उच्चतम न्यायालय ने पिछले हफ्ते चेन्नई की कंपनी स्पीच ऐंड सॉफ्टवेयर टेक्लॉजिस (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड और लंदन की नेओस इंटरएक्टिव लिमिटेड के बीच के विवाद को निपटाने के लिए केरल के पूर्व मुख्य न्यायाधीश अरविंद सावंत (सेवानिवृत्त) को मध्यस्थ नियुक्त किया।
दोनों कंपनियों के बीच 15 जुलाई, 2006 को सेवा समझौता किया गया था जिस पर ठीक तरीके से अमल नहीं किये जाने की वजह से विवाद खड़ा हुआ था। चेन्नई की कंपनी को सेवाओं के बदले में भुगतान किया जा रहा था।
विवाद तब शुरू हुआ जब चेन्नई की इस कंपनी ने कहा कि उसे भुगतान नहीं किया जा रहा है जबकि लंदन की कंपनी का कहना था कि तीन पक्षों के बीच जो समझौता किया गया था उस पर रोक लगा दी गई है।
सर्वोच्च न्यायालय ने जांच में पाया कि आर्बिटरेशन क्लॉज के साथ समझौता भी जारी था और उसे रद्द नहीं किया गया था। इस कारण दोनों पक्षों के बीच विवाद के निपटारे के लिए मध्यस्थता की जरूरत है। चेन्नई की इस कंपनी की याचिका को मंजूर कर लिया गया।
फैसला रद्द
पुंज लॉयड लिमिटेड और कॉरपोरेट रिस्क्स इंडिया लिमिटेड के बीच के विवाद में राष्ट्रीय उपभोक्ता कमीशन के फैसले को पिछले हफ्ते उच्चतम न्यायालय ने रद्द कर दिया। कमीशन ने कहा था कि इस मामले में कुछ जटिल और विवादित प्रश्नों का हल ढूंढ़ा जाना था और इसलिए इसे सिविल कोर्ट के पास भेजा जाना चाहिए।
कमिशन ने दोनों पक्षों को नोटिस जारी भी नहीं भेजा। कॉरपोरेट रिस्क्स इंश्योरेंस रेग्युलेटरी ऐंड डेवलपमेंट अथॉरिटी के अंतर्गत पंजीकृत कंपनी है।
कंपनी इंश्योरेंस और री-इंश्योरेंस ब्रोकिंग से जुड़ी है जिसने पुंज लॉयड को कहा था कि उसके पास अर्बन-ट्रॉम्बे पाइपलाइन परियोजना के इंश्योरेंस और री-इंश्योरेंस कवर की क्षमता और दक्षता है। पुंज लॉयड ने इस आश्वासन पर विश्वास करते हुए कंपनी को 6.61 करोड़ रुपये का बीमा कराने का जिम्मा सौंप दिया।
इसमें ओरियंटल इंश्योरेंस कॉरपोरेशन लिमिटेड को प्रमुख इंश्योरर बनाया गया। जब इस विवाद को कमीशन के पास ले जाया गया तो उसने शिकायत को खारिज कर दिया।
जब इस मामले को उच्चतम न्यायालय में ले जाया गया तो अदालत ने कहा कि महज यह कह कर मामला जटिल है उसे किसी दूसरी अदालत में नहीं भेजा जा सकता। ऐसा कोई फैसला लेने से पहले सभी पक्षों को नोटिस जारी करना जरूरी है।
याचिका खारिज
जिन कर्मचारियों को औद्योगिक अदालत के फैसले के बाद कंपनियों में फिर से भर्ती किया जाता है, उन्हें पुनर्नियुक्ति के बाद स्वत: पिछले समय के पूरे वेतन पाने का हकदार नहीं समझा जा सकता है। उच्चतम न्यायालय ने कानपुर इलेक्ट्रिसिटी कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम शमीम मिर्जा मामले में यह फैसला सुनाया।
मामला कुछ ऐसा था कि एक इलेक्ट्रिक कंपनी के सब स्टेशन में कुछ कैशियरों को भर्ती किया गया था। इन सब स्टेशनों को कॉन्ट्रैक्टर चला रहे थे।
दो साल बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इस वजह से उन्होंने मजदूर अदालत का दरवाजा खटखटाया और अदालत ने आदेश दिया कि पिछले पूरे वेतन के साथ कर्मचारियों को फिर से कंपनी में रख लिया जाए।
कंपनी ने उच्चतम न्यायालय में अपील की। उसने फिर से नियुक्त करने के फैसले को तो बनाए रखा पर यह कहा कि पिछले सारे वेतन का भुगतान का आदेश सही नहीं है और इसे खारिज कर दिया।
गारंटर की पेंशन राशि की जब्ती का मामला
कोई भी बैंक किसी गारंटर की उस जमा राशि को जब्त नहीं कर सकती जो उसने पेंशन या फिर ग्रैच्युटी के जरिये जमा की है। राधे श्याम बनाम पंजाब नैशनल बैंक के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया। राधे श्याम एक व्यक्ति का गारंटर बना था जिसने मोटरसाइकिल खरीदने के लिए बैंक से कर्ज लिया था।
उस व्यक्ति ने कर्ज नहीं चुकाया तो बैंक ने गारंटर के खिलाफ कार्यवाही शुरू की और उसके फिक्स्ड डिपॉजिट को जब्त करने लगा। इधर, उस मोटरसाइकिल का कोई अता पता नहीं चल पा रहा था। राधे श्याम ने जिला अदालत में अपील की।
जिला अदालत ने आदेश दिया कि पहले गाड़ी को बेचकर रकम वापसी की कोशिश की जाए और उसके बाद गारंटर के खिलाफ कोई कार्यवाही की जाए। अपील करने पर उच्च न्यायालय ने इस फैसले को पलट दिया। हालांकि उच्चतम न्यायालय ने बाद में जिला अदालत के फैसले को बनाए रखने के आदेश दिए।