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क्या बिक्री बाद दी जाने वाली सेवा पर लगेगा कर?

Last Updated- December 07, 2022 | 1:44 PM IST

ऐसे कई उत्पाद हैं जिनकी बिक्री के बाद डीलर या वितरक उत्पाद संबंधी सेवाएं उपभोक्ताओं को देते हैं। बिक्री के बाद होने वाली इन सेवाओं पर अप्रत्यक्ष कर लगाया जाए या नहीं, इसे लेकर लंबे समय तक विवाद चलता रहा है।


डीलरों को इन सेवाओं पर जो खर्च उठाना पड़ता है, उसे कर के निर्धारण में शामिल किया जाना चाहिए या नहीं, इस बारे में कई अदालतों में सुनवाई की जा चुकी है और फैसला भी सुनाया गया है। इन सुनवाइयों के दौरान पाया गया कि किसी उत्पाद की बिक्री के बाद डीलर मुफ्त में सेवाएं देते हैं तो इस पर उत्पाद शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए।

हालांकि इस मसले पर अब भी बहस जारी है कि क्या इन सेवाओं पर सेवा कर लगाया जाए या नहीं। इस विषय पर चर्चा करना काफी रोचक हो सकता है क्योंकि इसमें अप्रत्यक्ष कर से जुड़े कुछ सिद्धांत शामिल हैं। अधिकृत सर्विस स्टेशनों के डीलर किसी उत्पाद की बिक्री के बाद जो सेवाएं उपलब्ध कराते हैं उन्हें सर्विस कर के दायरे में रखा गया है और यह प्रावधान 16 मई 2005 से लागू किया गया है।

इसका मतलब है कि अगर किसी मोटर निर्माता कंपनी की ओर से अधिकृत किसी सर्विस स्टेशन या सेंटर में मोटर की बिक्री के बाद निशुल्क सर्विस सेवा उपलब्ध कराई जाती है तो उस पर कर लगेगा। इस परिभाषा से ही स्पष्ट होता है कि यह प्रावधान केवल ऑटोमोबाइल क्षेत्र के लिए ही है, पर दूसरे क्षेत्रों में भी ऐसी मिलती जुलती स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं।

सेवा कर कानून में कई ऐसी ही परिभाषाएं मौजूद हैं जिन पर अमल भी किया जा रहा है। यहां यह महत्त्वपूर्ण है कि सेवा कर का निर्धारण करते समय सेवा का लाभ उठाने वाले से सेवा प्रदाता जो शुल्क वसूलता है उसे ध्यान में रखना जरूरी है। साथ ही सेवा कर नियमों में इस बात का स्पष्ट उल्लेख है कि किसी भी दूसरे अप्रत्यक्ष कर की ही तरह यहां भी सेवा प्रदाता सेवा पाने वाले से जो रसीद प्राप्त करता है, उसी के आधार पर सेवा कर का निधार्रण किया जा सकता है।

अब अगर अधिकृत सेवा स्टेशनों की बात करें तो पता चलता है कि विभाग ने स्पष्ट किया है कि सेवा कर उन्हीं मौकों पर लगाया जा सकता जहां उपभोक्ताओं को सेवा प्रदान करने के लिए सर्विस स्टेशन वालों ने उत्पादकों से पहले ही इसके लिए शुल्क वसूल लिया हो। यह एक उचित स्थिति है क्योंकि भले ही दी जा रही सेवाओं का लाभ उपभोक्ता उठा रहे हों पर इसके लिए भुगतान तो उत्पादक कर रहे हैं। और साथ ही ऐसे मौके पर जो सेवा प्रदान की जा रही है वह किसी उत्पाद के रूप में नहीं है।

पर जिस मसले को लेकर बहस जारी है, वह कुछ ऐसी स्थिति को लेकर है जहां दी जा रही सेवा का भुगतान सर्विस सेंटरों को न तो उपभोक्ता (सेवा का लाभ उठाने वाले) कर रहे हैं और न ही उस उत्पाद के निर्माता इसका भुगतान कर रहे हैं। एएसएल मोटर्स प्राइवेट लि. बनाम कमीशनर ऑफ सेंट्रल एक्साइज (2008 टीआईओएल 114) के मामले में ट्रिब्यूनल ने हाल ही में एक फैसला सुनाया है। इस मामले में कर अदाकर्ता एक मोटर व्हीकल निर्माता की ओर से अधिकृत डीलर था और अपने उपभोक्ताओं को बिक्री के बाद सेवाएं उपलब्ध कराता था।

सेवाओं के बदले डीलर उपभोक्ताओं से केवल कल पुर्जों की कीमत वसूलता था और कोई लेबर चार्ज या सेवा कर नहीं वसूला जाता था। इन सेवाओं के एवज में मोटर व्हीकिल निर्माता की ओर से भी डीलर को कोई भुगतान नहीं किया जाता था। इसके बावजूद अधिकारियों ने इस बिना पर डीलर से सेवा कर वसूलने की तैयारी की कि गाड़ियों की मरम्मत में डीलर जिन कल पुर्जों का इस्तेमाल (एक तरह से बिक्री समझें) करता था उससे उसे कुछ मुनाफा होता था। इसे ध्यान में रखते हुए विभाग ने डीलर से कर वसूलने की तैयारी की।

दूसरे शब्दों में कहें तो कर विभाग का मानना था कि सर्विस के दौरान डीलर उपभोक्ताओं को जो कल पुर्जे बेचता है उसमें डीलर का मुनाफा भी जुड़ा होता है, इस वजह से कहना गलत नहीं होगा कि इसमें श्रमिकों की मेहनत को भी शामिल किया गया होगा। इस आधार पर डीलर से कर वसूला जाना चाहिए। इस मसले पर सुनवाई के दौरान ट्रिब्यूनल ने फैसला सुनाया कि डीलर से कर उसी स्थिति में वसूला जा सकता है कि अगर उत्पादक डीलर की ओर से दी जा रही सर्विस के बदले में उसे भुगतान करता हो।

अगर उत्पादक डीलर को भुगतान नहीं करता हो तो ऐसी स्थिति में उपभोक्ता को दी जा रही मुफ्त सेवा के बदले में डीलर से कर नहीं वसूला जा सकता है। यह कहना उचित नहीं होगा कि डीलर को कल पुर्जों की बिक्री के जरिए मुनाफा हो रहा है। यह भी कहा गया कि किसी उत्पाद की बिक्री पर लगने वाले कर जो राज्य बिक्री कर के जिम्मे है और उत्पादन पर लगने वाला उत्पाद शुल्क और सेवाओं पर लगने वाला कर जो केंद्र की ओर से लगाया जाता है, दोनों में कोई संबंध नहीं है। यहां यह भी स्पष्ट किया गया कि डीलर ने जो मुनाफा कमाया है वह गाड़ी की बिक्री के समय ही उपभोक्ता से वसूली गई थी।

First Published - July 28, 2008 | 12:22 AM IST

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