बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पर कोविड महामारी का असर साफ दिखने लगा है। एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) यानी शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट 2022 से पता चलता है कि भारत में बच्चों की पढ़ने और गणना करने की बुनियादी क्षमता में भारी गिरावट आई है। यह रिपोर्ट पिछले वर्ष 616 जिलों के लगभग सात लाख बच्चों का सर्वेक्षण कर तैयार की गई थी।
2012 में आठवीं कक्षा के लगभग 76.5 फीसदी बच्चे दूसरी कक्षा की पुस्तकें अच्छी तरह पढ़ पाते थे मगर 2022 में आठवीं के ऐसे बच्चों की संख्या घटकर 69.6 फीसदी ही रह गई है। सरकारी स्कूलों में आठवीं के 73.4 फीसदी कक्षा 2 का पाठ पढ़ पाते थे मगर 2022 में उनकी संख्या घटकर 66.2 फीसदी ही रह गई।
सरकारी स्कूलों में सीखने का स्तर हमेशा की तरह कम
सरकारी स्कूलों में सीखने का स्तर हमेशा ही कम रहा है। इस अवधि के दौरान सरकारी स्कूलों में बच्चों की सीखने की क्षमता बहुत गिर गई। 2012 में सरकारी और निजी स्कूलों के आठवीं के 48.1 फीसदी छात्र भाग कर सकते थे मगर 2022 में उनकी संख्या घटकर 44.7 फीसदी ही रह गई।
ASER सर्वेक्षण कराने वाले गैर सरकारी संगठन प्रथम फाउंडेशन की मुख्य कार्याधिकारी रुक्मिणी बनर्जी ने कहा, ‘इसे सुधारने के लिए फौरन कदम उठाने चाहिए। स्कूल बंद रहने के दौरान बच्चों की सीखने की क्षमता जितनी कम हो गई है, उसे देखते हुए सुधार के कार्यक्रम चलाने की इतनी जरूरत पहले कभी महसूस नहीं हुई थी।’
मगर शिक्षा की गुणवत्ता खराब होने के बाद भी माता-पिता को अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलाने से पीछे नहीं हटे। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2018 में दाखिला लेने वाले कुल बच्चों में 65.6 फीसदी सरकारी स्कूलों में गए थे, जिनकी हिस्सेदारी 2022 में 72.9 फीसदी हो गई। साल 2014 में यह आंकड़ा 64.9 फीसदी ही था।
ASER सेंटर में निदेशक विलिमा वाधवा ने कहा, ‘ASER 2022 के आंकड़ों से पता चलता है कि 2020-21 के दौरान स्कूल में नहीं पढ़ने वाले बच्चों की संख्या बढ़ना अस्थायी घटना थी। इसकी वजह अनिश्चितता और शायद प्रवेश के आंकड़े दर्ज करने में हुई देर थी। इस समय 6 से 14 साल के केवल 1.6 फीसदी बच्चों का ही दाखिला स्कूल में नहीं हुआ है। शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद एक दशक में यह सबसे कम आंकड़ा है।’
सर्वेक्षण में 28 राज्यों को शामिल किया गया। इनमें से गुजरात के बच्चों में अंग्रेजी का साधारण वाक्य भी पढ़ने की क्षमता में सबसे ज्यादा गिरावट आई है। गुजरात में 2018 में 73.2 फीसदी बच्चे अंग्रेजी का सामान्य वाक्य पढ़ पाते थे मगर 2022 में ऐसे बच्चे केवल 52.4 फीसदी रह गए।
भले ही सरकारी स्कूलों में दाखिले बढ़ गए मगर शिक्षा पर खर्च में कमी नहीं आई होकी क्योंकि निजी ट्यूशन लेने का चलन बढ़ा है। पहली से आठवीं कक्षा में ट्यूशन पर खर्च करने वाले छात्रों का अनुपात 2022 में बढ़कर 30.5 फीसदी हो गया। साल 2018 में यह आंकड़ा 26.4 फीसदी था।
क्षमता घटी, सुविधाएं बढ़ीं
देश भर में स्कूलों में सुविधाएं बेहतर हुई हैं मगर कुछ राज्य अब भी पीछे हैं। ASER के सर्वेक्षण में शामिल 28 राज्यों में से 9 में 2010 के बाद स्कूलों में पेयजल की उपलब्धता घटी है। इनमें गुजरात, कर्नाटक, केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्य शामिल हैं। हरियाणा, केरल और महाराष्ट्र सहित बारह राज्यों के स्कूलों में लड़कियों के लिए शौचालयों की उपलब्धता घटी है।