हाल ही में शुरू नैशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) में प्रायोगिक परियोजना के लिए 3 प्रमुख क्षेत्रों को चुना गया है, जिसमें जीवाश्म ईंधन की जगह ग्रीन हाइड्रोजन का इस्तेमाल होगा। स्टील, लंबी दूरी के भारी वाहनों की आवाजाही, ऊर्जा भंडारण और शिपिंग उन क्षेत्रों में शामिल हैं, जिन्हें ग्रीन हाइड्रोजन की प्रायोगिक परियोजना के लिए चुना गया है।
मिशन की योजना नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने आज जारी की है। इसमें कहा गया है कि इन कठिन क्षेत्रों के लिए मिशन ने जीवाश्म ईंधन और जीवाश्म ईंधन पर आधारित फीडस्टॉक्स की जगह ग्रीन हाइड्रोजन और इसके डेरिवेटिव्स के इस्तेमाल की प्रायोगिक परियोजना का प्रस्ताव दिया है।
इसमें कहा गया है, ‘प्रायोगिक परियोजनाओं से परिचालन संबंधी दिक्कतों को जानने में मदद मिलेगी और मौजूदा तकनीकी तैयारियों, नियमन और तरीकों को लागू करने, बुनियादी ढांचे और आपूर्ति श्रृंखला की खामियों के बारे में जानकारी मिल पाएगी। यह भविष्य में इसके वाणिज्यिक रूप से विस्तार देने में मूल्यवान इनपुट के रूप में काम आएगा।’
स्टील सेक्टर के लिए मिशन ने उन कवायदों को समर्थन देने का प्रस्ताव किया है, जिससे कम कार्बन वाले स्टील उत्पादन की क्षमता बढ़ेगी। इसमें कहा गया है कि ग्रीन हाइड्रोजन की लागत ज्यादा है, ऐसे में स्टील संयंत्र अपनी प्रक्रिया में ग्रीन हाइड्रोजन का एक छोटा हिस्सा मिलाने से शुरुआत कर सकते हैं और धीरे धीरे मिश्रण की मात्रा बढ़ाई जा सकती है। योजना में कहा गया है कि नई परियोजनाओं में 100 प्रतिशत ग्रीन स्टील के लक्ष्य पर भी विचार किया जा सकता है।
परिवहन क्षेत्र के बारे में मिशन वाणिज्यिक वाहनों में ग्रीन हाइड्रोजन की मांग बढ़ाने का पक्षधर है। योजना में कहा गया है, ‘मिशन में पूरी तरह से सेल पर आधारित इलेक्ट्रिक वाहनों के आवंटन को समर्थन दिया जाएगा, जिसमें बसें व ट्रकें शामिल हैं। इसे चरणबद्ध तरीके से प्रायोगिक आधार पर किया जाएगा। मिशन में ग्रीन हाइड्रोजन पर आधारित मेथनॉल, एथनॉल व अन्य सिंथेटिक ईंधन को ऑटोमोबाइल ईंधन में मिलाने की संभावना तलाशी जाएगी।’
सबसे महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य शिपिंग सेक्टर के लिए है। बंदरगाहों से लेकर शिपिंग कंपनियों से उम्मीद की गई है कि वे ग्रीन हाइड्रोजन अपनाएं। शिपिंग कॉर्पोरेशन आफ इंडिया या उसके विनिवेश की स्थिति में उसके निजी क्षेत्र के उत्तराधिकारी से 2027 तक कम से कम 2 शिप ग्रीन हाइड्रोजन या ग्रीन हाइड्रोजन आधारित अन्य ईंधन से चलाने की उम्मीद की गई है।
भारत के तेल और गैस पीएसयू को 2027 तक कम से कम एक शिप को ग्रीन हाइड्रोजन या इससे संबंधित ईंधन से चलाना होगा। उसके बाद कंपनियों को कम से कम एक शिप ग्रीन हाइड्रोजन या इसके डेरिवेटिव्स से हर साल मिशन के रूप में चलाना होगा। ग्रीन अमोनिया बंकरों और रिफ्यूलिंग सुविधाओं की स्थापना 2025 तक कम से कम एक बंदरगाह पर की जाएगी। इस तरह के केंद्र 2035 तक सभी प्रमुख बंदरगाहों पर बनाए जाएंगे।