े में हम दोबारा 2014 के स्तर पर फिसल गए।

ये स्कोर व्यवसायों की धारणा पर आधारित होते हैं। लेकिन नागरिकों का क्या? वे सरकारी एजेंसियों से काम कराने, बिल भरने, ड्राइविंग लाइसेंस प्राप्त करने, या कानूनी और संपत्ति से जुड़े लेन-देन में अपने दैनिक जीवन में किस स्तर का भ्रष्टाचार झेलते हैं? प्रमाण बताते हैं कि बिल भुगतान और टैक्स फाइलिंग के डिजिटलीकरण के बावजूद भारतीय नागरिकों को भारी मात्रा में भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है। आप जिससे भी मिलें, उसके पास घूसखोरी की कोई भयावह कहानी जरूर होगी। हमें केवल किस्से-कहानियों पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनैशनल के 2020 के ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर में सरकारी अधिकारियों के साथ लोगों के संपर्क को लेकर सर्वेक्षण किया गया और पूछा गया कि क्या उन्होंने कभी रिश्वत दी है।

सर्वेक्षण में पाया गया कि जिन नागरिकों का सरकारी अधिकारियों से कोई काम पड़ा, उनमें सबसे अधिक 39 फीसदी भारतीयों ने रिश्वतखोरी की बात कही। यह बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका सहित किसी भी देश से अधिक आंकड़ा है। भारत में घूस लेना और भ्रष्टाचार अब एक स्वीकार्य बात बन चुका है। डिजिटलीकरण के बावजूद अधिकारी किसी न किसी प्रकार रिश्वत लेने का तरीका तलाश कर ही लेते हैं। उच्च स्तर पर देखें तो इलेक्टोरल बॉन्ड की योजना बिना किसी पारदर्शिता के बड़े पैमाने पर राजनीतिक फंडिंग का मौका प्रदान करती है। परंतु भ्रष्टाचार लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है मसलन पुलिस से काम, न्यायिक प्रक्रिया, लाइसेंस हासिल करना या संपत्ति से संबद्ध लेनदेन आदि। इसे छोटे स्तर का भ्रष्टाचार कहा जाता है।

इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि पड़ोसी मुल्कों की तरह भारत में जेनजी जैसा विद्रोह होगा ही। भारत का विशाल आकार और मजबूत संस्थागत ढांचा इसे एक अलग परिदृश्य में रखता है लेकिन इसके बावजूद कुछ हिस्सों में आशंकाएं बरकरार हैं। प्रवासन ने एक सुरक्षा वॉल्व का काम किया है।

बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा से युवा बड़ी संख्या में देश के दूसरे हिस्सों में काम करने के लिए जा रहे हैं। परंतु इससे उन राज्यों में तनाव पैदा हो रहा है जिनमें से कुछ ने अब अपने नागरिकों के लिए कोटा प्रणाली लागू कर दी है। हालांकि प्रवासियों से उन्हें भी फायदा मिलता है। इसके बावजूद पड़ोसी देशों में हुए विद्रोह में भारत के लिए चेतावनी छिपी हुई है। भारत को केवल युवा बेरोजगारी ही नहीं बल्कि उस गहरे और व्यापक भ्रष्टाचार पर भी निशाना साधना होगा जो पूरे तंत्र में फैला हुआ है और जो नागरिकों पर एक भारी कर की तरह प्रभाव डालता है।

(लेखक जॉर्ज वॉशिंगटन विश्वविद्यालय के इंस्टीट्यूट फॉर इंटरनेशनल इकनॉमिक पॉलिसी में विशिष्ट विजिटिंग स्कॉलर हैं) 

First Published : November 7, 2025 | 10:36 PM IST