अप्रत्यक्ष करों में एक सबसे बड़ी चुनौती एकल सौदे पर दोहरे कराधान की है। सरकारी बिक्री करमूल्यवर्धित कर यानी वैट की परिभाषाओं के संदर्भ में बात करें तो यह चुनौती इसलिए आती है क्योंकि सामान की आपूर्ति को दोनों करों से जुड़ा सौदा समझा जाता है।
भारत संचार निगम लिमिटेड वीएस यूओआई ((2006) 145 एसटीसी 91) में अपने फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहा था कि दोहरा कराधान अस्वीकार्य है और यह सौदा सिर्फ एक कर के दायरे में आता है न कि दोनों करों के।
लेकिन समान रूप से एक महत्त्वपूर्ण चुनौती दोहरे गैर-कराधान की संभावना को लेकर भी है जिसमें सौदे में न तो राज्यीय वैट वसूला जाता है और न ही केंद्रीय सेवा कर। शुद्ध सेवाओं, जो फिलहाल सेवा कर कानून के दायरे से बाहर हैं और सामान की आपूर्ति से भी संबद्ध नहीं हैं, पर मौजूदा समय में किसी भी तरह का अप्रत्यक्ष कर लागू नहीं है।
लेकिन उन सौदों के संबंध में चुनौती बनी हुई है जो कर के लिए नियत हैं, लेकिन इनके लिए वैट या सेवा कर नहीं चुकाया गया है जैसा कि अदालतों द्वारा की गई व्याख्या में शामिल अंतनिहत प्रावधानों में वर्णित है।
ऐसी एक चुनौती कराधान के हस्तांतरण के अधिकार को लेकर भी है। स्पष्ट बात यह है कि ऐसे सामान के सौदे में लगने वाला संगत कर बिक्री कर या वैट होगा। भारतीय संविधान में 1983 में हुए 46वें संशोधन से पहले सामान की एकमुश्त बिक्री करना बिक्री कर के दायरे में था।
यह इस ऐतिहासिक संशोधन के बाद ही संभव हुआ जिसमें ‘डीम्ड बिक्री’ की कई श्रेणियों में भी बिक्री कर कानून की बात कही गई थी। डीम्ड बिक्री की ऐसी एक श्रेणी सामान के हस्तांतरण के अधिकार के प्रयोग से जुड़ी है।
इसके फलस्वरूप सामान की बिक्री नहीं होने के मामले में संपत्ति और स्वामित्व का कभी भी हस्तांतरण नहीं किए जाने पर भी हस्तांतरण के अधिकार का इस्तेमाल बिक्री कर के दायरे में आएगा।
इससे बिक्री कर को लागू किए जाने के क्रम में हस्तांतरण के अधिकार का प्रयोग करने के लिए याचिकाओं की बाढ़ आ गई। राष्ट्रीय इस्पात निगम लिमिटेड वीएस सीटीओ (1990) 43 एसटीएल 67) के ऐतिहासिक मामले में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने फैसला दिया था कि विशेष अनुबंध समझौते के संदर्भ में मशीनरी, जिसका अनुबंध से जुड़े कार्यों को निपटाने के लिए इस्तेमाल किया गया था, पर प्रभावी नियंत्रण और कब्जा उसी व्यक्ति के साथ बना रहेगा जिसने इस उद्देश्य के लिए मशीनरी की आपूर्ति की थी।
इस ताजा मामले में कंपनी इस परियोजना की मालिक थी और उसने ठेकेदार के लिए मशीनरी की आपूर्ति की थी। न्यायालय ने फैसला सुनाया था कि यह मामला हस्तांतरण के अधिकार का प्रयोग के तहत नहीं आता है।
इस अदालती फैसले के बाद कई अन्य उच्च न्यायालयों ने भी इस पर अमल किया कि सामान पर प्रभावी नियंत्रण के हस्तांतरण पर बिक्री कर या वैट कानून लागू नहीं हो सकते। इस संबंध में दो ताजा फैसले सुनाए गए।
कमिश्नर ऑफ ट्रेड टैक्स वीएस यूपीएसआरटीसी (2008) 16 वीएसटी 226) और कमिश्नर ऑफ ट्रेड टैक्स वीएस नंद ट्रांसपोर्ट कंपनी (2008) 16 वीएसटी 381) में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा ऐसे ही फैसले सुनाए। इसलिए इस निपटारे में किसी हस्तांतरण के अधिकार के इस्तेमाल के अभाव में वैट कानून लागू नहीं होंगे।
ऐसे सौदे सामान पर लगने वाले कर के दायरे से बाहर हैं और इसी तरह ऐसे सौदे सेवा कर के दायरे में भी नहीं आते।हालांकि टैंजिबल गुड्स यानी भौतिक सामान की आपूर्ति सेवा की हाल ही में पेश की गई परिभाषा सौदे के दोहरे गैर-कराधान के इस विशेष मामले को संबोधित करते हुए नियत की गई है।
इस नई परिभाषा में कहा गया है कि टैंजिबल गुड्स, जिनमं् इस्तेमाल के लिए मशीनरी, उपकरण और सामान शामिल हैं, की आपूर्ति के संबंध में कोई भी सेवा कब्जा और प्रभावी नियंत्रण के अधिकार के हस्तांतरण के बिना सेवा कर के दायरे में होगी।
इस अभिव्यक्ति को बिक्री कर पर अदालतों के उपर्युक्त फैसलों के उदाहरण से पूरी तरह दूर किया जा चुका है और ऐसे लेन-देन पर सेवा कर को स्पष्ट किए जाने की कोशिश की जा रही है।
क्या सौदे के ऐसे मुद्दे जिसमें कब्जा और प्रभावी नियंत्रण हस्तांतरित नहीं किया गया है, सेवा कर कानून के तहत कर के दायरे में है। इन मुद्दों पर कर सेवाओं जैसे, ‘रेंट ए कैब’ ऑपरेटर सेवाएं जैसे ‘इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी सर्विसेज’ की अन्य विशेष परिभाषाओं में चर्चा की गई है।
रेंट ए कैब ऑपरेटर सेवा के संबंध में मुख्य शब्द ‘रेंटिंग ऑफ ए कैब’ के बारे में हैं। ऐसी स्थिति में जब कैब सेवाएं कैब पर बिना नियंत्रण और कब्जे के हासिल की जाती हैं, उपयोगकर्ता को हस्तांतरित की जाती हैं, तो क्या यह परिभाषा इन सब पर लागू होगी?
बौद्धिक संपदा सेवाओं के मामले में यह मुद्दा थोड़ा ज्यादा जटिल है क्योंकि इसमें न सिर्फ अस्थाई हस्तांतरण को बढ़ावा दिया गया है बल्कि बौद्धिक संपदा अधिकार के इस्तेमाल के लिए लेन-देन की अनुमति दी गई है।
ऐसे कई मामले सामने आए हैं जब सामानों के ट्रांसफर के अभाव में इन अन्य परिभाषाओं के प्रयोग गंभीर विवाद में फंस गए हैं। हालांकि टैंजिबल गुड्स सेवाओं की आपूर्ति की इस परिभाषा की शुरुआत के साथ स्थिति पूरी तरह स्पष्ट हो गई है कि ऐसे सभी उदाहरणों में अब सेवा कर लागू होगा। वैट लागू नहीं होगा और इस प्रकार केवल एक अप्रत्यक्ष कर ही वसूला जाएगा।
(लेखक प्राइसवाटरहाउस कूपर्स में ‘इंडायरेक्ट टैक्स प्रैक्टिस’ के विश्लेषक हैं। )