राजस्थान उच्च न्यायालय ने ड्रीम-11 पर रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। याचिका में कहा गया था कि ड्रीम-11 सट्टेबाजी या जुए के बराबर है इसलिए इस पर रोक लगाई जानी चाहिए।
याचिका में यह आरोप भी लगाया गया था कि यह आभासी खेल प्लेटफॉर्म वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) की चोरी कर रहा है क्योंकि कंपनी द्वारा रखी गई समूची रकम के बजाय केवल 20 फीसदी रकम पर जीएसटी चुकाया जा रहा है। अदालत ने कहा कि इस मसले पर जीएसटी अधिकारी ही फैसला लेंगे।
ड्रीम-11 भारतीय काल्पनिक खेल प्लेटफॉर्म है। इसे उपयोग करने वाले काल्पनिक क्रिकेट, फुटबॉल, हॉकी, कबड्डी और बास्केटबॉल
खेलते हैं।
ईवाई में पार्टनर अभिषेक जैन ने बताया कि याची का आरोप था कि आभासी या वर्चुअल खेल क्रिकेट टीम पर सट्टा लगाना ही है। उसने यह आरोप भी लगाया था कि ऑनलाइन काल्पनिक या फैंटसी खेल असल में तुक्के के खेल हैं। इसलिए ये जुए या सट्टेबाजी की तरह गैर-कानूनी है और राजस्व विभाग ऐसे गैर-कानूनी खेल पर रोक नहीं लगा रहा है।
याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा, ‘फैंटसी खेल का नतीजा केवल तुक्के या किस्मत पर नहीं बल्कि प्रतिभागी के कौशल पर भी निर्भर करता है। प्रतिभागी द्वारा तैयार की गई वर्चुअल टीम का जीतना या हारना वास्तविक खेल के नतीजे पर निर्भर नहीं करता। इसलिए हम मानते हैं कि ऑनलाइन फैंटसी खेल असल में कौशल का खेल है और इसे संविधान के अनुच्छेद 19(1)(जी) के तहत सुरक्षा प्राप्त है।’ इस अनुच्छेद में कोई भी पेशा अपनाने या किसी भी तरह का व्यवसाय, व्यापार अथवा कारोबार करने की स्वतंत्रता दी गई है।
ड्रीम 11 में प्रतिभागी अपनी टीम बनाते हैं। पंजीकरण के समय उन्हें 100 रुपये का भुगतान करना होता है जिसमें से 20 फीसदी ड्रीम 11 कंपनी अपने पास रख लेती है और बाकी 80 फीसदी का इस्तेमाल फैंटसी टूर्नामेंटों के विजेता को दी जाने वाली पुरस्कार की जाती है।
