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ऑडिट कमेटी को सही दिशा दिखाए जाने की जरूरत है

Last Updated- December 10, 2022 | 10:01 PM IST

सत्यम प्रकरण के बाद कॉरपोरेट शासन व्यवस्था में निवेशकों का विश्वास कम हुआ है। निवेशकों द्वारा ऑडिट पर सवाल उठाए जा रहे हैं। सुभिक्षा इसका एक ताजा उदाहरण है।
सीमेंस इंडिया के मामले में संस्थागत निवेशकों ने सीमेंस इन्फॉर्मेशन सिस्टम्स (एसआईएसएल) की बिक्री से जुड़े सौदे में मूल्य निर्धारण पर सवाल खड़े कर दिए हैं। यह विवाद जर्मनी की इसकी प्रमुख कंपनी सीमेंस एजी को एसआईएसएल की बिक्री से जुड़ा है।
इस सबसे पता चलता है कि कॉरपोरेट शासन व्यवस्था में निवेशकों के विश्वास का स्तर काफी कम हुआ है। ऑडिट कमेटी तंत्र को मजबूत बनाए जाने की जरूरत है।
ऑडिट कमेटी
कंपनीज ऐक्ट के मुताबिक कम से कम 5 करोड़ रुपये की पूंजी वाली प्रत्येक सार्वजनिक कंपनी को अपने बोर्ड में ऑडिट कमेटी का गठन करना चाहिए। इसके लिए यह जरूरी नहीं है कि कंपनी सूचीबद्ध हो। लिस्टिंग एग्रीमेंट के क्लॉज 49 में भी यह अनिवार्य है कि एक सूचीबद्ध कंपनी को बोर्ड की ऑडिट कमेटी बनानी चाहिए।
क्लॉज 49 के तहत ऑडिट कमेटी में कम से कम 3 निदेशकों को शामिल किया जाना जरूरी है। इनमें से दो-तिहाई स्वतंत्र होने चाहिए। कम से कम एक सदस्य अकाउंटिंग या वित्तीय प्रबंधन दक्षता से संबद्ध होगा। कमेटी का अध्यक्ष एक स्वतंत्र निदेशक होगा।
भूमिका और अधिकार
ऑडिट कमेटी के कार्यों में शामिल हैं : कंपनी की वित्तीय प्रक्रिया पर नजर रखना और इसकी वित्तीय सूचना का खुलासा करना, यह सुनिश्चित करना कि वित्तीय स्टेटमेंट सही और विश्वसनीय है, बोर्ड को सलाह देना, नियुक्ति करना, पुन: नियुक्ति करना, जरूरत पड़ने पर सांविधिक ऑडिटर को हटाना ऑर इसके अलावा साथ ही ऑडिट शुल्क का निर्धारण करना, अंदरूनी ऑडिटरों के कार्य की समीक्षा करना आदि।
ऑडिट कमेटी के अधिकारों में शामिल हैं: अपने विचारार्थ विषय के तहत जांच गतिविधि चलाना, किसी भी कर्मचारी से सूचना जुटाना, बाहरी कानूनी या अन्य पेशेवर सलाह प्राप्त करना, जरूरत पड़ने पर विशेषज्ञता से लैस बाहरी लोगों की उपस्थिति को आसान बनाना।
ऑडिट कमेटी का मुख्य कार्य फाइनैंसिंग रिपोर्टिंग और अंदरूनी नियंत्रण व्यवस्था पर नजर रखना, आकलन करना एवं समीक्षा करना और वित्तीय सूचना की अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए ऑडिटर की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना है।
कमेटी से सीधे तौर पर प्रणाली पर नियंत्रण और ब्यौरों की पूरी जानकारी हासिल करने की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। कभी-कभी ऑडिट कमेटी को अपने काम को अंजाम देने में काफी समय लगता है।
ज्यादातर ऑडिट कमेटियों को कार्य निष्पादन के लिए सांविधिक ऑडिटर और आंतरिक ऑडिटर की जरूरत होती है। क्या हमें ऑडिट कमेटी के कार्य की सीमा को कम करना चाहिए? इसका चयन ठीक उसी प्रक्रिया के समान होना चाहिए जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल सीईओ की नियुक्ति में किया जाता है।
कंपनी को अपने चेयरमैन को पर्याप्त संसाधन मुहैया कराना चाहिए ताकि वह अपने कार्यों को पूरा करने में सक्षम हो सके। चेयरमैन की जवाबदेही को लागू करने के संबंध में क्लॉज 49 में यह जरूरी है कि वह अपने शेयरधारकों के सवालों का जवाब देने के लिए सालाना आम बैठक (एजीएम) में उपस्थित हो। जवाबदेही को लागू करने की पहल संस्थागत निवेशकों की ओर से की जानी चाहिए।
 
निष्कर्ष
हमने शेयरधारकों की सक्रियता में तेजी देखी है, लेकिन क्या यह कायम रहेगी? हां, अगर संस्थागत निवेशक और वित्तीय संस्थान शेयरधारक सक्रियता में अपनी जिम्मेदारी समझें। हमें सब कुछ नियामकों के भरोसे नहीं छोड़ देना चाहिए।

First Published - March 29, 2009 | 10:25 PM IST

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