प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर मरीजों की सोच तेजी से बदल रही है। एक नई रिपोर्ट के मुताबिक, करीब 83 फीसदी मरीज ऐसी जानकारी चाहते हैं जो साफ, भरोसेमंद और आसानी से उपलब्ध हो, ताकि वे सही अस्पताल और इलाज चुन सकें। फिक्की और ईवाई-पार्थेनन ने इस पर एक रिपोर्ट की है जिसका नाम है ‘ट्रू अकाउंटेबल केयर: मैक्सिमाइजिंग हेल्थकेयर डिलीवरी इम्पैक्ट, एफिशिएंटली’। इसने देश के 40 शहरों में 250 अस्पतालों, 75,000 बेड्स, 1,000 से ज्यादा मरीजों और 100 से अधिक डॉक्टरों के सर्वे के आधार पर कई अहम बातें सामने रखी हैं।
रिपोर्ट बताती है कि भारत में पिछले दो दशकों में प्रति व्यक्ति अस्पताल बेड की संख्या दोगुनी हो गई है, लेकिन फिर भी वैश्विक स्तर पर हमारा बेड डेनसिटी सबसे कम है। जहां दुनिया में औसतन एक अस्पताल में 100 से ज्यादा बेड होते हैं, वहीं भारत में यह संख्या 25-30 ही है। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं में पेमेंट और प्रोवाइडर सिस्टम की जटिलता भी एक बड़ी चुनौती है। देश में टॉप पांच पेयर सिर्फ 40 फीसदी भुगतान करते हैं, जबकि विकसित देशों में यह आंकड़ा 80 फीसदी तक है।
Also Read: जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर GST घटने से बिक्री बढ़ने की उम्मीद, ग्राहकों को मिलेगी राहत
सर्वे में शामिल 90 फीसदी मरीजों ने कहा कि अगर उन्हें प्रमाणित गुणवत्ता वाली सेवाएं मिलें, तो वे इसके लिए ज्यादा पैसे देने को तैयार हैं। मरीजों का कहना है कि एक ऐसा भरोसेमंद सिस्टम होना चाहिए, जो अस्पतालों की रेटिंग और इलाज के नतीजों की सटीक जानकारी दे। इससे उन्हें यह तय करने में आसानी होगी कि कहां इलाज करवाना बेहतर है।
रिपोर्ट में एक ‘वैल्यू डिजिटल फ्रेमवर्क’ का सुझाव दिया गया है, जिसमें पांच अहम बिंदु हैं: मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा का बेहतर आदान-प्रदान, स्मार्ट सिस्टम का इस्तेमाल, बेहतर देखभाल और डेटा आधारित गवर्नेंस। ये कदम मरीजों को बेहतर सेवाएं देने और स्वास्थ्य प्रणाली को और जवाबदेह बनाने में मदद कर सकते हैं।
ईवाई-पार्थेनन इंडिया के पार्टनर कौवान मूवदावाला का कहना है कि मरीज और डॉक्टर दोनों ही पारदर्शी जानकारी और सही रिजल्ट की जरूरत को समझते हैं। वहीं, फिक्की हेल्थ सर्विसेज कमेटी के को-चेयर वरुण खन्ना ने इसे एक दर्पण और नक्शा बताया, जो बताता है कि भारत का स्वास्थ्य सिस्टम कितना आगे बढ़ा है और इसे अभी किन दिशाओं में काम करना है। उनका कहना है कि अब फोकस मात्रा से हटकर गुणवत्ता, मरीजों के अनुभव और लंबे समय तक बेहतर स्वास्थ्य पर होना चाहिए।
(PTI के इनपुट के साथ)